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'''कटारमल सूर्य मंदिर''' [[उत्तराखण्ड]] में [[अल्मोड़ा]] के समीप कटारमल गाँव में स्थित है। यह सूर्य मंदिर न सिर्फ़ समूचे [[कुमाऊँ मंडल]] का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मंदिर है, बल्कि [[उड़ीसा]] के '[[सूर्य मंदिर कोणार्क|कोणार्क सूर्य मंदिर]]' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मंदिर भी है। '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है।
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'''कटारमल सूर्य मन्दिर''' [[उत्तराखण्ड]] में [[अल्मोड़ा]] के समीप कटारमल गाँव में स्थित है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे [[कुमाऊँ मंडल]] का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि [[उड़ीसा]] के '[[सूर्य मन्दिर कोणार्क|कोणार्क सूर्य मन्दिर]]' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है।
 
==स्थिति==
 
==स्थिति==
[[रानीखेत]]-[[अल्मोड़ा]] मार्ग पर अल्मोड़ा से 12 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क से क़रीब ढाई किलोमीटर ऊपर जाकर कटारमल गाँव आता है। यहाँ के सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मंदिर" भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान [[आदित्य देवता|आदित्य]] की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है।
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[[रानीखेत]]-[[अल्मोड़ा]] मार्ग पर अल्मोड़ा से 12 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क से क़रीब ढाई किलोमीटर ऊपर जाकर कटारमल गाँव आता है। यहाँ के सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान [[आदित्य देवता|आदित्य]] की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है।
 
====निर्माणकाल====
 
====निर्माणकाल====
इस कटारमल सूर्य मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय [[दिल्ली]] के '[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]]' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि के इसे [[मध्य काल]] में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य [[हिमालय]] में शासन करते थे। मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मंदिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
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इस कटारमल सूर्य मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय [[दिल्ली]] के '[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]]' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मन्दिर के बारे में माना जाता है कि के इसे [[मध्य काल]] में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य [[हिमालय]] में शासन करते थे। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मन्दिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
 
==[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]==
 
==[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]==
पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मंदिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और [[शिव]], [[पार्वती]], [[गणेश]], लक्ष्मीनारायण, [[नरसिंह अवतार|नृसिंह]], [[कार्तिकेय]] आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मंदिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मंदिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।
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पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मन्दिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और [[शिव]], [[पार्वती]], [[गणेश]], लक्ष्मीनारायण, [[नरसिंह अवतार|नृसिंह]], [[कार्तिकेय]] आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।
  
 
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05:59, 19 फ़रवरी 2013 का अवतरण

कटारमल सूर्य मन्दिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के समीप कटारमल गाँव में स्थित है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के 'कोणार्क सूर्य मन्दिर' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है।

स्थिति

रानीखेत-अल्मोड़ा मार्ग पर अल्मोड़ा से 12 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क से क़रीब ढाई किलोमीटर ऊपर जाकर कटारमल गाँव आता है। यहाँ के सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान आदित्य की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है।

निर्माणकाल

इस कटारमल सूर्य मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय दिल्ली के 'राष्ट्रीय संग्रहालय' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मन्दिर के बारे में माना जाता है कि के इसे मध्य काल में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य हिमालय में शासन करते थे। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मन्दिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

भारतीय पुरातत्त्व विभाग

पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मन्दिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और शिव, पार्वती, गणेश, लक्ष्मीनारायण, नृसिंह, कार्तिकेय आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।

इन्हें भी देखें: अल्मोड़ा एवं अल्मोड़ा पर्यटन


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख