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'''कालभैरवाष्टमी''' [[मार्गशीर्ष माह]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को मनाई जाती है। भगवान [[शिव]] के [[अवतार]] कहे जाने वाले 'कालभैरव' का अवतार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस संबंध में [[शिवपुराण]] की '[[शतरुद्रसंहिता]]' में बताया गया है शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया और यह स्वरूप भी भक्तों को मनोवांछित फल देने वाला है।
 
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==महत्त्व==
 
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[[हिंदू]] धर्म ग्रन्थों के अध्ययन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान [[शंकर]] के कालभैरव स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रदोष काल, व्यापिनी अष्टमी में हुआ था। अत: यह तिथि 'कालभैरवाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथ के [[भक्त]] कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के [[कृष्ण पक्ष]] की प्रदोष व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरव की [[पूजा]], दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को 'कालाष्टमी' के नाम से प्रकाशित किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://mukesh571.blogspot.in/2009/02/blog-post_1842.html |title=साक्षात रुद्र हैं श्रीभैरवनाथ |accessmonthday= 30 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
[[हिंदू]] धर्म ग्रन्थों के अध्ययन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान [[शंकर]] के कालभैरव स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रदोष काल, व्यापिनी अष्टमी में हुआ था। अत: यह तिथि 'कालभैरवाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथ के [[भक्त]] कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के [[कृष्ण पक्ष]] की प्रदोष व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरव की [[पूजा]], दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को 'कालाष्टमी' के नाम से प्रकाशित किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://mukesh571.blogspot.in/2009/02/blog-post_1842.html |title=साक्षात रुद्र हैं श्रीभैरवनाथ |accessmonthday= 30 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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====व्रत की विधि====
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मार्गशीर्ष [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] पर कालभैरव के निमित्त व्रत उपवास रखने पर जल्द ही भक्तों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
  
मार्गशीर्ष अष्टमी पर कालभैरव के निमित्त व्रत उपवास रखने पर जल्द ही भक्तों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस पर्व की व्रत की विधि इस प्रकार है-
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*व्रत करने वाले को कालभैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
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*[[स्नान]] आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए और तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाये।
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*व्रती को मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करे।
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*पूजा के समय ही 'ऊँ भैरवाय नम:' [[मंत्र]] से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए।
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*भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता) है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई आदि खिलानी चाहिए।
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*व्रत करने वाले को इस शुभ दिन में [[फल]] का आहार ग्रहण करना चाहिए।
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==धार्मिक मान्यता==
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भगवान [[शिव]] के [[अवतार]] कालभैरव का अवतरण [[मार्गशीर्ष माह|मार्गशीर्ष]] की [[कृष्ण पक्ष]] की अष्टमी को हुआ था। महादेव का यह रूप सभी पापों से मुक्त करने वाला माना गया है। कालभैरवाष्टमी के दिन इनकी विधि-विधान से [[पूजा]] करने पर भक्तों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।<ref>{{cite web |url=http://thelightbylonelypath.blogspot.in/2011/02/blog-post_2926.html |title= कालभैरव अष्टमी की व्रत विधि|accessmonthday= 30 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
भैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाएं। मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें। साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं। दिन में फलाहार करें।=
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माना जाता है इस दिन कालभैरव के समीप जागरण करने से कुछ ही दिनों में शुभ फल प्राप्त हो जाते हैं। भैरवजी का पूजन कर उन्हें निम्नलिखित मंत्रों से अर्ध्य अर्पित करना चाहिए-
शिवजी अवतार कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था। महादेव का यह रूप सभी पापों से मुक्त करने वाला माना गया है। कालभैरवाष्टमी के दिन इनकी विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
 
 
 
ऐसा माना जाता है इस दिन कालभैरव के समीप जागरण करने से कुछ ही दिनों में शुभ फल प्राप्त हो जाते हैं।
 
 
 
भैरवजी का पूजन कर उन्हें इन मंत्रों से अर्ध्य अर्पित करें-
 
 
 
भैरवाध्र्यं गृहाणेश भीमरूपाव्ययानघ।
 
  
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<blockquote><poem>भैरवाध्र्यं गृहाणेश भीमरूपाव्ययानघ।
 
अनेनाध्र्यप्रदानेन तुष्टो भव शिवप्रिय।।
 
अनेनाध्र्यप्रदानेन तुष्टो भव शिवप्रिय।।
  
 
सहस्राक्षिशिरोबाहो सहस्रचरणाजर।
 
सहस्राक्षिशिरोबाहो सहस्रचरणाजर।
 
 
गृहाणाध्र्यं भैरवेदं सपुष्पं परमेश्वर।।
 
गृहाणाध्र्यं भैरवेदं सपुष्पं परमेश्वर।।
  
 
पुष्पांजलिं गृहाणेश वरदो भव भैरव।
 
पुष्पांजलिं गृहाणेश वरदो भव भैरव।
 
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पुनरघ्र्यं गृहाणेदं सपुष्पं यातनापह।।</poem></blockquote>
पुनरघ्र्यं गृहाणेदं सपुष्पं यातनापह।।
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==शिव स्वरूप==
 
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[[कलियुग]] में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को [[शिव]] का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वर स्वरूप हैं, वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। शिवजी का विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं। यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। वहीं भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं। इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता।
कलयुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है।
 
 
 
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वरस्वरूप हैं वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं।
 
 
 
शिवजी का विश्वेश्वरस्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। वहीं भैरवस्वरूप रौद्र रूप वाले हैं, इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता।
 
 
 
 
 
 
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12:18, 30 अक्टूबर 2013 का अवतरण

कालभैरवाष्टमी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले 'कालभैरव' का अवतार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस संबंध में शिवपुराण की 'शतरुद्रसंहिता' में बताया गया है शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया और यह स्वरूप भी भक्तों को मनोवांछित फल देने वाला है।

महत्त्व

हिंदू धर्म ग्रन्थों के अध्ययन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रदोष काल, व्यापिनी अष्टमी में हुआ था। अत: यह तिथि 'कालभैरवाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथ के भक्त कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की प्रदोष व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को 'कालाष्टमी' के नाम से प्रकाशित किया जाता है।[1]

व्रत की विधि

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर कालभैरव के निमित्त व्रत उपवास रखने पर जल्द ही भक्तों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-

  • व्रत करने वाले को कालभैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
  • स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए और तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाये।
  • व्रती को मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करे।
  • पूजा के समय ही 'ऊँ भैरवाय नम:' मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए।
  • भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता) है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई आदि खिलानी चाहिए।
  • व्रत करने वाले को इस शुभ दिन में फल का आहार ग्रहण करना चाहिए।

धार्मिक मान्यता

भगवान शिव के अवतार कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। महादेव का यह रूप सभी पापों से मुक्त करने वाला माना गया है। कालभैरवाष्टमी के दिन इनकी विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।[2]

माना जाता है इस दिन कालभैरव के समीप जागरण करने से कुछ ही दिनों में शुभ फल प्राप्त हो जाते हैं। भैरवजी का पूजन कर उन्हें निम्नलिखित मंत्रों से अर्ध्य अर्पित करना चाहिए-

भैरवाध्र्यं गृहाणेश भीमरूपाव्ययानघ।
अनेनाध्र्यप्रदानेन तुष्टो भव शिवप्रिय।।

सहस्राक्षिशिरोबाहो सहस्रचरणाजर।
गृहाणाध्र्यं भैरवेदं सपुष्पं परमेश्वर।।

पुष्पांजलिं गृहाणेश वरदो भव भैरव।
पुनरघ्र्यं गृहाणेदं सपुष्पं यातनापह।।

शिव स्वरूप

कलियुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिव का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वर स्वरूप हैं, वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। शिवजी का विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं। यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। वहीं भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं। इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साक्षात रुद्र हैं श्रीभैरवनाथ (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 अक्टूबर, 2013।
  2. कालभैरव अष्टमी की व्रत विधि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 अक्टूबर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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