"गुरु हनुमान" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (गुरु हनुमान के जीवन चरित्र)
 
छो (Text replacement - "अतिश्योक्ति" to "अतिशयोक्ति")
 
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 19 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको यह दिखेगा कि लेख बनकर कैसा लगेगा -->
+
{{सूचना बक्सा खिलाड़ी
[[चित्र:{{PAGENAME}}|thumb|{{PAGENAME}} लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें]]
+
|चित्र=Guru-Hanuman.jpg
{{पुनरीक्षण}}<!-- कृपया इस साँचे को हटाएँ नहीं (डिलीट न करें)। इसके नीचे से ही सम्पादन कार्य करें। -->
+
|चित्र का नाम=गुरु हनुमान
'''आपको नया पन्ना बनाने के लिए यह आधार दिया गया है'''
+
|पूरा नाम=गुरु हनुमान
 +
|अन्य नाम=विजय पाल (वास्तविक नाम)
 +
|जन्म=[[15 मार्च]] [[1901]]
 +
|जन्म भूमि=चिड़ावा तहसील, [[राजस्थान]]
 +
|मृत्यु=[[24 मई]], [[1999]]
 +
|मृत्यु स्थान=[[मेरठ]], [[उत्तर प्रदेश]]
 +
|अभिभावक=
 +
|पति/पत्नी=
 +
|संतान=
 +
|कर्म भूमि=[[भारत]]
 +
|खेल-क्षेत्र=[[कुश्ती]]
 +
|शिक्षा=
 +
|विद्यालय=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=[[द्रोणाचार्य पुरस्कार]], [[पद्मश्री]]
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|विशेष योगदान=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=गुरु हनुमान, [[सतपाल सिंह|महाबली सतपाल]], करतार सिंह, 1972 के ओलम्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता [[धीरज ठाकरान]], सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवानों के कोच थे।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन={{अद्यतन|12:54, 15 मार्च 2015 (IST)}}
 +
}}
 +
'''गुरु हनुमान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Guru Hanuman'', जन्म: [[15 मार्च]], [[1901]]; मृत्यु: [[24 मई]], [[1999]]) [[भारत]] के महान् [[कुश्ती]] प्रशिक्षक (कोच) थे। वे स्वयं भी महान् पहलवान थे, उन्‍होंने सम्‍पूर्ण विश्‍व में भारतीय कुश्‍ती को महत्त्वपूर्ण स्‍थान दिलाया। उनकी कुश्‍ती के क्षेत्र विशेष में उपलब्धियों के कारण इन्हें सन [[1988]] में [[द्रोणाचार्य पुरस्कार]] और सन [[1983]] में [[पद्मश्री]] से सम्मानित किया गया।
 +
==जीवन परिचय==
 +
गुरु हनुमान का जन्म [[राजस्थान]] के [[झुंझुनू ज़िला]] के चिड़ावा तहसील में 1901 में हुआ था। गुरु हनुमान का बचपन का नाम विजय पाल था। बचपन में कमज़ोर सेहत का होने के कारण अक्सर ताकतवर लड़के इन्हें तंग करते थे। इसलिए उन्होंने सेहत बनाने के लिए बचपन में ही पहलवानी को अपना लिया था। [[कुश्ती]] के प्रति अपने आगाध प्रेम के चलते इन्होंने 20 साल की उम्र में [[दिल्ली]] की और प्रस्थान किया। भारतीय मल्लयुद्ध के [[हनुमान|भगवान हनुमान]] से प्ररित होकर इन्होंने अपना नाम हनुमान रख लिया और ताउम्र ब्रह्मचारी रहने का प्रण कर लिया। उनके अनुसार उनकी शादी तो कुश्ती से ही हुई थी। ये बात कोई अतिशयोक्ति भी नहीं थी, क्योंकि जितने पहलवान उनके सान्निध्य में आगे निकले हैं, शायद किसी और गुरु को इतना सम्मान मिल पाया है। कुश्ती के प्रति उनके प्रेम के चलते मशहूर भारतीय उद्योगपति के.के बिरला ने उन्हें दिल्ली में अखाड़ा चलाने के लिए ज़मीन दान में दे दी थी। सन [[1940]] में वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये। [[1947]] में [[भारत का विभाजन|भारत विभाजन]] के समय [[पाकिस्तान]] से शरणार्थियों की उन्होंने खूब सेवा की। 1947 के बाद हनुमान अखाड़ा दिल्ली पहलवानों का मंदिर हो गया। [[1980]] में इनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
 +
==कुश्ती के हनुमान एवं शिष्यों के द्रोणाचार्य==
 +
गुरु हनुमान एक गुरु ही नहीं बल्कि अपने शिष्यों के लिए पिता तुल्य थे। कुश्ती का जितना सूक्ष्म ज्ञान उन्हें था, शायद ही किसी को हो! गुरु हनुमान ने जब ये देखा की उनके पहलवानों को बुढ़ापे में आर्थिक तंगी होती है तो उन्होंने सरकार से पहलवानों के लिए रोज़गार के लिए सिफारिश की परिणामस्वरूप आज बहुत से राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को भारतीय रेलवे में हाथों हाथ लिया जाता है। इस तरह उन्होंने हमेशा अपने शिष्यों की सहायता अपने बच्चो के समान की। उनका रहन सहन बिल्कुल गाँव वालों की तरह ही था। उन्होंने अपने जीवन के तमाम वर्ष एक धोती कुरते में ही गुजर दिए। भारतीय स्टाइल की कुश्ती के वे माहिर थे, उन्होंने भारतीय स्टाइल और अंतर्राष्ट्रीय स्टाइल का मेल कराकर अनेक एशियाई चैम्पियन दिए।  पहलवानों को कुश्ती की गुर सिखाने के लिए उनकी लाठी कुश्ती जगत् में मशहूर थी जिसके प्रहार से उन्होंने [[सतपाल सिंह|महाबली सतपाल]], करतार सिंह, 1972 के ओलम्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता वीरेंदर ठाकरान (धीरज पहलवान), सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवान कुश्ती की मिसाल बने। ये उनकी लाठी का ही कमाल था जो [[अखाड़ा|अखाड़े]] के पहलवानों को 3 बजे ही कसरत करने के लिए जगा देता था। उनके अखाड़े में रहकर खिलाड़ी केवल पहलवानी ही नहीं बल्कि ब्रह्मचारी, आत्मनिर्भर और शाकाहार की ताकत सीखते थे। अपने यहाँ आने वालो को भी वो [[चाय]] के स्थान पर [[बादाम]] की लस्सी पिलाते थे। उनके शिष्य महाबली सतपाल छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को अत्याधुनिक तरीके से मैट पर प्रशिक्षण देते है जिसके परिणामस्वरूप [[सुशील कुमार पहलवान|पहलवान सुशील कुमार]] और योगेश्वर दत्त एवं नरसिंह यादव जैसे पहलवान राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे है। गुरु के रूप में उनका योगदान यादगार है, कुश्ती के प्रति अपने प्रेम के चलते वो जीवन भर प्रात: 3 बजे ही उठ जाते थे।
 +
==सम्मान और पुरस्कार==
 +
[[कुश्ती]] के प्रति उनके योगदान के लिए [[भारत सरकार]] ने उन्हें सन [[1988]] में "[[द्रोणाचार्य पुरस्कार]]" से सम्मानित किया गया। उनके तीन चेले सुदेश कुमार, प्रेम नाथ, वेदप्रकाश ने [[1972]] कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ खेल में स्वर्ण पदक जीता था। [[सतपाल सिंह|सतपाल पहलवान]] और करतार सिंह ने [[1982]] और [[1986]] के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनके 8 चेलों ने [[भारत]] का खेल सम्मान [[अर्जुन पुरस्कार]] जीता है।
 +
==निधन==
 +
वे कुँवारे थे और उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। वे [[24 मई]], [[1999]] को कार दुर्घटना में [[हरिद्वार]] में उनकी मृत्यु हो गयी। 
  
==शीर्षक उदाहरण 1==गुरु हनुमान भारत के महान कुश्ती प्रशिक्षक (कोच) थे। वे स्वयं भी महान पहलवान थे उन्‍होने सम्‍पूर्ण विश्‍व मे भारतीय कुश्‍ती को महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिलाया है। उनकी कश्‍ती के क्षेत्र विशेष उपलब्धी के कारण उन्हें द्रोणाचार्य अवार्ड से १९८७ मे और पद्माश्री से १९८३ में सम्मानित किया गया।
 
  
===जन्म=== उनका जन्म राजस्थान के झुंझुनू जिला के चिडावा तहसील में १९०१ हुआ था। उनका बचपन का नाम विजय पाल था।
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
====पहलवानी का शौक एवं आजादी की लड़ाई में योगदान==== बचपन में कमजोर सेहत का होने के कारण अक्सर ताकतवर लड़के इन्हें तंग करते थे. इसलिए उन्होंने सेहत बनाने के लिए बचपन में ही पहलवानी को अपना लिया था. कुश्ती के प्रति अपने आगाध प्रेम के चलते इन्होने २० साल की उम्र में दिल्ली की और प्रस्थान किया. भारतीय मल्लयुद्ध के भगवान हनुमान से प्ररित होकर इन्होने अपना नाम हनुमान रख लिया और ताउम्र ब्रह्मचारी रहने का प्राण कर लिया. उनके अनुसार उनकी शादी तो कुश्ती से ही हुई थी. ये बात कोई अतिश्योक्ति भी नहीं थी क्योंकि जितने पहलवान उनके सानिध्य में आगे निकले है शायद किसी और गुरु को इतना सम्मान मिल पाया है. कुश्ती के प्रति उनके प्रेम के चलते मशहूर भारतीय उद्योगपति के.के बिरला ने उन्हें दिल्ली में अखाडा चलने के लिए जमीन दान में दे दी थी. सन १९४० में वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये. १९४७ में भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से शरणार्थियों की उन्होंने खूब सेवा की. १९४७ के बाद हनुमान अखाडा दिल्ली पहलवानों का मंदिर हो गया. १९८० में इनको पदमश्री से सम्मानित किया गया. इस प्रकार १९२० ई० में दिल्ली में "बिरला व्ययामशाला" का जन्म हुआ. इन्होने मीडिया वालो से कुश्ती कवरेज के लिए भी प्रार्थना की.
 
 
 
=====कुश्ती के हनुमान एवं शिष्यों के द्रोणाचार्य===== गुरु हनुमान एक गुरु ही नहीं बल्कि अपने शिष्यों के लिए पिता तुल्य थे. कुश्ती का जितना सूक्षम ज्ञान उन्हें था शायद ही किसी को हो! गुरु हनुमान ने जब ये देखा की उनके पहलवानों को बुढ़ापे में आर्थिक तंगी होती है तो उन्होंने सरकार से पहलवानों के लिए रोजगार के लिए सिफारिश की परिणामस्वरुप आज बहोत से राष्ट्रीय प्रतियोगिता जितने वाले पहलवानों को भारतीय रेलवे में हाथो हाथ लिया जाता है. इस तरह उन्होंने हमेशा अपने शिष्यों की सहायता अपने बच्चो के सामान की. उनका रहन सहन बिलकुल गाँव वालो की तरह ही था. उन्होंने अपने जीवन के तमाम वर्ष एक धोती कुरते में ही गुजर दिए. भारतीय स्टाइल की कुश्ती के वे माहिर थे, उन्होंने भारतीय स्टाइल और अन्तराष्ट्रीय स्टाइल का मेल कराकर अनेक एशियाई चैम्पियन दिए. पहलवानों को कुश्ती की गुर सिखाने के लिए उनकी लाठी कुश्ती जगत मशहूर थी जिसके प्रहार से उन्होंने महाबली सतपाल, करतार सिंह, १९७२ के ओल्य्म्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता वीरेंदर ठाकरान (धीरज पहलवान), सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवान कुश्ती की मिसाल बने. ये उनकी लाठी का ही कमाल था जो अखाड़े के पहलवानों को ३ बजे ही कसरत करने के लिए जगा देता था. उनके अखाड़े में रहकर खिलाडी केवल पहलवानी ही नहीं बल्कि ब्रह्मचारी, आत्मनिर्भर और शाकाहार की ताकत सीखते थे. अपने यहाँ आने वालो को भी वो चाय के स्थान पर बादाम की लस्सी पिलाते थे. उनके शिष्य महाबली सतपाल छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को अत्याधुनिक तरीके से मैट पर पर्शिक्षण देते है जिसके परिणामस्वरूप पहलवान सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त एवं नरसिंह यादव जैसे पहलवान राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे है. गुरु के रूप में उनका योगदान यादगार है, कुश्ती के प्रति अपने प्रेम के चलते वो जीवन भर प्रात: ३ बजे ही उठ जाते थे.कुश्ती के प्रति उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सन १९८८ में "द्रोणाचार्य पुरुस्कार" से सम्मानित किया गया. उनके तीन चेले सुदेश कुमार, प्रेम नाथ, वेदप्रकाश ने १९७२ कार्दिफ्फ़ कॉमनवेल्थ खेल में स्वर्ण पदक जीता था।सतपाल पहलवान और करतार सिंह ने १९८२ और १९८६ के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनके ८ चेलों ने भारत का सर्वोच खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार जीता है। वे कुँवारे थे और उन्होनें ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। वे २४ मई, १९९९ को कार दुर्घटना में हरिद्वार में उनकी मृत्यु हो गयी.
 
 
 
 
 
 
 
<!-- कृपया इस संदेश से ऊपर की ओर ही सम्पादन कार्य करें। ऊपर आप अपनी इच्छानुसार शीर्षक और सामग्री डाल सकते हैं -->
 
 
 
<!-- यदि आप सम्पादन में नये हैं तो कृपया इस संदेश से नीचे सम्पादन कार्य न करें -->
 
 
 
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
+
{{पहलवान}}
[[Category:नया पन्ना अगस्त-2012]]
+
[[Category:कुश्ती]][[Category:पहलवान]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:चरित कोश]][[Category:खेलकूद कोश]][[Category:द्रोणाचार्य पुरस्कार]][[Category:पद्म श्री]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

07:56, 6 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

गुरु हनुमान
गुरु हनुमान
पूरा नाम गुरु हनुमान
अन्य नाम विजय पाल (वास्तविक नाम)
जन्म 15 मार्च 1901
जन्म भूमि चिड़ावा तहसील, राजस्थान
मृत्यु 24 मई, 1999
मृत्यु स्थान मेरठ, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र कुश्ती
पुरस्कार-उपाधि द्रोणाचार्य पुरस्कार, पद्मश्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गुरु हनुमान, महाबली सतपाल, करतार सिंह, 1972 के ओलम्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता धीरज ठाकरान, सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवानों के कोच थे।
अद्यतन‎

गुरु हनुमान (अंग्रेज़ी: Guru Hanuman, जन्म: 15 मार्च, 1901; मृत्यु: 24 मई, 1999) भारत के महान् कुश्ती प्रशिक्षक (कोच) थे। वे स्वयं भी महान् पहलवान थे, उन्‍होंने सम्‍पूर्ण विश्‍व में भारतीय कुश्‍ती को महत्त्वपूर्ण स्‍थान दिलाया। उनकी कुश्‍ती के क्षेत्र विशेष में उपलब्धियों के कारण इन्हें सन 1988 में द्रोणाचार्य पुरस्कार और सन 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

जीवन परिचय

गुरु हनुमान का जन्म राजस्थान के झुंझुनू ज़िला के चिड़ावा तहसील में 1901 में हुआ था। गुरु हनुमान का बचपन का नाम विजय पाल था। बचपन में कमज़ोर सेहत का होने के कारण अक्सर ताकतवर लड़के इन्हें तंग करते थे। इसलिए उन्होंने सेहत बनाने के लिए बचपन में ही पहलवानी को अपना लिया था। कुश्ती के प्रति अपने आगाध प्रेम के चलते इन्होंने 20 साल की उम्र में दिल्ली की और प्रस्थान किया। भारतीय मल्लयुद्ध के भगवान हनुमान से प्ररित होकर इन्होंने अपना नाम हनुमान रख लिया और ताउम्र ब्रह्मचारी रहने का प्रण कर लिया। उनके अनुसार उनकी शादी तो कुश्ती से ही हुई थी। ये बात कोई अतिशयोक्ति भी नहीं थी, क्योंकि जितने पहलवान उनके सान्निध्य में आगे निकले हैं, शायद किसी और गुरु को इतना सम्मान मिल पाया है। कुश्ती के प्रति उनके प्रेम के चलते मशहूर भारतीय उद्योगपति के.के बिरला ने उन्हें दिल्ली में अखाड़ा चलाने के लिए ज़मीन दान में दे दी थी। सन 1940 में वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये। 1947 में भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से शरणार्थियों की उन्होंने खूब सेवा की। 1947 के बाद हनुमान अखाड़ा दिल्ली पहलवानों का मंदिर हो गया। 1980 में इनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

कुश्ती के हनुमान एवं शिष्यों के द्रोणाचार्य

गुरु हनुमान एक गुरु ही नहीं बल्कि अपने शिष्यों के लिए पिता तुल्य थे। कुश्ती का जितना सूक्ष्म ज्ञान उन्हें था, शायद ही किसी को हो! गुरु हनुमान ने जब ये देखा की उनके पहलवानों को बुढ़ापे में आर्थिक तंगी होती है तो उन्होंने सरकार से पहलवानों के लिए रोज़गार के लिए सिफारिश की परिणामस्वरूप आज बहुत से राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को भारतीय रेलवे में हाथों हाथ लिया जाता है। इस तरह उन्होंने हमेशा अपने शिष्यों की सहायता अपने बच्चो के समान की। उनका रहन सहन बिल्कुल गाँव वालों की तरह ही था। उन्होंने अपने जीवन के तमाम वर्ष एक धोती कुरते में ही गुजर दिए। भारतीय स्टाइल की कुश्ती के वे माहिर थे, उन्होंने भारतीय स्टाइल और अंतर्राष्ट्रीय स्टाइल का मेल कराकर अनेक एशियाई चैम्पियन दिए। पहलवानों को कुश्ती की गुर सिखाने के लिए उनकी लाठी कुश्ती जगत् में मशहूर थी जिसके प्रहार से उन्होंने महाबली सतपाल, करतार सिंह, 1972 के ओलम्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता वीरेंदर ठाकरान (धीरज पहलवान), सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवान कुश्ती की मिसाल बने। ये उनकी लाठी का ही कमाल था जो अखाड़े के पहलवानों को 3 बजे ही कसरत करने के लिए जगा देता था। उनके अखाड़े में रहकर खिलाड़ी केवल पहलवानी ही नहीं बल्कि ब्रह्मचारी, आत्मनिर्भर और शाकाहार की ताकत सीखते थे। अपने यहाँ आने वालो को भी वो चाय के स्थान पर बादाम की लस्सी पिलाते थे। उनके शिष्य महाबली सतपाल छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को अत्याधुनिक तरीके से मैट पर प्रशिक्षण देते है जिसके परिणामस्वरूप पहलवान सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त एवं नरसिंह यादव जैसे पहलवान राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे है। गुरु के रूप में उनका योगदान यादगार है, कुश्ती के प्रति अपने प्रेम के चलते वो जीवन भर प्रात: 3 बजे ही उठ जाते थे।

सम्मान और पुरस्कार

कुश्ती के प्रति उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सन 1988 में "द्रोणाचार्य पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। उनके तीन चेले सुदेश कुमार, प्रेम नाथ, वेदप्रकाश ने 1972 कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ खेल में स्वर्ण पदक जीता था। सतपाल पहलवान और करतार सिंह ने 1982 और 1986 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनके 8 चेलों ने भारत का खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार जीता है।

निधन

वे कुँवारे थे और उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। वे 24 मई, 1999 को कार दुर्घटना में हरिद्वार में उनकी मृत्यु हो गयी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख