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|प्रसिद्धि =राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चिम करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
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'''भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''National Archives of India'')  में [[भारत सरकार]] के अप्रचलित अभिलेखों का भंडारण किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है। यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। यह भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़े अभिलेख संग्रहकर्ता में से है। [[1891]] में स्थापित इस संस्था का पूर्व नाम ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेंट’ था। [[1947]] से अब तक किस के पास सर्वे ऑफ इंडिया से प्राप्त 50,000 से ज्यादा फाइलें, खंड, [[पांडुलिपि|पांडुलिपियाँ]] और नक्शे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के साथ एक सूक्ष्म फिल्म पुस्तकालय भी है जिसमें [[भारत]] के [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] के साथ संबंधों से संबंधित आंकड़े हैं। 1765 से 1873 के बीच लिखे गए पत्रों का भी इसमें संग्रहण है। साक्षी आधुनिक भारतीय इतिहास के हजारों खंड इसके पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। इंग्लैंड, फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क और अमेरिका से जुड़ी भारतीय सामग्री की माइक्रोफिल्म प्रतियां भी यहां हैं। महत्वपूर्ण शख्सियतों के निजी प्रपत्र भी संस्था में हैं। 1947 से यह केंद्र अभिलेखन प्रबंधन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन भी कर रहा है।<ref>पुस्तक- भारतीय संस्कृति | पृष्ठ संख्या- 378</ref>
 
'''भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''National Archives of India'')  में [[भारत सरकार]] के अप्रचलित अभिलेखों का भंडारण किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है। यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। यह भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़े अभिलेख संग्रहकर्ता में से है। [[1891]] में स्थापित इस संस्था का पूर्व नाम ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेंट’ था। [[1947]] से अब तक किस के पास सर्वे ऑफ इंडिया से प्राप्त 50,000 से ज्यादा फाइलें, खंड, [[पांडुलिपि|पांडुलिपियाँ]] और नक्शे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के साथ एक सूक्ष्म फिल्म पुस्तकालय भी है जिसमें [[भारत]] के [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] के साथ संबंधों से संबंधित आंकड़े हैं। 1765 से 1873 के बीच लिखे गए पत्रों का भी इसमें संग्रहण है। साक्षी आधुनिक भारतीय इतिहास के हजारों खंड इसके पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। इंग्लैंड, फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क और अमेरिका से जुड़ी भारतीय सामग्री की माइक्रोफिल्म प्रतियां भी यहां हैं। महत्वपूर्ण शख्सियतों के निजी प्रपत्र भी संस्था में हैं। 1947 से यह केंद्र अभिलेखन प्रबंधन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन भी कर रहा है।<ref>पुस्तक- भारतीय संस्कृति | पृष्ठ संख्या- 378</ref>
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की उत्‍पत्‍ति के शुरुआती तत्‍वों को 1860 के समय से देखा जा सकता है जब सिविल ऑडिटर सैडमैन ने अपनी रिपोर्ट में ठसाठस भरे कार्यालयों में जगह बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। इसके लिए उन्‍होंने दैनिक प्रकृति के कागजातों को नष्‍ट करने तथा सभी महत्‍वपूर्ण रिकॉर्ड को 'वृहत केन्‍द्रीय अभिलेखागार' में स्‍थानान्‍तरित करने की बात की। तथापि, सन 1889 में प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू. फॉरेस्‍ट, एलफिनस्‍टोन कॉलेज, बोम्‍बे को भारत सरकार के विदेश विभाग के रिकॅार्ड्स की जांच करने का उत्‍तरदायित्‍व सौंपने से पहले तक इस विषय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। इससे पहले बॉम्‍बे रिकॅार्ड ऑफिस में अपने कार्यों के लिए उन्‍होंने एक अभिलेखागारविद के रूप में ख्‍याति अर्जित की थी। अपनी रिपोर्ट में उन्‍होंने ईस्‍ट इंडिया कंपनी के प्रशासन संबंधी सभी रिकॉर्डों को एक केन्‍द्रीय भंडार घर में स्‍थानांतरित करने की ठोस दलीलें दीं। इसके परिणामस्‍वरूप, [[11 मार्च]] [[1891]] में इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) अस्‍तित्‍व में आया जो इम्‍पीरियल सचिवालय भवन, कलकत्‍ता ([[कोलकाता]]) में स्‍थित था। प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू फॉरेस्‍ट को इसका प्रभारी अधिकारी बनाया गया। उनका मुख्‍य कार्य सभी विभागों के रिकॉर्ड की जांच, स्‍थानान्‍तरण, व्‍यवस्‍था और सूचीबद्ध करना तथा विभिन्‍न विभागीय पुस्‍तकालयों के स्‍थान पर एक केन्‍द्रीय पुस्‍तकालय की व्‍यवस्‍था करना था। जी.डब्‍ल्‍यू. के पश्‍चात, इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) का कार्य एस.सी.हिल (1900), सी.आर.विल्‍सन (1902), एन.एल. हालवर्ड (1904), ई. डेनीसन रोज़ (1905), ए.एफ.स्‍कॉलफील्‍ड (1915), आर.ए.ब्‍लाकेर (1919), जे.एम.मित्रा (1920) और राय बहादुर ए.एफ.एम. अब्‍दुल अली (1922-1938) के कार्यकाल में अच्‍छी तरह से आगे बढ़ा ये लोग अपने आप में विद्वान के साथ-साथ रिकॉर्ड कीपर भी थे।<ref name="cul">{{cite web |url=http://www.indiaculture.nic.in/hi/archives|title=अभिलेखागार |accessmonthday=8 अप्रैल|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आधिकारिक वेबसाइट संस्कृति मंत्रालय|language=हिंदी }}</ref>  
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भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की उत्‍पत्‍ति के शुरुआती तत्‍वों को 1860 के समय से देखा जा सकता है जब सिविल ऑडिटर सैडमैन ने अपनी रिपोर्ट में ठसाठस भरे कार्यालयों में जगह बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। इसके लिए उन्‍होंने दैनिक प्रकृति के कागजातों को नष्‍ट करने तथा सभी महत्‍वपूर्ण रिकॉर्ड को 'वृहत केन्‍द्रीय अभिलेखागार' में स्‍थानान्‍तरित करने की बात की। तथापि, सन 1889 में प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू. फॉरेस्‍ट, एलफिनस्‍टोन कॉलेज, बोम्‍बे को भारत सरकार के विदेश विभाग के रिकॅार्ड्स की जांच करने का उत्‍तरदायित्‍व सौंपने से पहले तक इस विषय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। इससे पहले बॉम्‍बे रिकॅार्ड ऑफिस में अपने कार्यों के लिए उन्‍होंने एक अभिलेखागारविद के रूप में ख्‍याति अर्जित की थी।
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अपनी रिपोर्ट में उन्‍होंने ईस्‍ट इंडिया कंपनी के प्रशासन संबंधी सभी रिकॉर्डों को एक केन्‍द्रीय भंडार घर में स्‍थानांतरित करने की ठोस दलीलें दीं। इसके परिणामस्‍वरूप, [[11 मार्च]] [[1891]] में इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) अस्‍तित्‍व में आया जो इम्‍पीरियल सचिवालय भवन, कलकत्‍ता ([[कोलकाता]]) में स्‍थित था। प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू फॉरेस्‍ट को इसका प्रभारी अधिकारी बनाया गया। उनका मुख्‍य कार्य सभी विभागों के रिकॉर्ड की जांच, स्‍थानान्‍तरण, व्‍यवस्‍था और सूचीबद्ध करना तथा विभिन्‍न विभागीय पुस्‍तकालयों के स्‍थान पर एक केन्‍द्रीय पुस्‍तकालय की व्‍यवस्‍था करना था।
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जी.डब्‍ल्‍यू. के पश्‍चात, इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) का कार्य एस.सी.हिल (1900), सी.आर.विल्‍सन (1902), एन.एल. हालवर्ड (1904), ई. डेनीसन रोज़ (1905), ए.एफ.स्‍कॉलफील्‍ड (1915), आर.ए.ब्‍लाकेर (1919), जे.एम.मित्रा (1920) और राय बहादुर ए.एफ.एम. अब्‍दुल अली (1922-1938) के कार्यकाल में अच्‍छी तरह से आगे बढ़ा ये लोग अपने आप में विद्वान के साथ-साथ रिकॉर्ड कीपर भी थे।<ref name="cul">{{cite web |url=http://www.indiaculture.nic.in/hi/archives|title=अभिलेखागार |accessmonthday=8 अप्रैल|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आधिकारिक वेबसाइट संस्कृति मंत्रालय|language=हिंदी }}</ref>  
 
==परिरक्षण==
 
==परिरक्षण==
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[[चित्र:National-Archives-of-India-1.jpeg|thumb|250px|भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, [[डाक टिकट]]]]
 
* राष्‍ट्रीय अभिलेखागार सुरक्षात्‍मक, सुधारात्‍मक और पुनर्स्‍थापना संबंधी प्रक्रियाओं के माध्‍यम से ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ताकि इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु को सुनिश्चित किया जा सके।
 
* राष्‍ट्रीय अभिलेखागार सुरक्षात्‍मक, सुधारात्‍मक और पुनर्स्‍थापना संबंधी प्रक्रियाओं के माध्‍यम से ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ताकि इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु को सुनिश्चित किया जा सके।
 
* विभाग के पास एक संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला भी है जिसे 1941 में स्‍थापित किया गया था। इसकी शुरूआत से ही ये पुनर्स्‍थापन के लिए स्‍वदेशी तकनीकों को विकास करने, पुनर्स्‍थापन और संग्रहण के लिए आवश्‍यक सामग्रियों के परीक्षण जैसे अनुसंधान और विकास संबंधी कार्यों में कार्यरत है।
 
* विभाग के पास एक संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला भी है जिसे 1941 में स्‍थापित किया गया था। इसकी शुरूआत से ही ये पुनर्स्‍थापन के लिए स्‍वदेशी तकनीकों को विकास करने, पुनर्स्‍थापन और संग्रहण के लिए आवश्‍यक सामग्रियों के परीक्षण जैसे अनुसंधान और विकास संबंधी कार्यों में कार्यरत है।
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* पोर्टेबल थर्मोस्‍टेटीकली कंट्रोलर एयरटाइट वॉल्‍ट को तैयार करना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धि रही है जो एक बहुकार्यात्‍मक चैम्‍बर है और जिसे स्‍टरलाइजेशन दस्‍तावेजों पुस्‍तकों तथा अन्‍य सामाग्रियों के वैपर फेज़ डि-एसिडिफिकेशन तथा इन्‍हें सुखाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।<ref name="cul"/>
 
* पोर्टेबल थर्मोस्‍टेटीकली कंट्रोलर एयरटाइट वॉल्‍ट को तैयार करना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धि रही है जो एक बहुकार्यात्‍मक चैम्‍बर है और जिसे स्‍टरलाइजेशन दस्‍तावेजों पुस्‍तकों तथा अन्‍य सामाग्रियों के वैपर फेज़ डि-एसिडिफिकेशन तथा इन्‍हें सुखाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।<ref name="cul"/>
 
==प्रतिलिपिकरण==
 
==प्रतिलिपिकरण==
* राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चिम करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
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* राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चित करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
 
* माइक्रोफिल्मिंग को उपयोग अथवा प्राकृतिक तौर पर पुराना पड़ने और स्‍याही हल्‍का होने से होने वाली खस्‍ता हालत के विरूद्ध रिकॉर्डों के परिरक्षण हेतु एक उपाय के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
 
* माइक्रोफिल्मिंग को उपयोग अथवा प्राकृतिक तौर पर पुराना पड़ने और स्‍याही हल्‍का होने से होने वाली खस्‍ता हालत के विरूद्ध रिकॉर्डों के परिरक्षण हेतु एक उपाय के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
 
* प्रतिलिपिकरण प्रभाग आधुनिक मशीनों से सुसज्जित है। यह अपने सामान्‍य कार्यकलाप के अलावा न केवल अध्‍येताओं की आवश्‍यकताओं को पूरा करता है बल्कि [[आग]], [[बाढ़]], युद्ध और तोड-फोड़ के खिलाफ एक सुरक्षात्‍मक उपाय के रूप में मूल्‍यवान अभिलेखों की सुरक्षा माइक्रोफिल्‍म तैयार करने के भारी-भरकम कार्य में भी लगा हुआ है।
 
* प्रतिलिपिकरण प्रभाग आधुनिक मशीनों से सुसज्जित है। यह अपने सामान्‍य कार्यकलाप के अलावा न केवल अध्‍येताओं की आवश्‍यकताओं को पूरा करता है बल्कि [[आग]], [[बाढ़]], युद्ध और तोड-फोड़ के खिलाफ एक सुरक्षात्‍मक उपाय के रूप में मूल्‍यवान अभिलेखों की सुरक्षा माइक्रोफिल्‍म तैयार करने के भारी-भरकम कार्य में भी लगा हुआ है।
 
* माइक्रोफिल्‍म रोल्‍स की नेगेटिव कोपिज़ के इसके सेट भोपाल के क्षेत्रीय कार्यालय में रखे जा रहे हैं। यह प्रभाग एनालॉग माइक्रोफिल्‍म चित्रों को डिजीटल चित्रों में भी परिवर्तित कर रहा है ताकि इन्‍हें विशेष रूप से तैयार अभिलेखीय सूचना प्रबंधन प्रणाली साफ्टवेयर से जोड़ा जा सके।
 
* माइक्रोफिल्‍म रोल्‍स की नेगेटिव कोपिज़ के इसके सेट भोपाल के क्षेत्रीय कार्यालय में रखे जा रहे हैं। यह प्रभाग एनालॉग माइक्रोफिल्‍म चित्रों को डिजीटल चित्रों में भी परिवर्तित कर रहा है ताकि इन्‍हें विशेष रूप से तैयार अभिलेखीय सूचना प्रबंधन प्रणाली साफ्टवेयर से जोड़ा जा सके।
 
* रेपोग्राफी विंग में एक सचल माइक्रोफिल्मिंग यूनिट भी है जो ऐसे दस्‍तावेजों की माइक्रोफिल्‍म बनाने के लिए देश के विभिन्‍न भागों में भ्रमण करती है जिन्‍हें राष्‍ट्रीय अभिलेखागार, [[नई दिल्‍ली]] अथवा [[भोपाल]], [[जयपुर]], [[पुदुचेरी]] और [[भुवनेश्वर]] में इसके क्षेत्रीय कार्यालाय / रिकॉर्ड सेंटर में नहीं लाया जा सकता हो।<ref name="cul"/>
 
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08:51, 24 मई 2022 के समय का अवतरण

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार का प्रतीक चिह्न
अन्य नाम ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेंट’ (पूर्व नाम)
उद्देश्य इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है।
स्थापना 11 मार्च, 1891
मुख्यालय यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है।
प्रसिद्धि राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चित करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
अन्य जानकारी 1947 से अब तक किस के पास सर्वे ऑफ इंडिया से प्राप्त 50,000 से ज्यादा फाइलें, खंड, पांडुलिपियाँ और नक्शे हैं।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (अंग्रेज़ी: National Archives of India) में भारत सरकार के अप्रचलित अभिलेखों का भंडारण किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर प्रशासकों और शोधार्थियों के द्वारा किया जाता है। यह भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक कार्यालय है। यह भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़े अभिलेख संग्रहकर्ता में से है। 1891 में स्थापित इस संस्था का पूर्व नाम ‘इंपीरियल रिकार्ड्स डिपार्टमेंट’ था। 1947 से अब तक किस के पास सर्वे ऑफ इंडिया से प्राप्त 50,000 से ज्यादा फाइलें, खंड, पांडुलिपियाँ और नक्शे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के साथ एक सूक्ष्म फिल्म पुस्तकालय भी है जिसमें भारत के यूरोप और अमेरिका के साथ संबंधों से संबंधित आंकड़े हैं। 1765 से 1873 के बीच लिखे गए पत्रों का भी इसमें संग्रहण है। साक्षी आधुनिक भारतीय इतिहास के हजारों खंड इसके पुस्तकालय में उपलब्ध हैं। इंग्लैंड, फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क और अमेरिका से जुड़ी भारतीय सामग्री की माइक्रोफिल्म प्रतियां भी यहां हैं। महत्वपूर्ण शख्सियतों के निजी प्रपत्र भी संस्था में हैं। 1947 से यह केंद्र अभिलेखन प्रबंधन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन भी कर रहा है।[1]

इतिहास

भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की उत्‍पत्‍ति के शुरुआती तत्‍वों को 1860 के समय से देखा जा सकता है जब सिविल ऑडिटर सैडमैन ने अपनी रिपोर्ट में ठसाठस भरे कार्यालयों में जगह बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। इसके लिए उन्‍होंने दैनिक प्रकृति के कागजातों को नष्‍ट करने तथा सभी महत्‍वपूर्ण रिकॉर्ड को 'वृहत केन्‍द्रीय अभिलेखागार' में स्‍थानान्‍तरित करने की बात की। तथापि, सन 1889 में प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू. फॉरेस्‍ट, एलफिनस्‍टोन कॉलेज, बोम्‍बे को भारत सरकार के विदेश विभाग के रिकॅार्ड्स की जांच करने का उत्‍तरदायित्‍व सौंपने से पहले तक इस विषय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। इससे पहले बॉम्‍बे रिकॅार्ड ऑफिस में अपने कार्यों के लिए उन्‍होंने एक अभिलेखागारविद के रूप में ख्‍याति अर्जित की थी।

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, डाक टिकट

अपनी रिपोर्ट में उन्‍होंने ईस्‍ट इंडिया कंपनी के प्रशासन संबंधी सभी रिकॉर्डों को एक केन्‍द्रीय भंडार घर में स्‍थानांतरित करने की ठोस दलीलें दीं। इसके परिणामस्‍वरूप, 11 मार्च 1891 में इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) अस्‍तित्‍व में आया जो इम्‍पीरियल सचिवालय भवन, कलकत्‍ता (कोलकाता) में स्‍थित था। प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू फॉरेस्‍ट को इसका प्रभारी अधिकारी बनाया गया। उनका मुख्‍य कार्य सभी विभागों के रिकॉर्ड की जांच, स्‍थानान्‍तरण, व्‍यवस्‍था और सूचीबद्ध करना तथा विभिन्‍न विभागीय पुस्‍तकालयों के स्‍थान पर एक केन्‍द्रीय पुस्‍तकालय की व्‍यवस्‍था करना था।

जी.डब्‍ल्‍यू. के पश्‍चात, इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) का कार्य एस.सी.हिल (1900), सी.आर.विल्‍सन (1902), एन.एल. हालवर्ड (1904), ई. डेनीसन रोज़ (1905), ए.एफ.स्‍कॉलफील्‍ड (1915), आर.ए.ब्‍लाकेर (1919), जे.एम.मित्रा (1920) और राय बहादुर ए.एफ.एम. अब्‍दुल अली (1922-1938) के कार्यकाल में अच्‍छी तरह से आगे बढ़ा ये लोग अपने आप में विद्वान के साथ-साथ रिकॉर्ड कीपर भी थे।[2]

परिरक्षण

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, डाक टिकट
  • राष्‍ट्रीय अभिलेखागार सुरक्षात्‍मक, सुधारात्‍मक और पुनर्स्‍थापना संबंधी प्रक्रियाओं के माध्‍यम से ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ताकि इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु को सुनिश्चित किया जा सके।
  • विभाग के पास एक संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला भी है जिसे 1941 में स्‍थापित किया गया था। इसकी शुरूआत से ही ये पुनर्स्‍थापन के लिए स्‍वदेशी तकनीकों को विकास करने, पुनर्स्‍थापन और संग्रहण के लिए आवश्‍यक सामग्रियों के परीक्षण जैसे अनुसंधान और विकास संबंधी कार्यों में कार्यरत है।
  • यह प्रयोगशाला टेंसाइल टेस्‍टर, फोल्डिंग एंड्योरेंस टेस्‍टर और ब्रस्टिंग एंड्योरेंस टेस्‍टर जैसी कागज परीक्षण मशीनों से सुसज्जित है जिससे कि परिरक्षणात्‍मक सामग्री के विभिन्‍न किस्‍मों के परीक्षण में सुविधा हो सके।
  • विभाग द्वारा सेल्‍यूलोज़ ऐकेलेट फॉयल तथा टिश्‍यू पेपर की मदद से दस्‍तावेजों की मरम्‍मत और पुनर्नवीकृत करने की एक अनोखी प्रक्रिया विकसित की गई है जिसे विश्‍व भर में सोल्‍वेंट अथवा हैंड लैमिनेशन प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
  • अधिक पुराना होने तथा लचीलापन समाप्‍त होने के कारण सूख और तड़क जाने वाले ताम्र पत्रों को प्रयोगशाला पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को तैयार करने में यह सफल रही है।
  • पोर्टेबल थर्मोस्‍टेटीकली कंट्रोलर एयरटाइट वॉल्‍ट को तैयार करना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धि रही है जो एक बहुकार्यात्‍मक चैम्‍बर है और जिसे स्‍टरलाइजेशन दस्‍तावेजों पुस्‍तकों तथा अन्‍य सामाग्रियों के वैपर फेज़ डि-एसिडिफिकेशन तथा इन्‍हें सुखाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।[2]

प्रतिलिपिकरण

  • राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चित करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
  • माइक्रोफिल्मिंग को उपयोग अथवा प्राकृतिक तौर पर पुराना पड़ने और स्‍याही हल्‍का होने से होने वाली खस्‍ता हालत के विरूद्ध रिकॉर्डों के परिरक्षण हेतु एक उपाय के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
  • प्रतिलिपिकरण प्रभाग आधुनिक मशीनों से सुसज्जित है। यह अपने सामान्‍य कार्यकलाप के अलावा न केवल अध्‍येताओं की आवश्‍यकताओं को पूरा करता है बल्कि आग, बाढ़, युद्ध और तोड-फोड़ के खिलाफ एक सुरक्षात्‍मक उपाय के रूप में मूल्‍यवान अभिलेखों की सुरक्षा माइक्रोफिल्‍म तैयार करने के भारी-भरकम कार्य में भी लगा हुआ है।
  • माइक्रोफिल्‍म रोल्‍स की नेगेटिव कोपिज़ के इसके सेट भोपाल के क्षेत्रीय कार्यालय में रखे जा रहे हैं। यह प्रभाग एनालॉग माइक्रोफिल्‍म चित्रों को डिजीटल चित्रों में भी परिवर्तित कर रहा है ताकि इन्‍हें विशेष रूप से तैयार अभिलेखीय सूचना प्रबंधन प्रणाली साफ्टवेयर से जोड़ा जा सके।
  • रेपोग्राफी विंग में एक सचल माइक्रोफिल्मिंग यूनिट भी है जो ऐसे दस्‍तावेजों की माइक्रोफिल्‍म बनाने के लिए देश के विभिन्‍न भागों में भ्रमण करती है जिन्‍हें राष्‍ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्‍ली अथवा भोपाल, जयपुर, पुदुचेरी और भुवनेश्वर में इसके क्षेत्रीय कार्यालाय / रिकॉर्ड सेंटर में नहीं लाया जा सकता हो।[2]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- भारतीय संस्कृति | पृष्ठ संख्या- 378
  2. 2.0 2.1 2.2 अभिलेखागार (हिंदी) आधिकारिक वेबसाइट संस्कृति मंत्रालय। अभिगमन तिथि: 8 अप्रैल, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख