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*कुमारदेवी को अपने [[धर्म]] पालन में न केवल पूरी स्वतंत्रता ही प्राप्त थी, अपीतु उसकी रक्षा और प्रचारादि के लिए दानादि देने की सुविधा भी उपलब्ध थीं। उसने मूल धर्मचक्र का एक नए विहार में पुन: स्थापन कराया था।
 
*कुमारदेवी को अपने [[धर्म]] पालन में न केवल पूरी स्वतंत्रता ही प्राप्त थी, अपीतु उसकी रक्षा और प्रचारादि के लिए दानादि देने की सुविधा भी उपलब्ध थीं। उसने मूल धर्मचक्र का एक नए विहार में पुन: स्थापन कराया था।
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09:45, 26 जनवरी 2014 का अवतरण

कुमारदेवी सुविख्यात लिच्छवी वंश की राजकुमारी थी। वह गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम की पत्नी और समुद्रगुप्त की माता थी। कुमारदेवी संसार की ऐसी प्रथम महारानी थी, जिसके नाम से सिक्के प्रचलित किए गए थे।[1]

  • कुमारदेवी कान्यकुब्ज और वाराणसी के गहड़वाल सम्राट गोविंदचंद्र (1114-1154) की रानी थी। उसके पिता देवरक्षित पीठि (गया) के चिक्कोर वंशी शासक और बंगाल के पाल सम्राटों के सामंत थे।
  • शंकरदेवी कुमारदेवी की माता थी, जो एक अन्य पाल सामंत मथनदेव की पुत्री थी। मथनदेव राष्ट्रकूट वंशी अंग के शासक थे। मथनदेव की बहन पालराज रामपाल की माता थी।
  • गोविंदचंद्र और कुमारदेवी के विवाह से गहड़वाल और पाल वंश में कूटनीतिक मित्रता स्थापित हुई और यह गबड़वाल शक्ति के अन्य दिशाओं में विस्तार में सहायक सिद्ध हुई।
  • महत्वपुर्ण बात यह है कि गोविंदचंद्र स्वयं पौराणिक धर्मोपासक हिन्दू था, जबकि कुमारदेवी बौद्ध थी।
  • कुमारदेवी को अपने धर्म पालन में न केवल पूरी स्वतंत्रता ही प्राप्त थी, अपीतु उसकी रक्षा और प्रचारादि के लिए दानादि देने की सुविधा भी उपलब्ध थीं। उसने मूल धर्मचक्र का एक नए विहार में पुन: स्थापन कराया था।
  • सारनाथ में 'धर्मचक्रजिनविहार' का निर्माण कुमारदेवी ने करवाया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुमारदेवी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 जनवरी, 2014।

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