"जयमंगला" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
*यद्यपि इसके रचनाकाल के बारे में भी अनिश्चय की स्थिति है, तथापि विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर इसका रचनाकाल 600 ई. या इसके बाद माना गया <ref>19वीं कारिका पर युक्तिदीपिका,पृष्ठ 371 )</ref>है।  
 
*यद्यपि इसके रचनाकाल के बारे में भी अनिश्चय की स्थिति है, तथापि विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर इसका रचनाकाल 600 ई. या इसके बाद माना गया <ref>19वीं कारिका पर युक्तिदीपिका,पृष्ठ 371 )</ref>है।  
 
*उदयवीर शास्त्री इसे 600 ई. तक लिखा जा चुका मानते हैं <ref>सां. द. इ. पृ. 453</ref>।  
 
*उदयवीर शास्त्री इसे 600 ई. तक लिखा जा चुका मानते हैं <ref>सां. द. इ. पृ. 453</ref>।  
*गोपीनाथ कविराज के अनुसार इसके रचयिता बौद्ध थे। रचयिता का नाम शंकर (शंकराचार्य या शंकरार्य) है। ये गोविन्द आचार्य के शिष्य थे- ऐसा जयमंगला के अन्त में उपलब्ध वाक्य से ज्ञात होता है।  
+
*गोपीनाथ कविराज के अनुसार इसके रचयिता [[बौद्ध]] थे। रचयिता का नाम शंकर (शंकराचार्य या शंकरार्य) है। ये गोविन्द आचार्य के शिष्य थे- ऐसा जयमंगला के अन्त में उपलब्ध वाक्य से ज्ञात होता है।  
 
*जयमंगला भी सांख्यकारिका की व्याख्या है।  
 
*जयमंगला भी सांख्यकारिका की व्याख्या है।  
  

15:00, 9 जुलाई 2011 का अवतरण

  • यद्यपि इसके रचनाकाल के बारे में भी अनिश्चय की स्थिति है, तथापि विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर इसका रचनाकाल 600 ई. या इसके बाद माना गया [1]है।
  • उदयवीर शास्त्री इसे 600 ई. तक लिखा जा चुका मानते हैं [2]
  • गोपीनाथ कविराज के अनुसार इसके रचयिता बौद्ध थे। रचयिता का नाम शंकर (शंकराचार्य या शंकरार्य) है। ये गोविन्द आचार्य के शिष्य थे- ऐसा जयमंगला के अन्त में उपलब्ध वाक्य से ज्ञात होता है।
  • जयमंगला भी सांख्यकारिका की व्याख्या है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 19वीं कारिका पर युक्तिदीपिका,पृष्ठ 371 )
  2. सां. द. इ. पृ. 453

संबंधित लेख