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*मूलत:मक्खन को मथकर [[वसा]] निकालने के बाद बचा हुआ तरल। आजकल इससे आशय पतला किए गए और मथे हुए दही से है, जिसका इस्तेमाल समूचे दक्षिण [[एशिया]] में एक शीतल पेय [[पदार्थ]] के रूप में किया जाता है।  
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*मूलत:मक्खन को मथकर [[वसा]] निकालने के बाद बचा हुये तरलपरदार्थ को छाछ कहते है। आजकल इसका आशय पतला किए गए और मथे हुए दही से है, जिसका इस्तेमाल समूचे दक्षिण [[एशिया]] में एक शीतल पेय [[पदार्थ]] के रूप में किया जाता है।  
*मलाई उतरे हुए [[दूध]] की ही तरह संवर्द्धित छाछ मुख्य रूप से पानी (लगभग 90 प्रतिशत), दुग्ध शर्करा लैक्टोज (लगभग 5 प्रतिशत) और [[प्रोटीन]] केसीन (लगभग 3 प्रतिशत), से बनी होती है।
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*मलाई उतरे हुए [[दूध]] की ही तरह संवर्द्धित छाछ मुख्य रूप से पानी (लगभग 90 प्रतिशत), दुग्ध शर्करा लैक्टोज (लगभग 5 प्रतिशत) और [[प्रोटीन]] केसीन (लगभग 3प्रतिशत) से बनी होती है।
*कम वसा के दूध की बनी हुई छाछ में भी घी अल्प मात्रा (2 प्रतिशत) में होता है। कम वसा और वसारहित , दोनों प्रकार की छाछ में [[जीवाणु]] कुछ लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में बदलते हैं, जो दूध को खट्टा सा स्वाद दे देता है और लैक्टोज़ के [[पाचन]] में मदद करता है,  
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*कम वसा के दूध की बनी हुई छाछ में भी घी अल्प मात्रा (2 प्रतिशत) में होता है। कम वसा और वसारहित दोनों प्रकार की छाछ में [[जीवाणु]] कुछ लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में बदलते हैं, जो दूध को खट्टा सा स्वाद दे देता है और लैक्टोज़ के [[पाचन]] में मदद करता है,  
 
*समझा जाता है कि जीवित जीवाणु की अधिक संख्या अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक और पाचन संबंधी लाभ भी देती है ।
 
*समझा जाता है कि जीवित जीवाणु की अधिक संख्या अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक और पाचन संबंधी लाभ भी देती है ।
 
*पश्चिम में पुडिंग और [[आइसक्रीम]] जैसे ठंडे मीठे व्यंजन उद्योग में उपयोग के लिए छाछ को गाढ़ा किया या सुखाया जाता है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसे मठ्ठा और मोरू कहा जाता है।  
 
*पश्चिम में पुडिंग और [[आइसक्रीम]] जैसे ठंडे मीठे व्यंजन उद्योग में उपयोग के लिए छाछ को गाढ़ा किया या सुखाया जाता है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसे मठ्ठा और मोरू कहा जाता है।  
 
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*छाछ प्रायः [[गाय]], भैस के दूध से जमी दही को फेटकर बनता है। इस शीतल पेय पदार्थ जिसको लोग मट्ठा के नाम से जानते है।
 
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12:35, 10 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • मूलत:मक्खन को मथकर वसा निकालने के बाद बचा हुये तरलपरदार्थ को छाछ कहते है। आजकल इसका आशय पतला किए गए और मथे हुए दही से है, जिसका इस्तेमाल समूचे दक्षिण एशिया में एक शीतल पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है।
  • मलाई उतरे हुए दूध की ही तरह संवर्द्धित छाछ मुख्य रूप से पानी (लगभग 90 प्रतिशत), दुग्ध शर्करा लैक्टोज (लगभग 5 प्रतिशत) और प्रोटीन केसीन (लगभग 3प्रतिशत) से बनी होती है।
  • कम वसा के दूध की बनी हुई छाछ में भी घी अल्प मात्रा (2 प्रतिशत) में होता है। कम वसा और वसारहित दोनों प्रकार की छाछ में जीवाणु कुछ लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में बदलते हैं, जो दूध को खट्टा सा स्वाद दे देता है और लैक्टोज़ के पाचन में मदद करता है,
  • समझा जाता है कि जीवित जीवाणु की अधिक संख्या अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक और पाचन संबंधी लाभ भी देती है ।
  • पश्चिम में पुडिंग और आइसक्रीम जैसे ठंडे मीठे व्यंजन उद्योग में उपयोग के लिए छाछ को गाढ़ा किया या सुखाया जाता है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसे मठ्ठा और मोरू कहा जाता है।
  • छाछ प्रायः गाय, भैस के दूध से जमी दही को फेटकर बनता है। इस शीतल पेय पदार्थ जिसको लोग मट्ठा के नाम से जानते है।


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