तिरुअनंतपुरम

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तिरुअनंतपुरम केरल की राजधानी है। केरल दक्षिण भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ प्रकृति एवं संस्कृति का सबसे अलग संगम मिलता है। इस प्रदेश को एक तरफ अरब सागर के नीले जल तो दूसरी ओर पश्चिमी घाट की हरी-भरी पहाड़ियों ने अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान किया है। सबसे पहले इस राज्य को भारतीय मानसून प्रभावित करता है। इसलिए यहाँ की धरती काफ़ी उर्वर है। यहाँ लौंग, इलायची, काली मिर्च, काजू, केला, धान, कॉफी, चाय और रबर की अच्छी खेती होती है। केरल में नारियल एवं ताड़ के वृक्षों की भरमार है। नारियल को ‘केर’ भी कहा जाता है। कहते हैं केर वृक्षों की बहुत अधिक पैदावार के कारण ही इसका नाम केरल पड़ा।

तिरुअनंतपुरम की खूबियाँ

तिरुअनंतपुरम सात छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बसा है। ये पहाडि़याँ कई सदी पूर्व हरे-भरे वनों से आच्छादित थीं, जहाँ कुछ छोटे-छोटे गाँव भी थे। यहाँ के निवासियों को एक बार सबसे ऊँची पहाड़ी पर भगवान विष्णु की दिव्य प्रतिमा मिली थीं। विष्णु भगवान की प्रतिमा उसी जगह पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया था। यहाँ की आबादी मंदिर की स्थापना के बाद बढ़ती गई और धीरे-धीरे इन पहाडि़यों पर एक शहर बस गया। उस समय यह त्रावनकोर राज्य का एक हिस्सा था जिसकी राजधानी पद्मनाभपुरम थी।

इतिहास

18वीं शताब्दी में त्रावनकोर के महाराजा ने जब अपनी राजधानी यहीं स्थानांतरित कर ली तब तिरुअनंतपुरम का महत्व बढ़ा। बाद में यहाँ कुछ महल और इमारतों का निर्माण हुआ। ‘केरल’ की स्थापना आजादी के बाद मालाबार एवं त्रावनकोर को मिलाकर की गई तब तिरुअनंतपुरम को राजधानी बनाया गया। इस भव्य शहर में आज भी नूतन एवं पुरातन का विशिष्ट मेल दिखाई पड़ता है। यह वैसे तो काफ़ी बड़ा शहर है, किंतु पर्यटकों की आने-जाने के यहाँ केवल दो केंद्र हैं।

  • पहला केंद्र रेलवे स्टेशन के आसपास का क्षेत्र है, जहाँ राज्य का बस स्टैंड, अनेक होटल तथा पर्यटक सूचना केंद्र हैं।
  • दूसरा महात्मा गांधी मार्ग को कहा जा सकता है जिस पर कई दर्शनीय स्थल हैं।

पर्यटन स्थल

पद्मनाभ स्वामी मंदिर

तिरुअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का सबसे प्रमुख केंद्र है। यहाँ की मान्यता है कि जहाँ भगवान विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है। भगवान विष्णु को देश में समर्पित 108 दिव्य देशम मंदिर हैं। यह मंदिर उनमें से एक है। सन् 1733 ई॰ में इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। इस भव्य मंदिर का सप्त सोपान स्वरूप अपने शिल्प सौंदर्य से दूर से ही प्रभावित करता है। द्रविड़ एवं केरल शैली का मिला-जुला रूप है इस मंदिर का वास्तुशिल्प। इस मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है। यह गोपुरम 30 मीटर ऊँचा है, और यह गोपुरम बहुसंख्यक शिल्पों से सुसज्जित है। इस मंदिर के सामने एक बहुत बड़ा सरोवर है। जिसे पद्मतीर्थ कुलम कहते हैं। इसके आसपास खपरैल (लाल टाइल्स) की छत के सुंदर घर हैं। ऐसे पुराने घर यहाँ कई जगह देखने को मिलते हैं।

गणवेष

यहाँ दर्शन के लिए विशेष गणवेष है। मंदिर में प्रवेश पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहन कर ही करना होता है। ये गणवेष यहाँ किराए पर मिलते हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है। यहाँ भगवान अनंतशैया अर्थात सहस्त्रमुखी शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। तिरुअनंतपुरम का नाम भगवान के अनंत नामक नाग के आधार पर ही पड़ा है। तिरु यानी पवित्र एवं अनंत अर्थात सहस्त्रमुखी नाग तथा पुरम यानी आवास। भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को पद्मानाभ एवं अनंतशयनम् भी कहा जाता है। यहाँ दर्शन तीन हिस्सों में होते हैं।

  • पहले द्वार से भगवान विष्णु का मुख एवं सर्प की आकृति के दर्शन होते हैं।
  • दूसरे द्वार से भगवान का मध्यभाग तथा कमल में विराजमान ब्रह्मा के दर्शन होते हैं।
  • तीसरे भाग में भगवान के श्री चरणों के दर्शन होते हैं।

शिखर पर फहराते ध्वज पर गर्भगृह में विष्णु के वाहन गरुड़ की आकृति बनी है। इस मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी है। पौराणिक घटनाओं और चरित्रों का मोहक चित्रण मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलता है। जो मंदिर को अलग ही भव्यता प्रदान करता है। मंदिर के चारों ओर आयताकार रूप में एक गलियारा है। गलियारे में 324 स्तंभ हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है। ग्रेनाइट से बने मंदिर में नक्काशी के अनेक सुंदर उदाहरण देखने को मिलते हैं।

त्रावनकोर के महाराजा का महल

त्रावनकोर के महाराजा का महल मंदिर के निकट ही स्थित है। इस महल का निर्माण महाराजा स्वाति तिरुनल बलराम वर्मा द्वारा कराया गया था। वह एक कवि, संगीतज्ञ एवं समाज सुधारक थे। त्रावनकोर की पारंपरिक निर्माण शैली का यह महल एक सुंदर नमूना है।

=बेली टूरिस्ट विलेज

यहाँ का बेली टूरिस्ट विलेज एक आधुनिक पर्यटन आकर्षण कहा जा सकता है। यहाँ वेली लगून एवं उसके साथ ही विकसित मनमोहक पार्क एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है। यहाँ के सुंदर लैंडस्केप पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। वेली झील में वाटर स्पो‌र्ट्स एवं बोटिंग का आनंद भी लिया जा सकता है।

वेली झील

हरे-भरे वृक्षों से घिरी झील की सुंदरता हर दिशा से अलग ऩजर आती है। यहाँ सागरतट के पास वेली झील और अरब सागर का संगम भी दिखाई देता है। झील के पास विशाल उद्यान में कुछ झूले भी हैं। यहाँ बनी कुछ आधुनिक मूर्तियाँ भी पर्यटकों को अच्छी लगती हैं। झील पर एक हैंगिंग ब्रिज बना हुआ है, जिसे पार करते हुए एक अलग ही आनंद आता है। कुछ आगे निकल जाएँ तो सागरतट नजर आता है। लेकिन पर्यटक सागरतट की ओर, वेली टूरिस्ट विलेज के आकर्षण को छोड़ बहुत कम जाते हैं।

शंखमुघम बीच

शंखमुघम बीच शहर से 8 किमी दूर एयरपोर्ट के निकट है। जहाँ शाम के समय ही रौनक रहती है। यहाँ से पर्यटकों को सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य देखने को मिलता है। तट के सामने एक छोटे से पार्क में जलपरी की मनभावन मूर्ति है। पत्थर की 35 मीटर लंबी इस मूर्ति में लेटी हुई जलपरी मूर्तिशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण कही जा सकती है। मूर्तिकार ने मत्स्य कन्या के शरीर के उतार-चढ़ावों को इस तरह तराशा है कि वह सजीव लगती है।

कोवलम का समुद्रतट

कोवलम का समुद्रतट, तिरुअनंतपुरम की सबसे महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। तिरुअनंतपुरम की यात्रा कोवलम बीच देखे बिना अधूरी है। यह शहर से 16 किमी दक्षिण की ओर स्थित है। कोवलम अपने आप में संपूर्ण पर्यटन स्थल है। यह भारत के उन गिने-चुने सागरतटों में से एक है जो विश्व पर्यटन मानचित्र पर पहचान रखते हैं। कोवलम समुद्रतट की सुंदरता किसी को बांध लेने में सक्षम है। छोटी सी खाड़ी के समान रेतीला तट, बलखाती समुद्री लहरें, कतार से लगी छतरियों के नीचे विश्राम करते सैलानी, तट के छोर पर नजर आता लाइटहाउस, पीछे की ओर लहराते ताड़ के वृक्षों के झुरमुट, छोटे-छोटे सफेद बादलों से सजा नीला आसमान-सब कुछ एक मुकम्मल तस्वीर जैसा लगता है। समुद्री हवाओं के झोंके और लहरों का जबरदस्त शोर कुछ पल में ही एहसास करा देता है कि हम कोई तसवीर नहीं बल्कि वास्तविक दृश्य देख रहे हैं। वास्तव में कोवलम बीच संसार के सुंदरतम समुद्रतटों में से एक है।

यह मनमोहक तट तीन छोटी-छोटी अ‌र्द्धचंद्राकार खाड़ियों के रूप में विभाजित है, जिनके किनारों पर छोटे-छोटे चट्टानी टीले स्थित हैं। दक्षिणी छोर के ऊँचे टीले पर एक लाइट हाउस है। यहाँ पर अधिकतर विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती है। ठंडे देशों से आए इन लोगों को कोवलम का उन्मुक्त वातावरण बहुत रास आता है।

कोवलम तट पर सुबह के समय मछुआरों की गतिविधियाँ भी देखने को मिलती हैं। पहले यह मछुआरों का छोटा सा गाँव होता था। पर्यटन आकर्षण के रूप में इसकी पहचान 1930 में हुई, 1930 के दशक में यहाँ हिप्पियों का हुजूम आने लगा, तब इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और यहाँ कई छोटे-बड़े होटलों का निर्माण हुआ था। आज यहाँ छोटे होटलों से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के रेसॉर्ट और रेस्टोरेंट भी हैं। यहाँ कई देशों के व्यंजन एवं सी फूड आसानी से मिलते हैं। यहाँ सूर्य की किरणों के बदलते कोणों के साथ ही पानी रंग बदलता सा लगता है। इसे देखना भी एक अलग अनुभव है। शाम के समय तो एक अलग ही दृश्य ऩजर आता है। जब सन सेट पॉइंट पर खड़े लोग समुद्र में समाते सूर्य को देखते हैं।

संग्रहालयों का गढ़

महात्मा गांधी मार्ग मंदिर क्षेत्र के बाहर है। संग्रहालय एवं चिड़ियाघर इसके उत्तरी छोर के निकट है। यहाँ पहुँचकर लगता है शहर के मध्य किसी छोटे जंगल में आ गए हैं।

कुतिरामलिका पैलेस संग्रहालय

महल के एक भाग में कुतिरामलिका पैलेस संग्रहालय देखने लायक है। इस संग्रहालय में सुंदर चित्र, काष्ठ नक्काशी के नमूने, राज परिवार से संबंधित अनेक मूल्यवान वस्तुएँ, काष्ठ प्रतिमाएं, सिक्के आदि प्रदर्शित हैं। लकड़ी से बने महल के दो मंजिला भवन में कई झरोखे एवं खिड़कियां हैं। यहाँ समय-समय पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम पर्यटकों के लिए भी आयोजित किए जाते हैं।

नेपियर संग्रहालय

इस संग्रहालय का भवन भारतीय सीरियन वास्तुशैली में बना है जो 1853 में बनाया गया था। संग्रहालय में शामिल कई चीजें दर्शकों को प्रभावित करती हैं। ऐतिहासिक महत्व की कई वस्तुएँ मूर्तियाँ, आभूषण, हाथी दाँत की कलात्मक वस्तुएँ तथा 250 वर्ष पुरानी नक्काशी की कला देखते ही बनती है। नेपियर संग्रहालय के निकट ही श्री चित्रा कला दीर्घा है।

प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय

प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय चित्रा कला दीर्घा के निकट ही है जहाँ राज्य के प्राकृतिक इतिहास से जुड़ी वस्तुएँ देखी जा सकती हैं। यहाँ जीव-जंतुओं, पक्षी एवं समुद्री प्राणियों का इतिहास भी दर्शाया गया है। हरे-भरे विशाल परिसर में वनस्पति उद्यान एवं चड़ियाघर भी है।

चित्रा कला दीर्घा

चित्रा कला दीर्घा नेपियर संग्रहालय के निकट ही स्थित है। 1935 में स्थापित इस दीर्घा का भवन भी उत्कृष्ट वास्तुशिल्प वाला है। यह कलादीर्घा कलाप्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। इसके संग्रह में राजा रवि वर्मा, निकोलस रोरिक, स्वेतलोबा, रवींद्रनाथ टैगोर, जैमिनी राय जैसे महान कलाकारों के चित्र देखने को मिलते हैं। इस दीर्घा में राजपूत एवं मुग़ल शैली के लघु चित्र तथा तंजौर शैली के चित्र भी प्रदर्शित हैं। ऐसे अमूल्य चित्र संग्रह के साथ ही इस दीर्घा में जापान, चीन, तिब्बत एवं इंडोनेशिया आदि देशों के चित्र भी देखने लायक हैं।

तिरुअनंतपुरम के अन्य दर्शनीय स्थल

  • विज्ञान एवं तकनीक संग्रहालय
  • जैव तकनीक संग्रहालय
  • चाचा नेहरू बाल संग्रहालय,
  • प्रियदर्शिनी प्लैनेटोरियम
  • कन्नाकुन्नु महल
  • सचिवालय भवन भी देखने लायक है। यह स़फेद इमारत रोमन वास्तुशैली में निर्मित है।
  • आक्कुलम पर्यटन केंद्र
  • तिरुवल्लभ नौका विहार
  • नैय्यर बांध
  • पद्मानाभपुरम तथा
  • मिनी हिल स्टेशन पोनमुड़ी है।

आयुर्वेद

केरल की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का लाभ उठाने कोवलम और तिरुअनंतपुरम आने वाले कई पर्यटक आते हैं। दोनों ही जगह कई ऐसे केंद्र हैं जहाँ पर्यटक प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा रोगों का निदान पा सकते हैं और स्वास्थ्य लाभ कर सकते हैं। इन केंद्रों में दो प्रकार के पद्धतियों से चिकित्सा होती है।

  • इनमें एक है कायाकल्प चिकित्सा, जिसमें शरीर को पूरी तरह निरोगी बनाने का प्रयास किया जाता है।
  • दूसरी है औषधीय चिकित्सा जिसमें रोग विशेष का उपचार किया जाता है। यहाँ विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा ये उपचार किए जाते हैं।