"मैं तो एक भूत हूँ -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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+ | [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | ||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>मैं तो एक भूत हूँ<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>मैं तो एक भूत हूँ<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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"लेकिन मैं तो बिल्कुल नया भूत हूँ। कल ही तो मरा हूँ। सारा दिन कहाँ काटूँगा, कहाँ सोऊँगा, क्या खाऊँगा ?" भूत ने भूतिस्तान के मैनेजर से पूछा। | "लेकिन मैं तो बिल्कुल नया भूत हूँ। कल ही तो मरा हूँ। सारा दिन कहाँ काटूँगा, कहाँ सोऊँगा, क्या खाऊँगा ?" भूत ने भूतिस्तान के मैनेजर से पूछा। | ||
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"कमाल के भूत हो यार तुम भी... अरे ! इंसान को डराने में क्या है, किसी को अकेला देखो और डरा दो बस... तुमने ग़ायब होने की... प्रकट होने की... ट्रांसपेरेन्ट होने की सारी ट्रेनिंग कर ली हैं ना ?... अगर नहीं की तो सामने शीशा लगा है, कर लो" | "कमाल के भूत हो यार तुम भी... अरे ! इंसान को डराने में क्या है, किसी को अकेला देखो और डरा दो बस... तुमने ग़ायब होने की... प्रकट होने की... ट्रांसपेरेन्ट होने की सारी ट्रेनिंग कर ली हैं ना ?... अगर नहीं की तो सामने शीशा लगा है, कर लो" | ||
भूत ने धरती पर आकर डराने के लिए 'क्लाइन्ट' देखना शुरू कर दिया... सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग महिला दिखी- | भूत ने धरती पर आकर डराने के लिए 'क्लाइन्ट' देखना शुरू कर दिया... सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग महिला दिखी- | ||
− | "वाह ! अकेली आंटी, सुनसान सड़क, रात का वक़्त, मज़ा आ जाएगा डराने में..." भूत ने सोचा... और अचानक उस औरत के सामने वैसे ही प्रकट हो गया जैसे कि धार्मिक सीरियलों में देवता और राक्षस प्रकट हो जाते हैं... | + | "वाह ! अकेली आंटी, सुनसान सड़क, रात का वक़्त, मज़ा आ जाएगा डराने में..." भूत ने सोचा... और अचानक उस औरत के सामने वैसे ही प्रकट हो गया जैसे कि धार्मिक सीरियलों में देवता और राक्षस प्रकट हो जाते हैं... |
लेकिन ये क्या ?... उस औरत पर तो कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा... | लेकिन ये क्या ?... उस औरत पर तो कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा... | ||
− | "ए ! | + | "ए ! हॅलो आंटी जी ! डर नहीं लगता क्या ?" |
"लगता है बेटा ! बहुत लगता है कि कहीं कोई कार टक्कर न मार दे। इसीलिए तो इन्तज़ार कर रही थी कि बूढ़ी अन्धी को कोई रास्ता पार करा दे।" | "लगता है बेटा ! बहुत लगता है कि कहीं कोई कार टक्कर न मार दे। इसीलिए तो इन्तज़ार कर रही थी कि बूढ़ी अन्धी को कोई रास्ता पार करा दे।" | ||
"ओहो ! तो आपको दिखता नहीं है... नो प्रोब्लम ! मैं आपको रास्ता पार करा देता हूँ" | "ओहो ! तो आपको दिखता नहीं है... नो प्रोब्लम ! मैं आपको रास्ता पार करा देता हूँ" | ||
− | "जीते रहो बेटा जुग-जुग जिओ..." | + | "जीते रहो बेटा ! जुग-जुग जिओ...!" |
किसी को डराने की पहली कोशिश बेकार गई। बुज़ुर्ग महिला को रास्ता पार कराने के बाद भूत पास ही एक कोठी में घुस गया। कोठी पर जो नाम लिखा था उससे अंदाज़ा लगा कि कोई सीनियर एडवोकेट है। अंदर देखा तो अपने ऑफ़िस में वकील साहब काम कर रहे थे। | किसी को डराने की पहली कोशिश बेकार गई। बुज़ुर्ग महिला को रास्ता पार कराने के बाद भूत पास ही एक कोठी में घुस गया। कोठी पर जो नाम लिखा था उससे अंदाज़ा लगा कि कोई सीनियर एडवोकेट है। अंदर देखा तो अपने ऑफ़िस में वकील साहब काम कर रहे थे। | ||
"अरे ! ये तो पूरी कोठी में अकेला है। इसे तो डरा-डरा के मार लूँगा।" | "अरे ! ये तो पूरी कोठी में अकेला है। इसे तो डरा-डरा के मार लूँगा।" | ||
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बस फिर तो सवाल जवाब और भूत के जादू सब कुछ शुरू हो गया और भूत भी भूल गया कि वह यहाँ बच्चों को डराने आया था। | बस फिर तो सवाल जवाब और भूत के जादू सब कुछ शुरू हो गया और भूत भी भूल गया कि वह यहाँ बच्चों को डराने आया था। | ||
− | अब हमारे पास भूत-वूत से डरने का समय नहीं है। भूत तो क्या भगवान भी सामने आ जाएँ तो वो भी दुखी हो जाएँगे हमारे व्यवहार से क्योंकि हम व्यस्त हैं और ख़ुद ही में मस्त हैं। ये | + | अब हमारे पास भूत-वूत से डरने का समय नहीं है। भूत तो क्या भगवान भी सामने आ जाएँ तो वो भी दुखी हो जाएँगे हमारे व्यवहार से क्योंकि हम व्यस्त हैं और ख़ुद ही में मस्त हैं। ये दुनिया बदल गई है... अचानक तो नहीं धीरे-धीरे बदलती जा रही है। लोग व्यस्त हो गए हैं... और इस व्यस्तता के अभ्यस्त हो गए हैं। अक्सर सुनने में आता है कि अरे ! क्या करें ? इतना काम है कि 'मरने' का भी टाइम नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि इतना काम है कि 'जीने' का भी समय नहीं है। मान लीजिए कि ये भूत अगर मेरे पास आता तो हो सकता है कि मैं, इससे भी भारतकोश पर काम करने के लिए कहता और ये ख़याल मेरे मन में नहीं आता कि अरे ! ये तो भूत है। मेरी हालत भी कुछ अलग नहीं है। |
इस व्यस्तता का एक कारण, हमारा बहुत आसानी से हर एक के लिए उपलब्ध होना भी है। यदि आप किसी से सम्पर्क करना चाहें तो मोबाइल फ़ोन, ई-मेल, एस.एम.एस आदि से तुरंत सम्पर्क कर सकते हैं। प्रत्येक गतिविधि की जानकारी ले सकते हैं और दे सकते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि आप हर समय अपने परिचितों के लिए उपलब्ध हैं। वे जब भी चाहें आपसे सम्पर्क कर सकते हैं। इसलिए कोई ना कोई परिचित दिन में और कभी-कभी रात में भी हमसे सम्पर्क करता रहता है। | इस व्यस्तता का एक कारण, हमारा बहुत आसानी से हर एक के लिए उपलब्ध होना भी है। यदि आप किसी से सम्पर्क करना चाहें तो मोबाइल फ़ोन, ई-मेल, एस.एम.एस आदि से तुरंत सम्पर्क कर सकते हैं। प्रत्येक गतिविधि की जानकारी ले सकते हैं और दे सकते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि आप हर समय अपने परिचितों के लिए उपलब्ध हैं। वे जब भी चाहें आपसे सम्पर्क कर सकते हैं। इसलिए कोई ना कोई परिचित दिन में और कभी-कभी रात में भी हमसे सम्पर्क करता रहता है। | ||
इस निरंतर उपलब्धता के कारण अब कलाकार, साहित्यकार और रचनात्मक कार्य करने वाले अन्य लोग अपनी कृतित्व में वह उत्कृष्टता नहीं ला पाते जो कुछ वर्षों पहले हुआ करती थी। पुराने समय में विद्यार्थी कला का अध्ययन करने गुरु के पास जाते थे तो वर्षों तक अपने परिवार और परिचितों से कटे रहते थे। उनका विद्याध्यन का स्थान भी एकांत और शांत वातावरण में हुआ करता था। जहाँ उनकी साधना में कोई अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न होना लगभग असम्भव ही होता था। | इस निरंतर उपलब्धता के कारण अब कलाकार, साहित्यकार और रचनात्मक कार्य करने वाले अन्य लोग अपनी कृतित्व में वह उत्कृष्टता नहीं ला पाते जो कुछ वर्षों पहले हुआ करती थी। पुराने समय में विद्यार्थी कला का अध्ययन करने गुरु के पास जाते थे तो वर्षों तक अपने परिवार और परिचितों से कटे रहते थे। उनका विद्याध्यन का स्थान भी एकांत और शांत वातावरण में हुआ करता था। जहाँ उनकी साधना में कोई अनावश्यक गतिरोध उत्पन्न होना लगभग असम्भव ही होता था। | ||
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"मैं तो इस बाग़ में ऐसा लगा हूँ कि दूसरे बाग़ की मुझे ख़बर नहीं।" | "मैं तो इस बाग़ में ऐसा लगा हूँ कि दूसरे बाग़ की मुझे ख़बर नहीं।" | ||
− | आज के समय में कितना कठिन है कोई [[बिस्मिल्ला ख़ाँ]], | + | आज के समय में कितना कठिन है कोई [[बिस्मिल्ला ख़ाँ]], [[बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ]], [[भीमसेन जोशी]], [[कुमार गंधर्व]] या फिर कोई [[मुंशी प्रेमचन्द]], [[मुक्तिबोध गजानन माधव|मुक्तिबोध]], [[कालिदास]] या शेक्सपीयर ढूँढना... |
अब यह तो आपको ही तय करना है कि इस सहज-उपलब्धता से उपजी निरंतर-व्यस्तता कितनी उपयोगी है और कितनी अनुपयोगी। | अब यह तो आपको ही तय करना है कि इस सहज-उपलब्धता से उपजी निरंतर-व्यस्तता कितनी उपयोगी है और कितनी अनुपयोगी। | ||
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+ | वक़्त बहुत कम है यहाँ, काम बहुत ज़्यादा है। | ||
+ | हर पल, हर लम्हे का दाम बहुत ज़्यादा है॥ | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
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13:54, 15 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
मैं तो एक भूत हूँ -आदित्य चौधरी "लेकिन मैं तो बिल्कुल नया भूत हूँ। कल ही तो मरा हूँ। सारा दिन कहाँ काटूँगा, कहाँ सोऊँगा, क्या खाऊँगा ?" भूत ने भूतिस्तान के मैनेजर से पूछा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ