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|निर्माता=महबूब ख़ाँ
 
|निर्माता=महबूब ख़ाँ
 
|लेखक=महबूब ख़ाँ,वज़ाहत मिर्ज़ा, एस अली रज़ा
 
|लेखक=महबूब ख़ाँ,वज़ाहत मिर्ज़ा, एस अली रज़ा
|कलाकार=[[नर्गिस]], [[राजकुमार]], [[राजेन्द्र कुमार]], [[सुनील दत्त]] और [[कन्हैया लाल]]
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|कलाकार=[[नर्गिस]], [[राजकुमार]], [[राजेन्द्र कुमार]], [[सुनील दत्त]] और कन्हैया लाल
 
|प्रसिद्ध चरित्र=सुक्खी लाला
 
|प्रसिद्ध चरित्र=सुक्खी लाला
|प्रसिद्ध गीत=दुनियाँ में जब आये हैं तो…, मतवाला जिया, ओ मेरे लाल आजा
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|प्रसिद्ध गीत=दुनिया में जब आये हैं तो…, मतवाला जिया, ओ मेरे लाल आजा
 
|संगीत=[[नौशाद]]
 
|संगीत=[[नौशाद]]
 
|गीतकार=[[शकील बदायूंनी]]
 
|गीतकार=[[शकील बदायूंनी]]
|गायक=[[लता मंगेशकर]], शमशाद बेगम, मुहम्मद रफ़ी और मन्ना डे
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|गायक=[[लता मंगेशकर]], [[शमशाद बेगम]], [[मुहम्मद रफ़ी]] और [[मन्ना डे]]
 
|छायांकन=फ़रूदन ए ईरानी
 
|छायांकन=फ़रूदन ए ईरानी
 
|संपादन=शमसुदीन क़ादरी
 
|संपादन=शमसुदीन क़ादरी
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[[चित्र:Nargis2-Motherindia.jpg|thumb|left|220px|[[नर्गिस]] (राधा), मास्टर साजिद ख़ान (बिरजू) और मास्टर सुरेन्द्र (रामू) <br />Nargis (Radha), Master Sajid Khan (Birju), Master Surendra (Ramu)]]
 
[[चित्र:Nargis2-Motherindia.jpg|thumb|left|220px|[[नर्गिस]] (राधा), मास्टर साजिद ख़ान (बिरजू) और मास्टर सुरेन्द्र (रामू) <br />Nargis (Radha), Master Sajid Khan (Birju), Master Surendra (Ramu)]]
 
==निर्माण==
 
==निर्माण==
"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण [[गुजरात]] में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फ़िल्म का कुछ हिस्सा सरार और [[काशीपुरा]] गांवों में भी फ़िल्माया गया था। <ref>(सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था)</ref> आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा ज़िले में आते हैं।
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"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण [[गुजरात]] में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फ़िल्म का कुछ हिस्सा सरार और [[काशीपुरा]] गांवों में भी फ़िल्माया गया था। <ref>सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था</ref> आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा ज़िले में आते हैं।
 
==गीत-संगीत==  
 
==गीत-संगीत==  
फ़िल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। [[शकील बदायूंनी]] के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक ख़ूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फ़िल्म के ज़्यादातर गीत शमशाद बेगम, [[मुहम्मद रफ़ी]] और मन्ना डे से गवाएँ, जबकि [[नर्गिस]] पर फ़िल्माए गए गीतों में उन्होंने [[लता मंगेशकर]] की आवाज़ का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएँ उतार दीं और यही वजह है कि फ़िल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।  
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फ़िल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। [[शकील बदायूंनी]] के लिखे भावपूर्ण गीतों को [[नौशाद]] की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक ख़ूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फ़िल्म के ज़्यादातर गीत [[शमशाद बेगम]], [[मुहम्मद रफ़ी]] और मन्ना डे से गवाएँ, जबकि [[नर्गिस]] पर फ़िल्माए गए गीतों में उन्होंने [[लता मंगेशकर]] की आवाज़ का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएँ उतार दीं और यही वजह है कि फ़िल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।  
 
[[चित्र:Mother-India-2.jpg|thumb|left|[[नर्गिस]] (राधा), [[सुनील दत्त]] (बिरजू) और [[राजेन्द्र कुमार]] (रामू)<br />Nargis (Radha), Sunil Dutt (Birju), Rajendra Kumar (Ramu)]]
 
[[चित्र:Mother-India-2.jpg|thumb|left|[[नर्गिस]] (राधा), [[सुनील दत्त]] (बिरजू) और [[राजेन्द्र कुमार]] (रामू)<br />Nargis (Radha), Sunil Dutt (Birju), Rajendra Kumar (Ramu)]]
 
==छायाकंन==
 
==छायाकंन==
"मदर इंडिया" के छायाकंन [[फ़रदून ए. ईरानी]] ने किया था। जिनके साथ महबूब की दोस्ती फ़िल्म "अल हिलाल" के वक़्त से ही थी। महबूब की फ़िल्मों में फरदून की छायाकंन देखते ही बनता है, ख़ास तौर पर महबूब की "अंदाज" और "अमर" जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्मों में तो फरदून ने कमाल की छायाकंन किया है। फरदून ने "मदर इंडिया" के दृश्यों को ख़ूबसूरत बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। आउटडोर लोकेशन के दृश्यों में फरदून का कैमरा कुदरत की ख़ूबसूरत कारीगरी को बख़ूबी परदे पर चित्रित करता है। फ़िल्म में गाँव-देहात के दृश्य भी बड़े जीवंत होकर उभरते हैं। <blockquote>दूर-दूर तक फैला नीला आसमान....रास्ते में धूल उड़ाती हुई बैलगाड़ी चली जा रही है....बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं की रूनझुन की मधुर ध्वनि आपके दिल को छू जाती है!</blockquote>
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"मदर इंडिया" के छायाकंन [[फ़रदून ए. ईरानी]] ने किया था। जिनके साथ महबूब की दोस्ती फ़िल्म "अल हिलाल" के वक़्त से ही थी। महबूब की फ़िल्मों में फरदून की छायाकंन देखते ही बनता है, ख़ास तौर पर महबूब की "अंदाज" और "अमर" जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्मों में तो फरदून ने कमाल की छायाकंन किया है। फरदून ने "मदर इंडिया" के दृश्यों को ख़ूबसूरत बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। आउटडोर लोकेशन के दृश्यों में फरदून का कैमरा कुदरत की ख़ूबसूरत कारीगरी को बख़ूबी परदे पर चित्रित करता है। फ़िल्म में गाँव-देहात के दृश्य भी बड़े जीवंत होकर उभरते हैं। <blockquote>दूर-दूर तक फैला नीला आसमान....रास्ते में धूल उड़ाती हुई [[बैलगाड़ी]] चली जा रही है....बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं की रूनझुन की मधुर ध्वनि आपके दिल को छू जाती है!</blockquote>
 
==संवाद==
 
==संवाद==
 
"मदर इंडिया" का स्क्रीनप्ले बहुत प्रभावी था और इसके डायलॉग बेहद असरदार थे। "औरत" के डायलॉग वज़ाहत मिर्जा ने लिखे थे, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि महबूब ने "मदर इंडिया" के संवाद लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा। वज़ाहत मिर्जा को नाटकीय दृश्यों की संरचना करने में महारत हासिल थी और "मदर इंडिया" के दृश्यों में भी उन्होंने अपना यही कमाल दिखाया। फ़िल्म के किरदारों की ज़िंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा उनके ग़मों और खुशियों को उन्होंने अपने दमदार संवादों में पिरोया। यही कारण है कि राधा, श्यामू या बिरजू जैसे किरदार इतने विश्वसनीय बनकर परदे पर उभरे। <ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/article.aspx?id=18802 |title= ऐसे बनी "मदर इंडिया" |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
"मदर इंडिया" का स्क्रीनप्ले बहुत प्रभावी था और इसके डायलॉग बेहद असरदार थे। "औरत" के डायलॉग वज़ाहत मिर्जा ने लिखे थे, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि महबूब ने "मदर इंडिया" के संवाद लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा। वज़ाहत मिर्जा को नाटकीय दृश्यों की संरचना करने में महारत हासिल थी और "मदर इंडिया" के दृश्यों में भी उन्होंने अपना यही कमाल दिखाया। फ़िल्म के किरदारों की ज़िंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा उनके ग़मों और खुशियों को उन्होंने अपने दमदार संवादों में पिरोया। यही कारण है कि राधा, श्यामू या बिरजू जैसे किरदार इतने विश्वसनीय बनकर परदे पर उभरे। <ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/article.aspx?id=18802 |title= ऐसे बनी "मदर इंडिया" |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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महबूब और [[वज़ाहत मिर्ज़ा]] दोनों का स्वभाव एक जैसा था, इसलिए उनमें अक्सर झगड़ा हो जाता था। "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान भी ऐसा कई बार हुआ। नौबत यहाँ तक आ गई कि एक मर्तबा तो वज़ाहत मिर्जा ने महबूब के पास इत्तिला भिजवा दी कि वे फ़िल्म के लिए डायलॉग नहीं लिखेंगे। तब महबूब ने ही एक रास्ता निकाला। उन्होंने सैयद अली रजा को मध्यस्थ बनाया और उन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे वज़ाहत मिर्जा से संवाद लिखवाएँ और सैट पर महबूब के पास पहुंचाएँ। अली रजा इससे पहले महबूब के लिए "अंदाज" की कहानी लिख चुके थे। वे वज़ाहत मिर्जा का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन जब "मदर इंडिया" के क्रेडिट्स देने की बारी आई, तो महबूब ने संवाद लेखक के तौर पर वज़ाहत मिर्जा के साथ अली रजा का नाम भी देने का फैसला किया। वज़ाहत मिर्जा को जब यह बात पता लगी, तो उन्होंने एतराज किया और इस बारे में एक चिट्ठी महबूब के पास भेजी....लेकिन तब तक महबूब अपनी फ़िल्म को अंतिम रूप दे चुके थे और उनके पास इतना वक़्त भी नहीं था कि वे फ़िल्म की के्रडिट लाइन में कुछ फेरबदल कर पाते।
 
महबूब और [[वज़ाहत मिर्ज़ा]] दोनों का स्वभाव एक जैसा था, इसलिए उनमें अक्सर झगड़ा हो जाता था। "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान भी ऐसा कई बार हुआ। नौबत यहाँ तक आ गई कि एक मर्तबा तो वज़ाहत मिर्जा ने महबूब के पास इत्तिला भिजवा दी कि वे फ़िल्म के लिए डायलॉग नहीं लिखेंगे। तब महबूब ने ही एक रास्ता निकाला। उन्होंने सैयद अली रजा को मध्यस्थ बनाया और उन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे वज़ाहत मिर्जा से संवाद लिखवाएँ और सैट पर महबूब के पास पहुंचाएँ। अली रजा इससे पहले महबूब के लिए "अंदाज" की कहानी लिख चुके थे। वे वज़ाहत मिर्जा का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन जब "मदर इंडिया" के क्रेडिट्स देने की बारी आई, तो महबूब ने संवाद लेखक के तौर पर वज़ाहत मिर्जा के साथ अली रजा का नाम भी देने का फैसला किया। वज़ाहत मिर्जा को जब यह बात पता लगी, तो उन्होंने एतराज किया और इस बारे में एक चिट्ठी महबूब के पास भेजी....लेकिन तब तक महबूब अपनी फ़िल्म को अंतिम रूप दे चुके थे और उनके पास इतना वक़्त भी नहीं था कि वे फ़िल्म की के्रडिट लाइन में कुछ फेरबदल कर पाते।
  
महबूब ने "मदर इंडिया" के टाइटल रोल में नर्गिस को लिया, जिन्हें वे 1943 में बनी अपनी फ़िल्म "तकदीर" के जरिए जमाने के सामने ला चुके थे। नर्गिस की गिनती पचास के दशक की क़ामयाब अभिनेत्रियों में होती थी। उस दौर में उन्होंने अनेक फ़िल्मों में मुख्य नायिका के तौर पर काम किया, लेकिन "मदर इंडिया" का रोल उनके लिए कितना अहम था, यह खुद नर्गिस ने एक इंटरव्यू में बताया था। उन्होंने कहा था, "....जब मुझे "मदर इंडिया" का रोल ऑफर किया गया, तो मुझे लगा कि एक कलाकार होने के नाते मैंने जो उम्मीदें लगा रखी हैं, आख़िरकार उनके पूरा होने का वक़्त आ गया है।....." <ref>(फ़िल्मफेअर / 25 अप्रेल 1958)</ref>
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महबूब ने "मदर इंडिया" के टाइटल रोल में नर्गिस को लिया, जिन्हें वे 1943 में बनी अपनी फ़िल्म "तकदीर" के जरिए जमाने के सामने ला चुके थे। नर्गिस की गिनती पचास के दशक की कामयाब अभिनेत्रियों में होती थी। उस दौर में उन्होंने अनेक फ़िल्मों में मुख्य नायिका के तौर पर काम किया, लेकिन "मदर इंडिया" का रोल उनके लिए कितना अहम था, यह खुद नर्गिस ने एक इंटरव्यू में बताया था। उन्होंने कहा था, "....जब मुझे "मदर इंडिया" का रोल ऑफर किया गया, तो मुझे लगा कि एक कलाकार होने के नाते मैंने जो उम्मीदें लगा रखी हैं, आख़िरकार उनके पूरा होने का वक़्त आ गया है।....." <ref>फ़िल्मफेअर / 25 अप्रेल 1958</ref>
  
जब कभी लोकप्रिय भारतीय फ़िल्मों के बारे में रायशुमारी की जाती है, "मदर इंडिया" हमेशा पहली पायदान पर खड़ी नज़र आती है। हिन्दी सिनेमा की चंद क्लासिक फ़िल्मों में "मदर इंडिया" की गिनती की जाती है और सिर्फ़ अपने देश में ही नहीं, दुनिया के बाकी मुल्कों में भी हर पीढ़ी के दर्शकों ने इस फ़िल्म को पसंद किया है। <ref>(नियोगी बुक्स, [[नई दिल्ली]] से प्रकाशित नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक "द डायलॉग ऑफ़ मदर इंडिया" के कुछ अंश।)</ref>
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जब कभी लोकप्रिय भारतीय फ़िल्मों के बारे में रायशुमारी की जाती है, "मदर इंडिया" हमेशा पहली पायदान पर खड़ी नज़र आती है। [[हिन्दी सिनेमा]] की चंद क्लासिक फ़िल्मों में "मदर इंडिया" की गिनती की जाती है और सिर्फ़ अपने देश में ही नहीं, दुनिया के बाकी मुल्कों में भी हर पीढ़ी के दर्शकों ने इस फ़िल्म को पसंद किया है। <ref>नियोगी बुक्स, [[नई दिल्ली]] से प्रकाशित नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक "द डायलॉग ऑफ़ मदर इंडिया" के कुछ अंश।</ref>
 
==निर्माता==
 
==निर्माता==
महबूब ख़ान की मदर इंडिया भारतीय सिनेमा की सबसे महत्त्वपूर्ण और सराही जाने वाली फ़िल्मों में से एक है। मदर इंडिया की पटकथा भी ज़बर्दस्त थी। फ़िल्म की क़ामयाबी में उसकी सशक्त पटकथा का भी अहम योगदान रहा था।
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महबूब ख़ान की मदर इंडिया भारतीय सिनेमा की सबसे महत्त्वपूर्ण और सराही जाने वाली फ़िल्मों में से एक है। मदर इंडिया की पटकथा भी ज़बर्दस्त थी। फ़िल्म की कामयाबी में उसकी सशक्त पटकथा का भी अहम योगदान रहा था।
 
<ref>लेखिका और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार [[नसरीन मुन्नी कबीर]] ने मेहबूब ख़ान की इस क्लासिक फ़िल्म के संवादों को एक किताब की शक्ल में संजोया है। वे इससे पहले भी सिनेमा पर कई किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं वर्ष 1996 में प्रकाशित गुरुदत्त : अ लाइफ इन सिनेमा, वर्ष 2009 में प्रकाशित लता मंगेशकर : इन हर ओन वॉइस में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ़ आवारा : राज कपूर्स इम्मोर्टल क्लासिक। उनकी नई किताब में मदर इंडिया के संवादों के साथ ही शकील बदायूंनी के सदाबहार गीतों को भी [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]], उर्दू और रोमन लिपि में जगह दी गई है।</ref>
 
<ref>लेखिका और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार [[नसरीन मुन्नी कबीर]] ने मेहबूब ख़ान की इस क्लासिक फ़िल्म के संवादों को एक किताब की शक्ल में संजोया है। वे इससे पहले भी सिनेमा पर कई किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं वर्ष 1996 में प्रकाशित गुरुदत्त : अ लाइफ इन सिनेमा, वर्ष 2009 में प्रकाशित लता मंगेशकर : इन हर ओन वॉइस में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ़ आवारा : राज कपूर्स इम्मोर्टल क्लासिक। उनकी नई किताब में मदर इंडिया के संवादों के साथ ही शकील बदायूंनी के सदाबहार गीतों को भी [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]], उर्दू और रोमन लिपि में जगह दी गई है।</ref>
हालांकि सिनेमा एक दृश्य माध्यम है, लेकिन फ़िल्म को कहने की कला में उसके संवादों की भूमिका को कतई नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी भी फ़िल्म के संवाद न केवल उसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का निर्माण करते हैं, बल्कि वे उसके मुख्य किरदारों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। यही बात मदर इंडिया पर भी लागू होती है। वर्ष 1957 में रिलीज हुई यह फ़िल्म ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित होने वाली पहली हिन्दी फ़िल्म थी।
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हालांकि सिनेमा एक दृश्य माध्यम है, लेकिन फ़िल्म को कहने की कला में उसके संवादों की भूमिका को क़तई नज़रअंदाज़नहीं किया जा सकता। किसी भी फ़िल्म के संवाद न केवल उसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का निर्माण करते हैं, बल्कि वे उसके मुख्य किरदारों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। यही बात मदर इंडिया पर भी लागू होती है। वर्ष 1957 में रिलीज हुई यह फ़िल्म ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित होने वाली पहली हिन्दी फ़िल्म थी।
 
[[चित्र:Mehboob-Khan-Stamp.jpg|thumb|left|[[महबूब ख़ान]] स्टाम्प<br /> Mehboob Khan Stamp]]
 
[[चित्र:Mehboob-Khan-Stamp.jpg|thumb|left|[[महबूब ख़ान]] स्टाम्प<br /> Mehboob Khan Stamp]]
 
फ़िल्म में नरगिस, [[राजकुमार]], [[सुनील दत्त]], [[कन्हैयालाल]] और [[राजेंद्र कुमार]] के संवादों ने संघर्ष और जुझारूपन की इस अमर गाथा को जीवंत कर दिया था। मदर इंडिया पटकथा वज़ाहत मिर्जा और सैयद अली रजा ने निर्देशक मेहबूब ख़ान के साथ लिखी थी। वर्ष 1908 में [[लखनऊ]] में जन्मे वज़ाहत मिर्जा ने अपना फ़िल्मी कैरियर [[कलकत्ता]] के न्यू थिएटर में सहायक कैमरामैन की हैसियत से शुरू किया था। 40 के दशक में वे [[मुंबई]] चले आए।
 
फ़िल्म में नरगिस, [[राजकुमार]], [[सुनील दत्त]], [[कन्हैयालाल]] और [[राजेंद्र कुमार]] के संवादों ने संघर्ष और जुझारूपन की इस अमर गाथा को जीवंत कर दिया था। मदर इंडिया पटकथा वज़ाहत मिर्जा और सैयद अली रजा ने निर्देशक मेहबूब ख़ान के साथ लिखी थी। वर्ष 1908 में [[लखनऊ]] में जन्मे वज़ाहत मिर्जा ने अपना फ़िल्मी कैरियर [[कलकत्ता]] के न्यू थिएटर में सहायक कैमरामैन की हैसियत से शुरू किया था। 40 के दशक में वे [[मुंबई]] चले आए।
  
उन्होंने मुंबई में अपने कामकाज की शुरूआत अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे पटकथा लेखन में रुचि लेने लगे। वे उर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, हालांकि उनकी शायरी कभी सामने नहीं आ सकी। उन्होंने [[भारत]] की कुछ बेहतरीन फ़िल्मों का स्क्रीन प्ले लिखा है, जिनमें मदर इंडिया के अलावा [[मुग़ले आजम]], शिकस्त, यहूदी, गंगा जमना और लीडर शामिल हैं। मेहबूब ख़ान के साथ वज़ाहत मिर्जा ने छह फ़िल्में की थीं और मदर इंडिया इन दोनों महारथियों का श्रेष्ठतम साझा प्रयास था।
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उन्होंने मुंबई में अपने कामकाज की शुरुआत अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे पटकथा लेखन में रुचि लेने लगे। वे उर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, हालांकि उनकी शायरी कभी सामने नहीं आ सकी। उन्होंने [[भारत]] की कुछ बेहतरीन फ़िल्मों का स्क्रीन प्ले लिखा है, जिनमें मदर इंडिया के अलावा [[मुग़ले आजम]], शिकस्त, यहूदी, गंगा जमना और लीडर शामिल हैं। मेहबूब ख़ान के साथ वज़ाहत मिर्जा ने छह फ़िल्में की थीं और मदर इंडिया इन दोनों महारथियों का श्रेष्ठतम साझा प्रयास था।
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सैयद अली रजा जाने-माने लेखक आगा जानी कश्मीरी के भतीजे थे। रजा की लेखन शैली बहुत विशिष्ट थी और अपनी पहली ही फ़िल्म में उन्होंने इसकी झलक दिखाई। यह फ़िल्म थी मेहबूब ख़ान की अंदाज। इस फ़िल्म में अपने जमाने के दो दिग्गज अभिनेता [[दिलीप कुमार]] और [[राज कपूर]] एक साथ नज़र आए थे। इसके बाद रजा ने मेहबूब ख़ान की आन के संवाद भी लिखे। इसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उनकी भेंट अभिनेत्री [[निम्मी]] से हुई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली। सैयद अली रजा ने एक पटकथा लेखक के रूप में नए मानक स्थापित किए थे।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/article/ABH-the-best-in-shaping-the-character-of-mother-india-1280950.html |title= मदर इंडिया का चरित्र गढ़ने वाले महारथी |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=दैनिक भास्कर |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
  
सैयद अली रजा जाने-माने लेखक आगा जानी कश्मीरी के भतीजे थे। रजा की लेखन शैली बहुत विशिष्ट थी और अपनी पहली ही फ़िल्म में उन्होंने इसकी झलक दिखाई। यह फ़िल्म थी मेहबूब ख़ान की अंदाज। इस फ़िल्म में अपने जमाने के दो दिग्गज अभिनेता [[दिलीप कुमार]] और [[राज कपूर]] एक साथ नज़र आए थे। इसके बाद रजा ने मेहबूब ख़ान की आन के संवाद भी लिखे। इसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उनकी भेंट अभिनेत्री निम्मी से हुई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली। सैयद अली रजा ने एक पटकथा लेखक के रूप में नए मानक स्थापित किए थे।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/article/ABH-the-best-in-shaping-the-character-of-mother-india-1280950.html |title= मदर इंडिया का चरित्र गढ़ने वाले महारथी |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=दैनिक भास्कर |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
 
==राधा बनीं थीं नर्गिस==
 
==राधा बनीं थीं नर्गिस==
 
[[चित्र:Nargis-Motherindia.jpg|thumb|250 px|[[नर्गिस]] (राधा)<br /> Nargis (Radha)]]
 
[[चित्र:Nargis-Motherindia.jpg|thumb|250 px|[[नर्गिस]] (राधा)<br /> Nargis (Radha)]]
फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के ज़रिए भारतीय नारी को एक नया और सशक्त रूप देने वाली नर्गिस हिन्दी सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने लगभग दो दशक लंबे फ़िल्मी सफ़र में दर्जनों यादगार और संवदेनशील भूमिकाएं कीं और अपने सहज अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। 1940 और 50 के दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया और 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' उनकी सर्वाधिक चर्चित फ़िल्मों में रही। इस फ़िल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के लिए नर्गिस को फ़िल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। इसी फ़िल्म में शूटिंग के दौरान अभिनेता सुनील दत्त ने आग से उनकी जान बचाई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/28-28-120021.html |title= भारतीय नारी को सशक्त रूप देने वाली अभिनेत्री थीं नर्गिस|accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के ज़रिए भारतीय नारी को एक नया और सशक्त रूप देने वाली नर्गिस [[हिन्दी सिनेमा]] की महानतम अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने लगभग दो दशक लंबे फ़िल्मी सफ़र में दर्जनों यादगार और संवदेनशील भूमिकाएँ कीं और अपने सहज अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। 1940 और 50 के दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया और 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' उनकी सर्वाधिक चर्चित फ़िल्मों में रही। इस फ़िल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के लिए नर्गिस को फ़िल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। इसी फ़िल्म में शूटिंग के दौरान अभिनेता सुनील दत्त ने आग से उनकी जान बचाई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/28-28-120021.html |title= भारतीय नारी को सशक्त रूप देने वाली अभिनेत्री थीं नर्गिस|accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
== सुनील दत्त बने बिरजू ==
 
== सुनील दत्त बने बिरजू ==
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता [[सुनील दत्त]] ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म रेलवे प्लेटफार्म से की लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह अपनी पहचान बनाने में क़ामयाब नहीं हो सके। सुनील दत्त की क़िस्मत का सितारा 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया से चमका। इसमें वह एक ऎसे युवक बिरजू की भूमिका में दिखाई दिए जो गांव में सामाजिक व्यवस्था से काफ़ी नाराज़ है और विद्रोह कर डाकू बन जाता है। बाद में साहूकार से बदला लेने के लिए वह उसकी पुत्री का अपहरण कर लेता है, लेकिन इस कोशिश में वह अपनी माँ के हाथों मारा जाता है। इस फ़िल्म में एंटी हीरो का किरदार निभाकर वह दर्शकों का दिल जीतने में क़ामयाब हो गए।<ref>{{cite web |url=http://www.khaskhabar.com/daily-gossips.php?storyid=31276 |title= मदर इंडिया से चमका सुनील दत्त का सितारा |accessmonthday=[[27 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=ख़ास खबर |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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==मुख्य कलाकार==
 
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* फ़िल्मफ़ेयर:- '''सर्वश्रेष्ठ ध्वनि पुरस्कार''' आर कौशिक
 
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06:38, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

मदर इंडिया
Mother-India.jpg
निर्देशक महबूब ख़ाँ
निर्माता महबूब ख़ाँ
लेखक महबूब ख़ाँ,वज़ाहत मिर्ज़ा, एस अली रज़ा
कलाकार नर्गिस, राजकुमार, राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त और कन्हैया लाल
प्रसिद्ध चरित्र सुक्खी लाला
संगीत नौशाद
गीतकार शकील बदायूंनी
गायक लता मंगेशकर, शमशाद बेगम, मुहम्मद रफ़ी और मन्ना डे
प्रसिद्ध गीत दुनिया में जब आये हैं तो…, मतवाला जिया, ओ मेरे लाल आजा
छायांकन फ़रूदन ए ईरानी
संपादन शमसुदीन क़ादरी
वितरक महबूब प्रोडक्शंस
प्रदर्शन तिथि 14 फ़रवरी, 1957
अवधि 172 मिनट
भाषा हिन्दी
पुरस्कार कारलोवेरी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव:- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री; फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ ध्वनि पुरस्कार
बजट 40,00,000 रुपये

मदर इंडिया महबूब ख़ान के द्वारा निर्देशित एक विख्यात हिन्दी फ़िल्म है, इसका प्रदर्शन 1957 में हुआ था।

कथावस्तु

1940 में फ़िल्म "औरत" में महबूब एक आम हिंदुस्तानी औरत के संघर्ष और हौसले को सलाम करते हैं और उसे एक ऐसी जीवन वाली महिला के रूप में पेश करते हैं, जो विपरीत हालात में भी डटकर खड़ी रहती है। इस फ़िल्म में एक गाँव की कहानी है, जिसमें एक कुटिल और लालची साहूकार अपनी हवस पूरी करने के लिए किसान परिवार की एक स्त्री पर अत्याचार करता है। सत्रह साल बाद यानी 1957 में महबूब ने इसी फ़िल्म का नया संस्करण "मदर इंडिया" शीर्षक के साथ बनाया। "औरत" की तरह "मदर इंडिया" को भी अपार सफलता हासिल हुई और इस फ़िल्म ने महबूब को भारतीय सिने इतिहास में अमर कर दिया।

नर्गिस (राधा), मास्टर साजिद ख़ान (बिरजू) और मास्टर सुरेन्द्र (रामू)
Nargis (Radha), Master Sajid Khan (Birju), Master Surendra (Ramu)

निर्माण

"मदर इंडिया" को बनाने में पूरे तीन साल लगे और इस दौरान कुल मिलाकर सौ दिनों तक शूटिंग की गई। फ़िल्म की शूटिंग महबूब के बांद्रा स्टूडियो और दक्षिण गुजरात में उमरा नाम के एक छोटे-से शहर में हुई थी। फ़िल्म का कुछ हिस्सा सरार और काशीपुरा गांवों में भी फ़िल्माया गया था। [1] आस-पास बसे ये दोनों गांव बड़ौदा ज़िले में आते हैं।

गीत-संगीत

फ़िल्म का गीत-संगीत भी बहुत पसंद किया गया। शकील बदायूंनी के लिखे भावपूर्ण गीतों को नौशाद की सुरीली धुनों का सहारा मिला था। नौशाद के संगीत की एक ख़ूबी यह भी थी कि वे अपनी धुनों में लोक-संगीत का बड़ी कुशलता के साथ इस्तेमाल करते थे। गीतों के लिए पाश्र्व गायकों का चुनाव करने में भी नौशाद माहिर थे। उन्होंने फ़िल्म के ज़्यादातर गीत शमशाद बेगम, मुहम्मद रफ़ी और मन्ना डे से गवाएँ, जबकि नर्गिस पर फ़िल्माए गए गीतों में उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज़ का इस्तेमाल किया। लता ने भी "मदर इंडिया" के गीतों में अपनी तमाम भावनाएँ उतार दीं और यही वजह है कि फ़िल्म में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों को बेहद पसंद हैं। लता के गाए "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा" और "ओ मेरे लाल आजा" जैसे गीतों को लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।

नर्गिस (राधा), सुनील दत्त (बिरजू) और राजेन्द्र कुमार (रामू)
Nargis (Radha), Sunil Dutt (Birju), Rajendra Kumar (Ramu)

छायाकंन

"मदर इंडिया" के छायाकंन फ़रदून ए. ईरानी ने किया था। जिनके साथ महबूब की दोस्ती फ़िल्म "अल हिलाल" के वक़्त से ही थी। महबूब की फ़िल्मों में फरदून की छायाकंन देखते ही बनता है, ख़ास तौर पर महबूब की "अंदाज" और "अमर" जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्मों में तो फरदून ने कमाल की छायाकंन किया है। फरदून ने "मदर इंडिया" के दृश्यों को ख़ूबसूरत बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। आउटडोर लोकेशन के दृश्यों में फरदून का कैमरा कुदरत की ख़ूबसूरत कारीगरी को बख़ूबी परदे पर चित्रित करता है। फ़िल्म में गाँव-देहात के दृश्य भी बड़े जीवंत होकर उभरते हैं।

दूर-दूर तक फैला नीला आसमान....रास्ते में धूल उड़ाती हुई बैलगाड़ी चली जा रही है....बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं की रूनझुन की मधुर ध्वनि आपके दिल को छू जाती है!

संवाद

"मदर इंडिया" का स्क्रीनप्ले बहुत प्रभावी था और इसके डायलॉग बेहद असरदार थे। "औरत" के डायलॉग वज़ाहत मिर्जा ने लिखे थे, इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि महबूब ने "मदर इंडिया" के संवाद लिखने का दायित्व भी उन्हें ही सौंपा। वज़ाहत मिर्जा को नाटकीय दृश्यों की संरचना करने में महारत हासिल थी और "मदर इंडिया" के दृश्यों में भी उन्होंने अपना यही कमाल दिखाया। फ़िल्म के किरदारों की ज़िंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा उनके ग़मों और खुशियों को उन्होंने अपने दमदार संवादों में पिरोया। यही कारण है कि राधा, श्यामू या बिरजू जैसे किरदार इतने विश्वसनीय बनकर परदे पर उभरे। [2]

कन्हैया लाल (सुक्खी लाला)
Kanhaiyalal (Sukhilala)

महबूब और वज़ाहत मिर्ज़ा दोनों का स्वभाव एक जैसा था, इसलिए उनमें अक्सर झगड़ा हो जाता था। "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान भी ऐसा कई बार हुआ। नौबत यहाँ तक आ गई कि एक मर्तबा तो वज़ाहत मिर्जा ने महबूब के पास इत्तिला भिजवा दी कि वे फ़िल्म के लिए डायलॉग नहीं लिखेंगे। तब महबूब ने ही एक रास्ता निकाला। उन्होंने सैयद अली रजा को मध्यस्थ बनाया और उन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे वज़ाहत मिर्जा से संवाद लिखवाएँ और सैट पर महबूब के पास पहुंचाएँ। अली रजा इससे पहले महबूब के लिए "अंदाज" की कहानी लिख चुके थे। वे वज़ाहत मिर्जा का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन जब "मदर इंडिया" के क्रेडिट्स देने की बारी आई, तो महबूब ने संवाद लेखक के तौर पर वज़ाहत मिर्जा के साथ अली रजा का नाम भी देने का फैसला किया। वज़ाहत मिर्जा को जब यह बात पता लगी, तो उन्होंने एतराज किया और इस बारे में एक चिट्ठी महबूब के पास भेजी....लेकिन तब तक महबूब अपनी फ़िल्म को अंतिम रूप दे चुके थे और उनके पास इतना वक़्त भी नहीं था कि वे फ़िल्म की के्रडिट लाइन में कुछ फेरबदल कर पाते।

महबूब ने "मदर इंडिया" के टाइटल रोल में नर्गिस को लिया, जिन्हें वे 1943 में बनी अपनी फ़िल्म "तकदीर" के जरिए जमाने के सामने ला चुके थे। नर्गिस की गिनती पचास के दशक की कामयाब अभिनेत्रियों में होती थी। उस दौर में उन्होंने अनेक फ़िल्मों में मुख्य नायिका के तौर पर काम किया, लेकिन "मदर इंडिया" का रोल उनके लिए कितना अहम था, यह खुद नर्गिस ने एक इंटरव्यू में बताया था। उन्होंने कहा था, "....जब मुझे "मदर इंडिया" का रोल ऑफर किया गया, तो मुझे लगा कि एक कलाकार होने के नाते मैंने जो उम्मीदें लगा रखी हैं, आख़िरकार उनके पूरा होने का वक़्त आ गया है।....." [3]

जब कभी लोकप्रिय भारतीय फ़िल्मों के बारे में रायशुमारी की जाती है, "मदर इंडिया" हमेशा पहली पायदान पर खड़ी नज़र आती है। हिन्दी सिनेमा की चंद क्लासिक फ़िल्मों में "मदर इंडिया" की गिनती की जाती है और सिर्फ़ अपने देश में ही नहीं, दुनिया के बाकी मुल्कों में भी हर पीढ़ी के दर्शकों ने इस फ़िल्म को पसंद किया है। [4]

निर्माता

महबूब ख़ान की मदर इंडिया भारतीय सिनेमा की सबसे महत्त्वपूर्ण और सराही जाने वाली फ़िल्मों में से एक है। मदर इंडिया की पटकथा भी ज़बर्दस्त थी। फ़िल्म की कामयाबी में उसकी सशक्त पटकथा का भी अहम योगदान रहा था। [5] हालांकि सिनेमा एक दृश्य माध्यम है, लेकिन फ़िल्म को कहने की कला में उसके संवादों की भूमिका को क़तई नज़रअंदाज़नहीं किया जा सकता। किसी भी फ़िल्म के संवाद न केवल उसके सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का निर्माण करते हैं, बल्कि वे उसके मुख्य किरदारों की भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। यही बात मदर इंडिया पर भी लागू होती है। वर्ष 1957 में रिलीज हुई यह फ़िल्म ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित होने वाली पहली हिन्दी फ़िल्म थी।

महबूब ख़ान स्टाम्प
Mehboob Khan Stamp

फ़िल्म में नरगिस, राजकुमार, सुनील दत्त, कन्हैयालाल और राजेंद्र कुमार के संवादों ने संघर्ष और जुझारूपन की इस अमर गाथा को जीवंत कर दिया था। मदर इंडिया पटकथा वज़ाहत मिर्जा और सैयद अली रजा ने निर्देशक मेहबूब ख़ान के साथ लिखी थी। वर्ष 1908 में लखनऊ में जन्मे वज़ाहत मिर्जा ने अपना फ़िल्मी कैरियर कलकत्ता के न्यू थिएटर में सहायक कैमरामैन की हैसियत से शुरू किया था। 40 के दशक में वे मुंबई चले आए।

उन्होंने मुंबई में अपने कामकाज की शुरुआत अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे पटकथा लेखन में रुचि लेने लगे। वे उर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, हालांकि उनकी शायरी कभी सामने नहीं आ सकी। उन्होंने भारत की कुछ बेहतरीन फ़िल्मों का स्क्रीन प्ले लिखा है, जिनमें मदर इंडिया के अलावा मुग़ले आजम, शिकस्त, यहूदी, गंगा जमना और लीडर शामिल हैं। मेहबूब ख़ान के साथ वज़ाहत मिर्जा ने छह फ़िल्में की थीं और मदर इंडिया इन दोनों महारथियों का श्रेष्ठतम साझा प्रयास था।

सैयद अली रजा जाने-माने लेखक आगा जानी कश्मीरी के भतीजे थे। रजा की लेखन शैली बहुत विशिष्ट थी और अपनी पहली ही फ़िल्म में उन्होंने इसकी झलक दिखाई। यह फ़िल्म थी मेहबूब ख़ान की अंदाज। इस फ़िल्म में अपने जमाने के दो दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ नज़र आए थे। इसके बाद रजा ने मेहबूब ख़ान की आन के संवाद भी लिखे। इसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उनकी भेंट अभिनेत्री निम्मी से हुई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली। सैयद अली रजा ने एक पटकथा लेखक के रूप में नए मानक स्थापित किए थे।[6]

राधा बनीं थीं नर्गिस

नर्गिस (राधा)
Nargis (Radha)

फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के ज़रिए भारतीय नारी को एक नया और सशक्त रूप देने वाली नर्गिस हिन्दी सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक थीं जिन्होंने लगभग दो दशक लंबे फ़िल्मी सफ़र में दर्जनों यादगार और संवदेनशील भूमिकाएँ कीं और अपने सहज अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। 1940 और 50 के दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया और 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' उनकी सर्वाधिक चर्चित फ़िल्मों में रही। इस फ़िल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राधा की भूमिका के लिए नर्गिस को फ़िल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। इसी फ़िल्म में शूटिंग के दौरान अभिनेता सुनील दत्त ने आग से उनकी जान बचाई थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।[7]

सुनील दत्त बने बिरजू

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सुनील दत्त ने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म रेलवे प्लेटफार्म से की लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके। सुनील दत्त की क़िस्मत का सितारा 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया से चमका। इसमें वह एक ऎसे युवक बिरजू की भूमिका में दिखाई दिए जो गांव में सामाजिक व्यवस्था से काफ़ी नाराज़ है और विद्रोह कर डाकू बन जाता है। बाद में साहूकार से बदला लेने के लिए वह उसकी पुत्री का अपहरण कर लेता है, लेकिन इस कोशिश में वह अपनी माँ के हाथों मारा जाता है। इस फ़िल्म में एंटी हीरो का किरदार निभाकर वह दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब हो गए।[8]

मुख्य कलाकार

नर्गिस (राधा), सुनील दत्त (बिरजू) और राजेन्द्र कुमार (रामू)
Nargis (Radha), Sunil Dutt (Birju), Rajendra Kumar (Ramu)
  • नर्गिस - राधा
  • सुनील दत्त - बिरजू
  • राजेन्द्र कुमार - रामू
  • राज कुमार - श्यामू
  • कन्हैया लाल - सुक्खी लाला
  • कुमकुम - चंपा
  • मुकरी - शंभु
  • शीला नाईक - कमला
  • आज़ाद - चंद्र
  • मास्टर साजिद ख़ान - युवा बिरजू
  • मास्टर सुरेन्द्र - युवा रामू

पुरस्कार

  • कारलोवेरी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव:- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नरगिस दत्त
  • फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म
  • फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार महबूब ख़ाँ
  • फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार नरगिस
  • फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ छायाकार पुरस्कार फ़रूदन ए ईरानी
  • फ़िल्मफ़ेयर:- सर्वश्रेष्ठ ध्वनि पुरस्कार आर कौशिक


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आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सरार गांव में ही महबूब का जन्म हुआ था
  2. ऐसे बनी "मदर इंडिया" (हिन्दी) पत्रिका। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010
  3. फ़िल्मफेअर / 25 अप्रेल 1958
  4. नियोगी बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक "द डायलॉग ऑफ़ मदर इंडिया" के कुछ अंश।
  5. लेखिका और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने मेहबूब ख़ान की इस क्लासिक फ़िल्म के संवादों को एक किताब की शक्ल में संजोया है। वे इससे पहले भी सिनेमा पर कई किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं वर्ष 1996 में प्रकाशित गुरुदत्त : अ लाइफ इन सिनेमा, वर्ष 2009 में प्रकाशित लता मंगेशकर : इन हर ओन वॉइस में प्रकाशित द डायलॉग ऑफ़ आवारा : राज कपूर्स इम्मोर्टल क्लासिक। उनकी नई किताब में मदर इंडिया के संवादों के साथ ही शकील बदायूंनी के सदाबहार गीतों को भी देवनागरी, उर्दू और रोमन लिपि में जगह दी गई है।
  6. मदर इंडिया का चरित्र गढ़ने वाले महारथी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010
  7. भारतीय नारी को सशक्त रूप देने वाली अभिनेत्री थीं नर्गिस (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010
  8. मदर इंडिया से चमका सुनील दत्त का सितारा (हिन्दी) ख़ास खबर। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2010

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