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'''छायावादी युग''' ([[1918]]-[[1937]]) प्राय: '[[द्विवेदी युग]]' के बाद के समय को कहा जाता है। इस युग में [[हिन्दी साहित्य]] में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। सन [[1916]] ई. के आस-पास [[हिन्दी]] में कल्पनापूर्ण, स्वच्छंद और भावुकता की एक लहर उमड़ पड़ी। [[भाषा]], भाव, शैली, [[छंद]], [[अलंकार]] इन सब दृष्टियों से पुरानी [[कविता]] से इसका कोई मेल नहीं था। आलोचकों ने इसे 'छायावाद' या 'छायावादी कविता' का नाम दिया।
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'''छायावादी युग''' ([[1920]]-[[1936]]) प्राय: '[[द्विवेदी युग]]' के बाद के समय को कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को [[जयशंकर प्रसाद]], [[महादेवी वर्मा]], [[सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']] और [[सुमित्रानंदन पंत]] जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। 'द्विवेदी युग' की प्रतिक्रिया का परिणाम ही 'छायावादी युग' है। इस युग में [[हिन्दी साहित्य]] में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर्तन हो गया। वस्तु निरूपण के स्थान पर अनुभूति निरूपण को प्रधानता प्राप्त हुई थी। प्रकृति का प्राणमय प्रदेश [[कविता]] में आया। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा 'छायावादी युग' के चार प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।
 
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==प्रारम्भ==
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==मुख्य कवि और उनकी रचनाएँ==
'छायावाद' का प्रारम्भ सामान्यतः 1918 ई. के आसपास से माना जाता है। तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं से पता चलता है कि [[1920]] तक छायावाद संज्ञा का प्रचलन हो चुका था। मुकुटधर पांडेय ने 1920 की [[जुलाई]], [[सितंबर]], [[नवंबर]] और [[दिसंबर]] की 'श्रीशारदा' ([[जबलपुर]]) में 'हिन्दी में छायावाद' नामक शीर्षक से चार निबंधों की एक लेखमाला छपवाई थी। जब तक किसी प्राचीनतर सामग्री का पता नहीं चलता, इसी को छायावाद-संबंधी सर्वप्रथम [[निबंध]] कहा जा सकता है। हिन्दी में उसका नितांत अभाव देखकर मुकुटधर जी ने इधर-उधर की कुछ टीका-टिप्पणियों के सहारे वह निबंध प्रस्तुत किया था। इससे स्पष्ट है कि उस निबंध से पहले भी छायावाद पर कुछ टीका-टिप्पणियाँ हो चुकी थीं। लेखमाला का प्रथम निबंध 'कवि स्वातंत्र्य' में मुकुटधर जी ने रीति-ग्रंथों की परतंत्रता से मुक्त होकर कविता में व्यक्तिव तथा भाव भाषा छंद प्रकाशन-रीति आदि में मौलिकता की आवश्यकता पर जोर दिया है। दूसरा निबंध 'छायावाद क्या है?' सबसे महत्त्वपूर्ण है। आरंभ में ही लेखक कहता है- "[[अंग्रेज़ी]] या किसी पाश्चात्य साहित्य अथवा बंग साहित्य की वर्तमान स्थिति की कुछ भी जानकारी रखने वाले तो सुनते ही समझ जाएँगे कि यह शब्द मिस्टिसिज्म’ के लिए आया है फिर भी छायावाद एक ऐसी मायामय सूक्ष्म वस्तु है कि शब्दों द्वारा इसका ठीक-ठीक वर्णन करना असंभव है, क्योंकि ऐसी रचनाओं में शब्द अपने स्वाभाविक मूल्य को खोकर सांकेतिक चिह्न मात्र हुआ करते हैं।"<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=3170|title=छायावाद|accessmonthday=01 अक्टूबर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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[[जयशंकर प्रसाद]], [[सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']], [[सुमित्रानंदन पंत]] और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख स्तंभ कहे जाते हैं। 'छायावाद' का केवल पहला अर्थात् मूल अर्थ लेकर तो हिन्दी काव्य क्षेत्र में चलने वाली [[महादेवी वर्मा]] ही हैं। [[रामकुमार वर्मा]], [[माखनलाल चतुर्वेदी]], [[हरिवंशराय बच्चन]] और [[रामधारी सिंह दिनकर]] को भी 'छायावाद' ने प्रभावित किया। किंतु रामकुमार वर्मा आगे चलकर नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हुए, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रवादी धारा की ओर रहे, बच्चन ने प्रेम के राग को मुखर किया और दिनकर जी ने विद्रोह की आग को आवाज़ दी। अन्य कवियों में हरिकृष्ण 'प्रेमी', [[जानकी वल्लभ शास्त्री]], [[भगवतीचरण वर्मा]], उदयशंकर भट्ट, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' के नाम भी उल्लेखनीय हैं। इनकी रचनाएँ निम्नानुसार हैं-
==छायावादी कविता==
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;जयशंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह-
आधुनिक हिन्दी कविता की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि छायावादी काल की कविता में मिलती है। लाक्षणिकता, चित्रमयता, नूतन प्रतीक विधान, व्यंग्यात्मकता, मधुरता तथा सरसता आदि गुणों के कारण छायावादी कविता ने धीरे-धीरे अपना एक प्रशंसक वर्ग खड़ा कर दिया। मुकुटधर पांडेय ने सर्वप्रथम 'छायावाद' शब्द का प्रयोग किया था। शब्द चयन और कोमलकांत पदावली के कारण 'इतिवृत्तात्मक'<ref>[[महाकाव्य]] और प्रबंध काव्य, जिनमें किसी कथा का वर्णन होता है।</ref> युग की खुरदरी [[खड़ी बोली]] सौंदर्य, प्रेम और वेदना के गहन भावों को वहन करने योग्य बनी। हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर्तन हो गया। वस्तु निरूपण के स्थान पर अनुभूति निरूपण को प्रमुखता मिली। प्रकृति का प्राणमय प्रदेश कविता में आया।
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'[[चित्राधार -जयशंकर प्रसाद|चित्राधार]]' ([[ब्रज भाषा]] में रचित कविताएँ), '[[कानन कुसुम|कानन-कुसुम]]', 'महाराणा का महत्त्व', 'करुणालय', 'झरना', '[[आँसू -जयशंकर प्रसाद|आंसू]]', 'लहर' और '[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]'।
====मुख्य साहित्यकार====
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;सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह-
छायावादी युग के प्रमुख साहित्यकार हैं-
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'[[वीणा -सुमित्रनन्दन पंत|वीणा]]', '[[ग्रंथि -सुमित्रनन्दन पंत|ग्रंथि]]', '[[पल्लव -सुमित्रनन्दन पंत|पल्लव]]', '[[गुंजन -सुमित्रनन्दन पंत|गुंजन]]', '[[युगांत -सुमित्रनन्दन पंत|युगांत]]', '[[युगवाणी -सुमित्रनन्दन पंत|युगवाणी]]', '[[ग्राम्या -सुमित्रनन्दन पंत|ग्राम्या]]', 'स्वर्ण-किरण', 'स्वर्ण-धूलि', 'युगान्तर', '[[उत्तरा -सुमित्रनन्दन पंत|उत्तरा]]', 'रजत-शिखर', 'शिल्पी', 'प्रतिमा', 'सौवर्ण', 'वाणी', '[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]]', 'रश्मिबंध', '[[कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत|कला और बूढ़ा चाँद]]', 'अभिषेकित', 'हरीश सुरी सुनहरी टेर', '[[लोकायतन -सुमित्रनन्दन पंत|लोकायतन]]', 'किरण वीणा'।
#[[रायकृष्ण दास]]
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;सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1898-1961 ई.) के काव्य-संग्रह-
#[[वियोगी हरि]]
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'अनामिका', '[[परिमल -सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'|परिमल]]', '[[गीतिका -सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'|गीतिका]]', '[[तुलसीदास -निराला|तुलसीदास]]', 'आराधना', 'कुकुरमुत्ता', 'अणिमा', 'नए पत्ते', 'बेला', 'अर्चना'।
#[[रघुवीर सहाय|डॉ. रघुवीर सहाय]]
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;महादेवी वर्मा (1907-1988 ई.) की काव्य रचनाएँ-
#[[माखनलाल चतुर्वेदी]]
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'[[रश्मि -महादेवी वर्मा|रश्मि]]', 'निहार', '[[नीरजा -महादेवी वर्मा|नीरजा]]', '[[सांध्यगीत -महादेवी वर्मा|सांध्यगीत]]', '[[दीपशिखा -महादेवी वर्मा|दीपशिखा]]', '[[यामा -महादेवी वर्मा|यामा]]'।
#[[जयशंकर प्रसाद]]
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;डॉ. रामकुमार वर्मा की काव्य रचनाएँ-
#[[महादेवी वर्मा]]
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'अंजलि', 'रूपराशि', 'चितौड़ की चिता', 'चंद्रकिरण', 'अभिशाप', 'निशीथ', 'चित्ररेखा', 'वीर हमीर', 'एकलव्य'।
#नन्द दुलारे वाजपेयी
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;हरिकृष्ण 'प्रेमी' की काव्य रचनाएँ-
#[[शिवपूजन सहाय|डॉ. शिवपूजन सहाय]]
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'आखों में', 'अनंत के पथ पर', 'रूपदर्शन', 'जादूगरनी', 'अग्निगान', 'स्वर्णविहान'।
#[[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]]
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==काव्य की प्रवृत्तियाँ==
#[[रामचन्द्र शुक्ल]]
 
#[[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]]
 
#[[बाबू गुलाबराय]]
 
  
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#वैयक्तिकता
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#प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना
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#श्रंगारिकता
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#वेदना और करुणा की विवृत्ति
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#मानवतावादी दृष्टिकोण
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#देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय भावना
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#प्रतीकात्मकता
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#चित्रात्मक भाषा एवं लाक्षणिक पदावली
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#गेयता
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#अलंकार-विधान
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==ब्रज भाषा का काव्य==
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'छायावादी युग' में कवियों का एक वर्ग ऐसा भी था, जो [[सूरदास]], [[तुलसीदास]], [[सेनापति कवि|सेनापति]], [[बिहारी लाल|बिहारी]] और [[घनानंद कवि|घनानंद]] जैसी समर्थ प्रतिभा संपन्न काव्य-धारा को जीवित रखने के लिए [[ब्रजभाषा]] में काव्य रचना कर रहे थे। 'भारतेंदु युग' में जहाँ ब्रजभाषा का काव्य प्रचुर मात्रा में लिखा गया, वहीं छायावाद आते-आते ब्रजभाषा में गौण रूप से काव्य रचना लिखी जाती रहीं। इन कवियों का मत था कि ब्रजभाषा में काव्य की लंबी परम्परा ने उसे काव्य के अनुकूल बना दिया है। छायावादी युग में ब्रजभाषा में काव्य रचना करने वाले कवियों में रामनाथ जोतिसी, [[रामचंद्र शुक्ल]], [[राय कृष्णदास]], जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी', दुलारे लाल भार्गव, [[वियोगी हरि]], [[बालकृष्ण शर्मा 'नवीन']], [[अनूप शर्मा]], रामेश्वर 'करुण', [[किशोरीदास वाजपेयी]], उमाशंकर वाजपेयी 'उमेश' प्रमुख हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindikaitihaas.blogspot.in/2012/01/blog-post.html|title=छायावादी युग में ब्रजभाषा का काव्य|accessmonthday=04 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
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#रामनाथ जोतिसी की रचनाओं में 'रामचंद्रोदय' मुख्य है। इसमें रामकथा को युग के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। इस काव्य पर [[केशव कवि|केशव]] की 'रामचंद्रिका' का प्रभाव लक्षित होता है। विभिन्न छंदों का सफल प्रयोग हुआ है।
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#[[रामचंद्र शुक्ल]], जो मूलत: आलोचक थे, ने 'एडविन आर्नल्ड' के आख्यान काव्य 'लाइट ऑफ़ एशिया' का 'बुद्धचरित' शीर्षक से भावानुवाद किया। शुक्ल जी की [[भाषा]] सरल और व्यावहारिक है।
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#[[राय कृष्णदास]] कृत 'ब्रजरस', जगदम्बा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' द्वारा रचित 'कवित्त-सवैये' और दुलारेलाल भार्गव की 'दुलारे-दोहावली' इस काल की प्रमुख व उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।
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#वियोगी हरि की 'वीर सतसई' में राष्ट्रीय भावनाओं की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है।
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#बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने अनेक स्फुट रचनाएँ लिखीं। लेकिन इनका [[ब्रजभाषा]] का वैशिष्टय 'ऊर्म्मिला' [[महाकाव्य]] में लक्षित होता है, जहाँ इन्होंने उर्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्रण किया है।
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#अनूप शर्मा के चम्पू काव्य 'फेरि-मिलिबो' ([[1938]]) में [[कुरुक्षेत्र]] में [[राधा]] और [[कृष्ण]] के पुनर्मिलन का मार्मिक वर्णन है।
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#किशोरी दास वाजपेयी की 'तरंगिणी' में रचना की दृष्टि से प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय देखा जा सकता है।
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#उमाशंकर वाजपेयी 'उमेश' की रचनाओं में भी भाषा और संवेदना की दृष्टि से नवीनता दिखाई पड़ती है।
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इन रचनाओं में नवीनता और छायावादी काव्य की सूक्ष्मता प्रकट हुई है, यदि इस भाषा का काव्य परिमाण में अधिक होता तो यह काल ब्रजभाषा का छायावाद साबित होता।
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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07:50, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

छायावादी युग (1920-1936) प्राय: 'द्विवेदी युग' के बाद के समय को कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और सुमित्रानंदन पंत जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। 'द्विवेदी युग' की प्रतिक्रिया का परिणाम ही 'छायावादी युग' है। इस युग में हिन्दी साहित्य में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर्तन हो गया। वस्तु निरूपण के स्थान पर अनुभूति निरूपण को प्रधानता प्राप्त हुई थी। प्रकृति का प्राणमय प्रदेश कविता में आया। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा 'छायावादी युग' के चार प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

मुख्य कवि और उनकी रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख स्तंभ कहे जाते हैं। 'छायावाद' का केवल पहला अर्थात् मूल अर्थ लेकर तो हिन्दी काव्य क्षेत्र में चलने वाली महादेवी वर्मा ही हैं। रामकुमार वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी, हरिवंशराय बच्चन और रामधारी सिंह दिनकर को भी 'छायावाद' ने प्रभावित किया। किंतु रामकुमार वर्मा आगे चलकर नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हुए, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रवादी धारा की ओर रहे, बच्चन ने प्रेम के राग को मुखर किया और दिनकर जी ने विद्रोह की आग को आवाज़ दी। अन्य कवियों में हरिकृष्ण 'प्रेमी', जानकी वल्लभ शास्त्री, भगवतीचरण वर्मा, उदयशंकर भट्ट, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' के नाम भी उल्लेखनीय हैं। इनकी रचनाएँ निम्नानुसार हैं-

जयशंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह-

'चित्राधार' (ब्रज भाषा में रचित कविताएँ), 'कानन-कुसुम', 'महाराणा का महत्त्व', 'करुणालय', 'झरना', 'आंसू', 'लहर' और 'कामायनी'।

सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह-

'वीणा', 'ग्रंथि', 'पल्लव', 'गुंजन', 'युगांत', 'युगवाणी', 'ग्राम्या', 'स्वर्ण-किरण', 'स्वर्ण-धूलि', 'युगान्तर', 'उत्तरा', 'रजत-शिखर', 'शिल्पी', 'प्रतिमा', 'सौवर्ण', 'वाणी', 'चिदंबरा', 'रश्मिबंध', 'कला और बूढ़ा चाँद', 'अभिषेकित', 'हरीश सुरी सुनहरी टेर', 'लोकायतन', 'किरण वीणा'।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1898-1961 ई.) के काव्य-संग्रह-

'अनामिका', 'परिमल', 'गीतिका', 'तुलसीदास', 'आराधना', 'कुकुरमुत्ता', 'अणिमा', 'नए पत्ते', 'बेला', 'अर्चना'।

महादेवी वर्मा (1907-1988 ई.) की काव्य रचनाएँ-

'रश्मि', 'निहार', 'नीरजा', 'सांध्यगीत', 'दीपशिखा', 'यामा'।

डॉ. रामकुमार वर्मा की काव्य रचनाएँ-

'अंजलि', 'रूपराशि', 'चितौड़ की चिता', 'चंद्रकिरण', 'अभिशाप', 'निशीथ', 'चित्ररेखा', 'वीर हमीर', 'एकलव्य'।

हरिकृष्ण 'प्रेमी' की काव्य रचनाएँ-

'आखों में', 'अनंत के पथ पर', 'रूपदर्शन', 'जादूगरनी', 'अग्निगान', 'स्वर्णविहान'।

काव्य की प्रवृत्तियाँ

  1. वैयक्तिकता
  2. प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना
  3. श्रंगारिकता
  4. रहस्यानुभूति
  5. तत्त्व चिंतन
  6. वेदना और करुणा की विवृत्ति
  7. मानवतावादी दृष्टिकोण
  8. नारी के प्रति नवीन दृष्टिकोण
  9. आदर्शवाद
  10. स्वच्छंदतावाद
  11. देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय भावना
  12. प्रतीकात्मकता
  13. चित्रात्मक भाषा एवं लाक्षणिक पदावली
  14. गेयता
  15. अलंकार-विधान

ब्रज भाषा का काव्य

'छायावादी युग' में कवियों का एक वर्ग ऐसा भी था, जो सूरदास, तुलसीदास, सेनापति, बिहारी और घनानंद जैसी समर्थ प्रतिभा संपन्न काव्य-धारा को जीवित रखने के लिए ब्रजभाषा में काव्य रचना कर रहे थे। 'भारतेंदु युग' में जहाँ ब्रजभाषा का काव्य प्रचुर मात्रा में लिखा गया, वहीं छायावाद आते-आते ब्रजभाषा में गौण रूप से काव्य रचना लिखी जाती रहीं। इन कवियों का मत था कि ब्रजभाषा में काव्य की लंबी परम्परा ने उसे काव्य के अनुकूल बना दिया है। छायावादी युग में ब्रजभाषा में काव्य रचना करने वाले कवियों में रामनाथ जोतिसी, रामचंद्र शुक्ल, राय कृष्णदास, जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी', दुलारे लाल भार्गव, वियोगी हरि, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', अनूप शर्मा, रामेश्वर 'करुण', किशोरीदास वाजपेयी, उमाशंकर वाजपेयी 'उमेश' प्रमुख हैं।[1]

  1. रामनाथ जोतिसी की रचनाओं में 'रामचंद्रोदय' मुख्य है। इसमें रामकथा को युग के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। इस काव्य पर केशव की 'रामचंद्रिका' का प्रभाव लक्षित होता है। विभिन्न छंदों का सफल प्रयोग हुआ है।
  2. रामचंद्र शुक्ल, जो मूलत: आलोचक थे, ने 'एडविन आर्नल्ड' के आख्यान काव्य 'लाइट ऑफ़ एशिया' का 'बुद्धचरित' शीर्षक से भावानुवाद किया। शुक्ल जी की भाषा सरल और व्यावहारिक है।
  3. राय कृष्णदास कृत 'ब्रजरस', जगदम्बा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' द्वारा रचित 'कवित्त-सवैये' और दुलारेलाल भार्गव की 'दुलारे-दोहावली' इस काल की प्रमुख व उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।
  4. वियोगी हरि की 'वीर सतसई' में राष्ट्रीय भावनाओं की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है।
  5. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने अनेक स्फुट रचनाएँ लिखीं। लेकिन इनका ब्रजभाषा का वैशिष्टय 'ऊर्म्मिला' महाकाव्य में लक्षित होता है, जहाँ इन्होंने उर्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्रण किया है।
  6. अनूप शर्मा के चम्पू काव्य 'फेरि-मिलिबो' (1938) में कुरुक्षेत्र में राधा और कृष्ण के पुनर्मिलन का मार्मिक वर्णन है।
  7. रामेश्वर 'करुण' की 'करुण-सतसई' (1930) में करुणा, अनुभूति की तीव्रता और समस्यामूलक अनेक व्यंग्यों को देखा जा सकता है।
  8. किशोरी दास वाजपेयी की 'तरंगिणी' में रचना की दृष्टि से प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय देखा जा सकता है।
  9. उमाशंकर वाजपेयी 'उमेश' की रचनाओं में भी भाषा और संवेदना की दृष्टि से नवीनता दिखाई पड़ती है।

इन रचनाओं में नवीनता और छायावादी काव्य की सूक्ष्मता प्रकट हुई है, यदि इस भाषा का काव्य परिमाण में अधिक होता तो यह काल ब्रजभाषा का छायावाद साबित होता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छायावादी युग में ब्रजभाषा का काव्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2013।

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