"दो बीघा ज़मीन" के अवतरणों में अंतर

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दो बीघा ज़मीन [[1953]] में बनी फ़िल्म है। यह बंगाली फ़िल्म निर्देशक [[बिमल रॉय]] द्वारा निर्देशित है। [[बलराज साहनी]]-[[निरुपा रॉय]] इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई है। फ़िल्म के विषय में कहा जाता है की यह एक समाजवादी फ़िल्म है और [[भारत]] के समानांतर सिनेमा के प्रारंभिक महत्त्वपूर्ण फ़िल्म में एक है। जिसमें दो बीघा भूमि का क्षेत्र है। इस फ़िल्म से संगीतकार [[सलिल चौधरी]] भी विमल दा से जुड़ गये।
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'''दो बीघा ज़मीन''' ([[अंग्रेज़ी]]:  ''Do Bigha Zameen'') [[1953]] में बनी प्रसिद्ध हिन्दी फ़िल्म है। यह प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक [[बिमल रॉय]] द्वारा निर्देशित है। [[बलराज साहनी]] और [[निरुपा रॉय]] ने इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई। फ़िल्म के विषय में कहा जाता है कि यह एक समाजवादी फ़िल्म है और [[भारत]] के समानांतर सिनेमा के प्रारंभ में महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म से संगीतकार [[सलिल चौधरी]] थे। 'दो बीघा ज़मीन' की कहानी सलिल चौधरी ने ही लिखी थी। भारतीय किसानों की दुर्दशा पर केन्द्रित इस फ़िल्म को [[हिन्दी]] की महानतम फ़िल्मों में गिना जाता है। [[इटली]] के नव यथार्थवादी [[सिनेमा]] से प्रेरित विमल दा की दो बीघा ज़मीन एक ऐसे ग़रीब किसान की कहानी है जो शहर चला जाता है। शहर आकर वह रिक्शा खींचकर रुपये कमाता है ताकि वह रेहन पड़ी ज़मीन को छुड़ा सके। ग़रीब किसान और रिक्शा चालक की भूमिका में बलराज साहनी ने बेहतरीन अभिनय किया है। व्यावसायिक तौर पर 'दो बीघा ज़मीन' भले ही कुछ ख़ास सफल नहीं रही लेकिन इस फ़िल्म ने विमल दा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित कर दी। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने कांस फ़िल्म महोत्सव और कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह में पुरस्कार जीता। इस फ़िल्म ने [[हिन्दी सिनेमा]] में विमल राय के पैर जमा दिये। 'दो बीघा ज़मीन' के लिए बिमल राय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पहला फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड दिया गया।
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==कथावस्तु==
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कहानी में शम्भु किसान ([[बलराज साहनी]]), उसकी पत्नी पारो ([[निरुपा राय]]) व पुत्र कन्हैया (रतन कुमार) मुख्य पात्र है। फ़िल्म की कहानी में गाँव में भयानक [[अकाल]] पड़ने के बाद बारिश होती है जिससे सभी खुश हो जाते हैं। गाँव का ज़मींदार हरमन सिंह शहर के ठेकेदार से गाँव में ज़मीन बेचने का सौदा कर लेता है। वह शम्भु, (जो दो बीघा ज़मीन का मालिक है) से भी ज़मीन बेचने के लिए कहता है।
 
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[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-3.jpg|thumb|left|220px|दो बीघा ज़मीन <br /> Do Bigha Zamin]]
दो बीघा ज़मीन की कहानी सलिल चौधरी की ही लिखी हुई थी। भारतीय किसानों की दुर्दशा पर केंन्द्रित इस फ़िल्म को [[हिन्दी]] की महानतम फ़िल्मों में गिना जाता है। [[इटली]] के नव यथार्थवादी [[सिनेमा]] से प्रेरित विमल दा की दो बीघा ज़मीन एक ऐसे ग़रीब किसान की कहानी है जो शहर चला जाता है। शहर आकर वह रिक्शा खींचकर रुपया कमाता है ताकि वह रेहन पड़ी ज़मीन को छुड़ा सके। ग़रीब किसान और रिक्शा चालाक की भूमिका में बलराज साहनी ने जान डाल दी है। व्यावसायिक तौर पर दो बीघा ज़मीन भले ही कुछ ख़ास सफल नहीं रही लेकिन इस फ़िल्म ने विमल दा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित कर दी। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने कांत फ़िल्म महोत्सव और कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह में पुरस्कार जीता। इस फ़िल्म ने [[हिन्दी सिनेमा]] में विमल राय के पैर जमा दिये। दो बीघा ज़मीन को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर एवं फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड 1953 में शुरू किये गये थे। दो बीघा ज़मीन के लिए बिमल राय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पहला फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड दिया गया।
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हरमन सिंह को बहुत विश्वास था कि वह शम्भु की ज़मीन ख़रीद लेगा। शम्भु ने ज़मींदार से कई बार पैसा उधार लिया था जिसे वह चुका नहीं पाया था। हरमन सिंह ने शम्भु से उस ऋण के बदले में अपनी ज़मीन देने के लिए कहा। शम्भु ने उसे अपनी ज़मीन देने से मना कर दिया क्योंकि वह ज़मीन उसकी जीविका थी। हरमन सिंह दुखी हो गया। हरमन सिंह ने अगले ही दिन शम्भु से उधार लिया पैसा चुकाने के लिए कहा। शम्भु वापस आकर अपने पिता व बेटे की सहायता से ऋण की रकम 65 रुपये निकालता है। शम्भु अपने घर का सब कुछ बेचकर पैसों की व्यवस्था करता है और पैसे चुकाने ज़मींदार के पास जाता है। वहाँ शम्भु यह जानकर हैरान हो जाता है कि ऋण कि राशि 235 रुपये है। लेखाकर से हुई भूल को निपटाने के लिए शम्भु अदालत जाता है व लेखाकार से हुई भूल को बताता है। वहाँ शम्भु मुक़दमा हार जाता है। अदालत फैसला सुनाता है कि शम्भु तीन महीने के अन्दर अपना ऋण चुका दे अन्यथा उसकी ज़मीन की नीलामी कर दी जायेगी।
 
 
==कथावस्तु==
 
कहानी में शंभु किसान (बलराज साहनी), उसकी पत्नी पारो (निरुपा राय) व पुत्र कन्हैया (रतन कुमार) मुख्य पात्र है। फ़िल्म की कहानी में गाँव में भयानक अकाल पड़ने के बाद बारिश होती है जिससे सभी खुश हो जाते हैं। गाँव का जमींदार हरमन सिंह शहर के ठेकेदार से गाँव में ज़मीन बेचने का सौदा कर लेता है। वह शम्भु, (जो दो बीघा ज़मीन का मालिक है) से भी ज़मीन बेचने के लिए कहता है।
 
 
 
हरमन सिंह को बहुत विश्वास था कि वह शम्भु की ज़मीन ख़रीद लेगा। शम्भु ने जमींदार से कई बार पैसा उधार लिया था जिसे वह चुका नहीं पाया था। हरमन सिंह ने शम्भु से उस ॠण के बदले में अपनी ज़मीन देने के लिए कहा। शम्भु ने उसे अपनी ज़मीन देने से मना कर दिया क्योंकि वह ज़मीन उसकी जीविका थी। हरमन सिंह दुखी हो गया। हरमन सिंह ने अगले ही दिन शम्भु से उधार लिया पैसा चुकाने के लिए कहा।  
 
 
 
शम्भु वापस आकर अपने पिता व बेटे की सहायता से ॠण की रकम 65 रुपये निकालता है। शम्भु अपने घर सब कुछ बेचकर पैसो की व्यवस्था करता है और पैसे चुकाने जमींदार के पास जाता है। वहाँ शम्भु यह जानकर हैरान हो जाता है कि ॠण कि राशि 235 रुपये है। लेखाकर से हुई भूल को निपटाने के लिए शम्भु अदालत जाता है व लेखाकार से हुई भूल को बताता है। वहाँ शम्भु मुक़दमा हार जाता है। अदालत फैसला सुनाता है कि शम्भु तीन महीने के अन्दर अपना ॠण चुका दे अन्यथा उसकी ज़मीन की नीलामी कर दी जायेगी।
 
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-1.jpg|thumb|220px|left|[[मुराद]] (हरमन सिंह) और [[बलराज साहनी]] (शम्भु)<br />Murad (Harman Singh) And Balraj Sahni (Shambhu)]]
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-1.jpg|thumb|220px|left|[[मुराद]] (हरमन सिंह) और [[बलराज साहनी]] (शम्भु)<br />Murad (Harman Singh) And Balraj Sahni (Shambhu)]]
शम्भु पैसा वापस करने के लिए [[कलकत्ता]] जाता है वहाँ वह एक रिक्शा चालक बन जाता है तथा उसका बेटा कन्हैया एक मोची बन जाता है। तीन महीने बीत जाते हैं। ॠण चुकाने का दिन क़रीब आने पर शम्भु ज़्यादा पैसा कमाने के लिए बहुत तेजी से रिक्शा खींचता है। रिक्शा से पहिया निकल जाता है व शम्भु की दुर्घटना हो जाता है। अपने पिता की हालत को देखकर कन्हैया चोरी करना चालू कर देता है। जब शम्भु को कन्हैया के बारे में पता चलता है तो वह उसे बहुत बुरा भला कहता है। इधर शम्भु की पत्नी को शम्भु और कन्हैया के बारे में सोचकर चिन्ता होती है। वह उन दोनों को ढूढ़ने के लिए शहर आ जाती है वहाँ उसका कार से दुर्घटना हो जाती है। शम्भु सारा जमा किया हुआ पैसा उसके इलाज में लगा देता है।  
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शम्भु पैसा वापस करने के लिए [[कलकत्ता]] जाता है वहाँ वह एक रिक्शा चालक बन जाता है तथा उसका बेटा कन्हैया एक मोची बन जाता है। तीन महीने बीत जाते हैं। ऋण चुकाने का दिन क़रीब आने पर शम्भु ज़्यादा पैसा कमाने के लिए बहुत तेजी से रिक्शा खींचता है। रिक्शा से पहिया निकल जाता है व शम्भु की दुर्घटना हो जाती है। अपने पिता की हालत को देखकर कन्हैया चोरी करना चालू कर देता है। जब शम्भु को कन्हैया के बारे में पता चलता है तो वह उसे बहुत बुरा-भला कहता है। इधर शम्भु की पत्नी को शम्भु और कन्हैया के बारे में सोचकर चिन्ता होती है। वह उन दोनों को ढूढ़ने के लिए शहर आ जाती है वहाँ उसका कार से दुर्घटना हो जाती है। शम्भु सारा जमा किया हुआ पैसा उसके इलाज में लगा देता है। गाँव में शम्भु की ज़मीन की नीलामी हो जाती है क्योंकि शम्भु पैसा चुकाने में असमर्थ हो जाता है। ज़मीन ज़मींदार हरमन सिंह के पास चली जाती है और वहाँ कारख़ाने का काम चालू हो जाता है। शम्भु और उसका परिवार गाँव में अपनी ज़मीन देखने आता है। वहाँ ज़मीन की जगह कारख़ाना देखकर बहुत दुखी हो जाता है तथा मुठ्ठी भर गंदगी कारख़ाने पर फैंकता है। वहाँ कारख़ाने के  सुरक्षा कर्मी उसे बाहर निकाल देते हैं। फ़िल्म खत्म हो जाती है तथा शम्भु व उसका परिवार वहाँ से चला जाता है।
 
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==बलराज साहनी का अभिनय==
गाँव में शम्भु की ज़मीन की नीलामी हो जाती है क्योंकि शम्भु पैसा चुकाने में असमर्थ हो जाता है। ज़मीन जमींदार हरमन सिंह के पास चली जाती है और वहाँ कारख़ाने का काम चालू हो जाता है। शम्भु और उसका परिवार गाँव में अपनी ज़मीन देखने आता है। वहाँ ज़मीन की जगह कारख़ाना देखकर बहुत दुखी हो जाता है तथा मुठ्ठी भर गंदगी कारख़ाने पर फैंकता है। वहाँ कारख़ाने के  सुरक्षा कर्मी उसे बाहर निकाल देते हैं। फ़िल्म खत्म हो जाती है तथा शम्भु व उसका परिवार वहाँ से चला जाता है।
 
 
 
==रिक्शा-चालक के रूप में बलराज साहनी==
 
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-4.jpg|thumb|250px|[[बलराज साहनी]] (शम्भु) रिक्शा चलाते हुए<br />Balraj Sahni (Shambhu) As Richshaw Puller]]  
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-4.jpg|thumb|250px|[[बलराज साहनी]] (शम्भु) रिक्शा चलाते हुए<br />Balraj Sahni (Shambhu) As Richshaw Puller]]  
एक बार फ़िल्म जगत के प्रख्यात कलाकार बलराज साहनी अपनी विख्यात फ़िल्म "दो बीघा ज़मीन" तैयार कर रहे थे। उसमें उनकी भूमिका एक रिक्शा चालक की थी। वह ठहरे पढ़े-लिखे शहरी, रिक्शा-चालक होता है, बेपढ़ा देहाती। वह सोचने लगे कि उनकी भूमिका कहीं दर्शकों को बनावटी न लगे। अत: उन्होंने उसकी परीक्षा करने का एक अनोखा ढंग निकाला।
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"दो बीघा ज़मीन" में बलराज साहनी की भूमिका एक रिक्शा चालक की थी। बलराज साहनी पढ़े-लिखे शहरी थे और रिक्शा-चालक होता है, बेपढ़ा देहाती। वह सोचने लगे कि उनकी भूमिका कहीं दर्शकों को बनावटी न लगे। बलराज साहनी ने "दो बीघा ज़मीन" में अभिनय की तैयारी के लिए एक अनूठा तरीक़ा निकाला। अत: उन्होंने उसकी परीक्षा करने का एक अनोखा ढंग निकाला।
 
उन्होंने रिक्शा-चालक के कपड़े पहने और इधर-उधर घूमते हुए एक पान वाले की दुकान पर पहुँचे। थोड़ी देर तक एक ओर को चुपचाप खड़े रहने के बाद उन्होंने पनवाड़ी से देहाती भाव-भंगिमा में कहा, "भैया, सिगरेट का एक पैकेट देना।"
 
उन्होंने रिक्शा-चालक के कपड़े पहने और इधर-उधर घूमते हुए एक पान वाले की दुकान पर पहुँचे। थोड़ी देर तक एक ओर को चुपचाप खड़े रहने के बाद उन्होंने पनवाड़ी से देहाती भाव-भंगिमा में कहा, "भैया, सिगरेट का एक पैकेट देना।"
 
 
पनवाड़ी ने निगाह उठाकर देखा, सामने एक आदमी खड़ा है, जिसके सिर पर एक अंगोछा लिपटा है और बदन पर देहाती आदमी के कपड़े। उसने उसे दुतकारते हुए कहा, "जा-जा, बड़ा आया है सिगरेट लेने वाला!"
 
पनवाड़ी ने निगाह उठाकर देखा, सामने एक आदमी खड़ा है, जिसके सिर पर एक अंगोछा लिपटा है और बदन पर देहाती आदमी के कपड़े। उसने उसे दुतकारते हुए कहा, "जा-जा, बड़ा आया है सिगरेट लेने वाला!"
 
बलराज साहनी को उसके व्यवहार से बड़ी खुशी हुई और उन्हें भरोसा हो गया कि वह बड़ी खूबी से रिक्शा-चालक की भूमिका अदा कर सकेंगे। वह फ़िल्म बड़ी सफल हुई और उसका श्रेय मिला रिक्शा-चालक की भूमिका निभाने के लिए बलराज साहनी को।<ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/prerakprasang/2002/kalakar.htm |title= कुशल कलाकार |accessmonthday=[[1 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम |publisher=अभिव्यक्ति |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
बलराज साहनी को उसके व्यवहार से बड़ी खुशी हुई और उन्हें भरोसा हो गया कि वह बड़ी खूबी से रिक्शा-चालक की भूमिका अदा कर सकेंगे। वह फ़िल्म बड़ी सफल हुई और उसका श्रेय मिला रिक्शा-चालक की भूमिका निभाने के लिए बलराज साहनी को।<ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/prerakprasang/2002/kalakar.htm |title= कुशल कलाकार |accessmonthday=[[1 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम |publisher=अभिव्यक्ति |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
 
==निर्माण==
 
==निर्माण==
बलराज साहनी और निरुपा रॉय के मुख्य भूमिका वाली इस कहानी में एक ऐसे किसान की मजबूरियाँ दिखाई गई हैं जो अपनी दो बीघा ज़मीन बचाने के लिए लड़ रहा है। फ़िल्म शहरों की तरफ पलायन के विषय को भी उभारकर लाई। बाइसिकल थीव्ज से प्रेरित बिमल रॉय को यकीन नहीं था कि लंदन से लौटे [[अंग्रेज]] बलराज साहनी वास्तव में किसान शंभू की भूमिका के साथ न्याय भी कर पाएंगे लेकिन जब उन्हें शम्भू की भूमिका मिली तो बलराज ने अपने किरदार को उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई-कई दिन वो भूखे रहे। यहाँ तक कि इसे समझने के लिए उन्होंने रिक्शा चालकों के बीच वक़्त बिताया। परीक्षित साहनी बताते हैं कि उनकी माँ और बुआ को बलराज साहनी रिक्शे पर बैठाकर नंगे पैर घंटों रिक्शा खींचा करते थे ताकि वे फ़िल्म में अपनी भूमिका को सही तरह से निभा सकें।
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बलराज साहनी और निरुपा रॉय के मुख्य भूमिका वाली इस कहानी में एक ऐसे किसान की मजबूरियाँ दिखाई गई हैं जो अपनी 'दो बीघा ज़मीन' बचाने के लिए लड़ रहा है। फ़िल्म शहरों की तरफ पलायन के विषय को भी उभारकर लाई। बाइसिकल थीव्ज से प्रेरित बिमल रॉय को यकीन नहीं था कि [[लंदन]] से लौटे [[अंग्रेज]] बलराज साहनी वास्तव में किसान शम्भू की भूमिका के साथ न्याय भी कर पाएंगे लेकिन जब उन्हें शम्भू की भूमिका मिली तो बलराज ने अपने किरदार को उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई-कई दिन वो भूखे रहे। यहाँ तक कि इसे समझने के लिए उन्होंने रिक्शा चालकों के बीच वक़्त बिताया। परीक्षित साहनी बताते हैं कि उनकी माँ और बुआ को बलराज साहनी रिक्शे पर बैठाकर नंगे पैर घंटों रिक्शा खींचा करते थे ताकि वे फ़िल्म में अपनी भूमिका को सही तरह से निभा सकें।
 
 
 
==मुख्य कलाकार==
 
==मुख्य कलाकार==
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-2.jpg|thumb|250px|[[मीना कुमारी]] (ठकुराइन) आजा री निंदिया तु आ गाते हुए]]
 
[[चित्र:Do-Bigha-Zamin-2.jpg|thumb|250px|[[मीना कुमारी]] (ठकुराइन) आजा री निंदिया तु आ गाते हुए]]
*बलराज साहनी - शम्भु माथो
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*[[बलराज साहनी]] - शम्भु माथो
 
*[[निरुपा राय]] - पार्वती  (पारो)
 
*[[निरुपा राय]] - पार्वती  (पारो)
 
*रतन कुमार - कन्हैया
 
*रतन कुमार - कन्हैया
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*आजा री निंदिया तु आ… :- [[लता मंगेशकर]]
 
*आजा री निंदिया तु आ… :- [[लता मंगेशकर]]
 
*अज़ब तोरि दुनिया हो मेरे राजा… :- [[मोहम्मद रफ़ी]]
 
*अज़ब तोरि दुनिया हो मेरे राजा… :- [[मोहम्मद रफ़ी]]
*धरती कहे पुकार के… :- मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस
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*धरती कहे पुकार के… :- [[मन्ना डे]], लता मंगेशकर, कोरस
 
*हरियाला सावन ढोल बजाता आया… :- मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस
 
*हरियाला सावन ढोल बजाता आया… :- मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस
==पुरस्कार==
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==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
* 1953: फ़िल्मफ़ेयर- '''सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म'''
 
* 1953: फ़िल्मफ़ेयर- '''सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म'''
 
* 1953: फ़िल्मफ़ेयर- '''सर्वश्रेष्ठ निर्देशक'''  
 
* 1953: फ़िल्मफ़ेयर- '''सर्वश्रेष्ठ निर्देशक'''  
 
* कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह - सामाजिक प्रगति के लिए पुरस्कार
 
* कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह - सामाजिक प्रगति के लिए पुरस्कार
====<u>कांस फ़िल्म महोत्सव</u>====
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====कांस फ़िल्म महोत्सव====
1953 में एक अनजान से डायरेक्टर ने दर्शकों के सामने रखा अपना शाहकार...दो बीघा ज़मीन। इस फ़िल्म ने न केवल सबसे अच्छी फ़िल्म के लिए पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार पाया बल्कि डायरेक्टर बिमल रॉय को पहला बेस्ट डायरेक्टर का खिताब भी दिया गया। 1953 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की अखबारों में धज्जियाँ उड़ाई गईं। बिमल रॉय इससे काफ़ी निराश हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने नए-नए स्थापित फ़िल्मफेयर पुरस्कार समारोह में जाने से मना कर दिया। ये भी अजीबोग़रीब है कि उस रात घोषित 5 में से दो पुरस्कार दो बीघा ज़मीन को मिले। यही फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय कांत फ़िल्म महोत्सव में पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फ़िल्म भी बनी।
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[[1953]] में एक अनजान से निर्देशक ने दर्शकों के सामने रखा अपना शाहकार... 'दो बीघा ज़मीन'। इस फ़िल्म ने न केवल सबसे अच्छी फ़िल्म के लिए पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार पाया बल्कि निर्देशक [[बिमल रॉय]] को पहला सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का खिताब भी दिया गया। 1953 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की अखबारों में धज्जियाँ उड़ाई गईं। बिमल रॉय इससे काफ़ी निराश हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने नए-नए स्थापित फ़िल्मफेयर पुरस्कार समारोह में जाने से मना कर दिया। ये भी अजीबोग़रीब है कि उस रात घोषित 5 में से दो पुरस्कार 'दो बीघा ज़मीन' को मिले। यही फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय कांस फ़िल्म महोत्सव में पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फ़िल्म भी बनी।
 
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
{{cite web |url=http://www.udanti.com/2010/08/blog-post_2631.html |title=ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना |accessmonthday=[[1 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=उदंती |language=[[हिन्दी]]}}
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*[http://www.udanti.com/2010/08/blog-post_2631.html विमल राय]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{फ़िल्म}}
 
{{फ़िल्म}}

08:29, 31 जनवरी 2015 का अवतरण

दो बीघा ज़मीन
Do-bigha-zameen.jpg
निर्देशक बिमल रॉय
निर्माता बिमल रॉय
लेखक सलिल चौधरी (कहानी), पॉल महेन्द्र (हिन्दी वार्ता), ऋषिकेश मुखर्जी (परिदृश्य)
कलाकार बलराज साहनी, निरुपा राय, रतन कुमार, मुराद, राजलक्ष्मी
प्रसिद्ध चरित्र शम्भु
संगीत सलिल चौधरी
गीतकार शैलेंद्र
गायक लता मंगेशकर, मुहम्मद रफ़ी और मन्ना डे
प्रसिद्ध गीत आजा री आ निंदिया तू आ
छायांकन कमल बोस
संपादन ऋषिकेश मुखर्जी
वितरक शीमारो वीडियो प्राइवेट लिमिटेड
प्रदर्शन तिथि 1953
अवधि 142 मिनट
भाषा हिन्दी
पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार; सामाजिक प्रगति के लिए पुरस्कार

दो बीघा ज़मीन (अंग्रेज़ी: Do Bigha Zameen) 1953 में बनी प्रसिद्ध हिन्दी फ़िल्म है। यह प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक बिमल रॉय द्वारा निर्देशित है। बलराज साहनी और निरुपा रॉय ने इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई। फ़िल्म के विषय में कहा जाता है कि यह एक समाजवादी फ़िल्म है और भारत के समानांतर सिनेमा के प्रारंभ में महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म से संगीतकार सलिल चौधरी थे। 'दो बीघा ज़मीन' की कहानी सलिल चौधरी ने ही लिखी थी। भारतीय किसानों की दुर्दशा पर केन्द्रित इस फ़िल्म को हिन्दी की महानतम फ़िल्मों में गिना जाता है। इटली के नव यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित विमल दा की दो बीघा ज़मीन एक ऐसे ग़रीब किसान की कहानी है जो शहर चला जाता है। शहर आकर वह रिक्शा खींचकर रुपये कमाता है ताकि वह रेहन पड़ी ज़मीन को छुड़ा सके। ग़रीब किसान और रिक्शा चालक की भूमिका में बलराज साहनी ने बेहतरीन अभिनय किया है। व्यावसायिक तौर पर 'दो बीघा ज़मीन' भले ही कुछ ख़ास सफल नहीं रही लेकिन इस फ़िल्म ने विमल दा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान स्थापित कर दी। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने कांस फ़िल्म महोत्सव और कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह में पुरस्कार जीता। इस फ़िल्म ने हिन्दी सिनेमा में विमल राय के पैर जमा दिये। 'दो बीघा ज़मीन' के लिए बिमल राय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पहला फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड दिया गया।

कथावस्तु

कहानी में शम्भु किसान (बलराज साहनी), उसकी पत्नी पारो (निरुपा राय) व पुत्र कन्हैया (रतन कुमार) मुख्य पात्र है। फ़िल्म की कहानी में गाँव में भयानक अकाल पड़ने के बाद बारिश होती है जिससे सभी खुश हो जाते हैं। गाँव का ज़मींदार हरमन सिंह शहर के ठेकेदार से गाँव में ज़मीन बेचने का सौदा कर लेता है। वह शम्भु, (जो दो बीघा ज़मीन का मालिक है) से भी ज़मीन बेचने के लिए कहता है।

दो बीघा ज़मीन
Do Bigha Zamin

हरमन सिंह को बहुत विश्वास था कि वह शम्भु की ज़मीन ख़रीद लेगा। शम्भु ने ज़मींदार से कई बार पैसा उधार लिया था जिसे वह चुका नहीं पाया था। हरमन सिंह ने शम्भु से उस ऋण के बदले में अपनी ज़मीन देने के लिए कहा। शम्भु ने उसे अपनी ज़मीन देने से मना कर दिया क्योंकि वह ज़मीन उसकी जीविका थी। हरमन सिंह दुखी हो गया। हरमन सिंह ने अगले ही दिन शम्भु से उधार लिया पैसा चुकाने के लिए कहा। शम्भु वापस आकर अपने पिता व बेटे की सहायता से ऋण की रकम 65 रुपये निकालता है। शम्भु अपने घर का सब कुछ बेचकर पैसों की व्यवस्था करता है और पैसे चुकाने ज़मींदार के पास जाता है। वहाँ शम्भु यह जानकर हैरान हो जाता है कि ऋण कि राशि 235 रुपये है। लेखाकर से हुई भूल को निपटाने के लिए शम्भु अदालत जाता है व लेखाकार से हुई भूल को बताता है। वहाँ शम्भु मुक़दमा हार जाता है। अदालत फैसला सुनाता है कि शम्भु तीन महीने के अन्दर अपना ऋण चुका दे अन्यथा उसकी ज़मीन की नीलामी कर दी जायेगी।

मुराद (हरमन सिंह) और बलराज साहनी (शम्भु)
Murad (Harman Singh) And Balraj Sahni (Shambhu)

शम्भु पैसा वापस करने के लिए कलकत्ता जाता है वहाँ वह एक रिक्शा चालक बन जाता है तथा उसका बेटा कन्हैया एक मोची बन जाता है। तीन महीने बीत जाते हैं। ऋण चुकाने का दिन क़रीब आने पर शम्भु ज़्यादा पैसा कमाने के लिए बहुत तेजी से रिक्शा खींचता है। रिक्शा से पहिया निकल जाता है व शम्भु की दुर्घटना हो जाती है। अपने पिता की हालत को देखकर कन्हैया चोरी करना चालू कर देता है। जब शम्भु को कन्हैया के बारे में पता चलता है तो वह उसे बहुत बुरा-भला कहता है। इधर शम्भु की पत्नी को शम्भु और कन्हैया के बारे में सोचकर चिन्ता होती है। वह उन दोनों को ढूढ़ने के लिए शहर आ जाती है वहाँ उसका कार से दुर्घटना हो जाती है। शम्भु सारा जमा किया हुआ पैसा उसके इलाज में लगा देता है। गाँव में शम्भु की ज़मीन की नीलामी हो जाती है क्योंकि शम्भु पैसा चुकाने में असमर्थ हो जाता है। ज़मीन ज़मींदार हरमन सिंह के पास चली जाती है और वहाँ कारख़ाने का काम चालू हो जाता है। शम्भु और उसका परिवार गाँव में अपनी ज़मीन देखने आता है। वहाँ ज़मीन की जगह कारख़ाना देखकर बहुत दुखी हो जाता है तथा मुठ्ठी भर गंदगी कारख़ाने पर फैंकता है। वहाँ कारख़ाने के सुरक्षा कर्मी उसे बाहर निकाल देते हैं। फ़िल्म खत्म हो जाती है तथा शम्भु व उसका परिवार वहाँ से चला जाता है।

बलराज साहनी का अभिनय

बलराज साहनी (शम्भु) रिक्शा चलाते हुए
Balraj Sahni (Shambhu) As Richshaw Puller

"दो बीघा ज़मीन" में बलराज साहनी की भूमिका एक रिक्शा चालक की थी। बलराज साहनी पढ़े-लिखे शहरी थे और रिक्शा-चालक होता है, बेपढ़ा देहाती। वह सोचने लगे कि उनकी भूमिका कहीं दर्शकों को बनावटी न लगे। बलराज साहनी ने "दो बीघा ज़मीन" में अभिनय की तैयारी के लिए एक अनूठा तरीक़ा निकाला। अत: उन्होंने उसकी परीक्षा करने का एक अनोखा ढंग निकाला। उन्होंने रिक्शा-चालक के कपड़े पहने और इधर-उधर घूमते हुए एक पान वाले की दुकान पर पहुँचे। थोड़ी देर तक एक ओर को चुपचाप खड़े रहने के बाद उन्होंने पनवाड़ी से देहाती भाव-भंगिमा में कहा, "भैया, सिगरेट का एक पैकेट देना।" पनवाड़ी ने निगाह उठाकर देखा, सामने एक आदमी खड़ा है, जिसके सिर पर एक अंगोछा लिपटा है और बदन पर देहाती आदमी के कपड़े। उसने उसे दुतकारते हुए कहा, "जा-जा, बड़ा आया है सिगरेट लेने वाला!" बलराज साहनी को उसके व्यवहार से बड़ी खुशी हुई और उन्हें भरोसा हो गया कि वह बड़ी खूबी से रिक्शा-चालक की भूमिका अदा कर सकेंगे। वह फ़िल्म बड़ी सफल हुई और उसका श्रेय मिला रिक्शा-चालक की भूमिका निभाने के लिए बलराज साहनी को।[1]

निर्माण

बलराज साहनी और निरुपा रॉय के मुख्य भूमिका वाली इस कहानी में एक ऐसे किसान की मजबूरियाँ दिखाई गई हैं जो अपनी 'दो बीघा ज़मीन' बचाने के लिए लड़ रहा है। फ़िल्म शहरों की तरफ पलायन के विषय को भी उभारकर लाई। बाइसिकल थीव्ज से प्रेरित बिमल रॉय को यकीन नहीं था कि लंदन से लौटे अंग्रेज बलराज साहनी वास्तव में किसान शम्भू की भूमिका के साथ न्याय भी कर पाएंगे लेकिन जब उन्हें शम्भू की भूमिका मिली तो बलराज ने अपने किरदार को उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई-कई दिन वो भूखे रहे। यहाँ तक कि इसे समझने के लिए उन्होंने रिक्शा चालकों के बीच वक़्त बिताया। परीक्षित साहनी बताते हैं कि उनकी माँ और बुआ को बलराज साहनी रिक्शे पर बैठाकर नंगे पैर घंटों रिक्शा खींचा करते थे ताकि वे फ़िल्म में अपनी भूमिका को सही तरह से निभा सकें।

मुख्य कलाकार

मीना कुमारी (ठकुराइन) आजा री निंदिया तु आ गाते हुए
  • बलराज साहनी - शम्भु माथो
  • निरुपा राय - पार्वती (पारो)
  • रतन कुमार - कन्हैया
  • मुराद - ठाकुर हरमन सिंह
  • मीना कुमारी - ठकुराइन
  • राजलक्ष्मी - नायाबजी
  • नाना पाल्सीकर - धांगु माथो (शम्भु के पिता)
  • नूर - नूरजहाँ के रूप में
  • नासिर हुसैन - रिक्शा (पेचकश नज़ीर हुसैन के रूप में)
  • रेखा मलिक - रेखा के रूप में
  • जगदीप - लालू उस्ताद, जूते पॉलिश करने वाला लड़का

मुख्य गाने

  • आजा री निंदिया तु आ… :- लता मंगेशकर
  • अज़ब तोरि दुनिया हो मेरे राजा… :- मोहम्मद रफ़ी
  • धरती कहे पुकार के… :- मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस
  • हरियाला सावन ढोल बजाता आया… :- मन्ना डे, लता मंगेशकर, कोरस

पुरस्कार एवं सम्मान

  • 1953: फ़िल्मफ़ेयर- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म
  • 1953: फ़िल्मफ़ेयर- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक
  • कार्लोवी वैरी फ़िल्म समारोह - सामाजिक प्रगति के लिए पुरस्कार

कांस फ़िल्म महोत्सव

1953 में एक अनजान से निर्देशक ने दर्शकों के सामने रखा अपना शाहकार... 'दो बीघा ज़मीन'। इस फ़िल्म ने न केवल सबसे अच्छी फ़िल्म के लिए पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार पाया बल्कि निर्देशक बिमल रॉय को पहला सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का खिताब भी दिया गया। 1953 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की अखबारों में धज्जियाँ उड़ाई गईं। बिमल रॉय इससे काफ़ी निराश हो गए। यहाँ तक कि उन्होंने नए-नए स्थापित फ़िल्मफेयर पुरस्कार समारोह में जाने से मना कर दिया। ये भी अजीबोग़रीब है कि उस रात घोषित 5 में से दो पुरस्कार 'दो बीघा ज़मीन' को मिले। यही फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय कांस फ़िल्म महोत्सव में पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फ़िल्म भी बनी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुशल कलाकार (हिन्दी) (एच.टी.एम) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 1 सितंबर, 2010

बाहरी कड़ियाँ

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