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'''मृगशिरा''' ([[अंग्रेज़ी]]: '' Mrigashira'') आकाश मंडल में पांचवा [[नक्षत्र]] है। इसे 'मृगशीर्ष' या 'मृगाशिर' के नाम से भी पुकारते हैं। इसका अर्थ मृग यानी हिरन का सिर है। यह नक्षत्र [[वृष राशि|वृष]] और [[मिथुन राशि|मिथुन]] दोनों राशियों को जोड़ने वाला है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी [[मंगल ग्रह]] है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में खैर के वृक्ष को लगाते है।
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[[चित्र:Mrigashira-Nakshatra.jpg|thumb|250px|मृगशिरा नक्षत्र]]
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'''मृगशिरा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mrigashira'') आकाश मंडल में पांचवा [[नक्षत्र]] है। इसे 'मृगशीर्ष' या 'मृगाशिर' के नाम से भी पुकारते हैं। इसका अर्थ मृग यानी हिरन का सिर है। यह नक्षत्र [[वृष राशि|वृष]] और [[मिथुन राशि|मिथुन]] दोनों राशियों को जोड़ने वाला है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी [[मंगल ग्रह]] है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में खैर के वृक्ष को लगाते है।
 
==कथा==
 
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वैदिक ज्‍योतिष के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्‍या 27 है। इसमें मृगशिरा नक्षत्र पांचवें स्‍थान पर आता है। इसकी उत्‍पत्ति के बारे में [[कथा]] मिलती है कि एक बार [[ब्रह्मा|प्रजापिता ब्रह्मा]] का मोह उनकी ही पुत्री पर जाग्रत हो गया। इससे भोलेनाथ को अत्‍यंत क्रोध हुआ। उन्‍होंने ब्रह्मदेव पर [[बाण अस्त्र|बाण]] चला दिया। [[शिव]] के इस रौद्र रूप को देखकर प्रजापिता ब्रह्मा काफी भयभीत होकर आकाश दिशा की ओर भागे। जब उन्‍हें कोई रास्‍ता नहीं सूझा तो वह आकाश में मृगशिरा नक्षत्र के रूप में स्‍थापित हो गए। चूंकि शिव के क्रोध से बचने के लिए उस समय उन्‍होंने हिरन यानी मृग का रूप लिया हुआ था, इस कारण जब वह नक्षत्र बनें तो उनका नाम मृगशिरा नक्षत्र पड़ा।<ref name="pp">{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/motivational-stories/knwo-the-meaning-of-mragshira-nakshatra/articleshow/91242357.cms |title=जानें, क्‍या है मृगशिरा नक्षत्र और इस नक्षत्र में जन्‍में लोगों का कैसा होता है व्‍यवहार?|accessmonthday=01 नवंबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=navbharattimes.indiatimes.com |language=हिंदी}}</ref>
 
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08:46, 1 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

मृगशिरा नक्षत्र

मृगशिरा (अंग्रेज़ी: Mrigashira) आकाश मंडल में पांचवा नक्षत्र है। इसे 'मृगशीर्ष' या 'मृगाशिर' के नाम से भी पुकारते हैं। इसका अर्थ मृग यानी हिरन का सिर है। यह नक्षत्र वृष और मिथुन दोनों राशियों को जोड़ने वाला है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल ग्रह है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में खैर के वृक्ष को लगाते है।

कथा

वैदिक ज्‍योतिष के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्‍या 27 है। इसमें मृगशिरा नक्षत्र पांचवें स्‍थान पर आता है। इसकी उत्‍पत्ति के बारे में कथा मिलती है कि एक बार प्रजापिता ब्रह्मा का मोह उनकी ही पुत्री पर जाग्रत हो गया। इससे भोलेनाथ को अत्‍यंत क्रोध हुआ। उन्‍होंने ब्रह्मदेव पर बाण चला दिया। शिव के इस रौद्र रूप को देखकर प्रजापिता ब्रह्मा काफी भयभीत होकर आकाश दिशा की ओर भागे। जब उन्‍हें कोई रास्‍ता नहीं सूझा तो वह आकाश में मृगशिरा नक्षत्र के रूप में स्‍थापित हो गए। चूंकि शिव के क्रोध से बचने के लिए उस समय उन्‍होंने हिरन यानी मृग का रूप लिया हुआ था, इस कारण जब वह नक्षत्र बनें तो उनका नाम मृगशिरा नक्षत्र पड़ा।[1]

कथा मिलती है कि शिव के बाण ने उन्‍हें आज तक माफ नहीं किया है। आज भी वह बाण आर्द्रा नक्षत्र के रूप में मृगशिरा रूपी ब्रह्मा के पीछे पड़ा है।

ग्रह स्‍वामी

हर नक्षत्र का कोई न कोई ग्रह स्‍वामी होता ही है, जिसका प्रभाव उस नक्षत्र में जन्‍में जातक पर पड़ता है। मृगशिरा नक्षत्र का स्‍वामी मंगल ग्रह को माना गया है। यही वजह है कि इस नक्षत्र में जन्‍में लोगों पर मंगल का सीधा प्रभाव देखने को मिलता है।

मृगशिरा में जन्‍में जातक

ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार, मृगशिरा नक्षत्र में जन्‍में लोगों का प्रेम पर अटूट विश्‍वास होता है। इसके अलावा यह स्‍थाई काम पर अत्‍यधिक भरोसा करते हैं। यही वजह है कि इस नक्षत्र में जन्‍में जातक जो भी काम अपने हाथ में लेते हैं, उसे पूरी मेहनत और लगन से पूरा करते हैं। ये आकर्षक व्‍यक्तित्‍व और रूप के स्‍वामी होते हैं। ग्रह स्‍वामी मंगल होने के चलते ये सदा ही ऊर्जा से भरे रहते हैं। बहुत ही साफ दिल और सभी को प्रेम करने वाले होते हैं, लेकिन कोई छल करे तो फिर यह उसे माफ नहीं करते। व्‍यक्तिगत जीवन में ये अच्‍छे मित्र साबित होते हैं। इसके अलावा प्रेम में अूटट विश्‍वास होने के चलते इनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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