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==परिचय==
 
==परिचय==
 
भारतीय हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का जन्म 3 मार्च सन 1926 को [[दिल्ली]] में हुआ था। उनका पूरा नाम रवि शंकर शर्मा था। रवि ने [[संगीत]] की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, हालांकि उनकी दिली तमन्ना पार्श्व गायक बनने की थी। इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने [[हारमोनियम]] बजाना और गाना सीखा। इसके बाद सन [[1950]] में वह [[मुंबई]] आ गए। संगीतकार [[हेमंत कुमार]] ने सबसे पहले उन्हें [[1952]] में फ़िल्म 'आनंद मठ' में ‘[[वंदे मातरम्]]’ गीत के लिए संगीत देने का मौका दिया।<ref>{{cite web |url=http://aajtak.intoday.in/story/Music-director-Ravi-Shankar-Sharma-dead-1-693112.html |title= संगीतकार रवि ने होली से पहले दुनिया को कहा अलविदा|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aajtak.intoday.in |language= हिंदी}}</ref>
 
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==फ़िल्मी शुरुआत==
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==फ़िल्मी सफर==
 
रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह [[मोहम्मद रफ़ी]] के गानों के शौकीन थे। अपने [[परिवार]] का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन [[1950]] में वह दिल्ली से मुम्बई रवाना हो गए। मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। [[दिल्ली]] से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा [[हिन्दी]] फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।<ref>{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2012/03/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9F-%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE/ |title= सुपर हिट धुनों के संगीतकार थे रवि|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=dainiktribuneonline.com |language= हिंदी}}</ref>
 
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फिल्म 'नागिन' में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी अौर फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होने गीत "मेरा दिल ये पुकारे आजा" से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाक़ात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौक़ा दिया। अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" अौर "एक पैसा दे दे बाबू" की शब्द रचना की। इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया। वर्ष [[1955]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों काफी सुपरहिट हुआ और आज भी बच्चों के बीच काफी शिद्धत के साथ सुना जाता है।<ref>{{cite web |url=http://sameer-goswami.blogspot.in/2016/02/blog-post_27.html |title= संगीतकार रविशंकर शर्मा यानि रवि|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=sameer-goswami.blogspot.in |language= हिंदी}}</ref>
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इसके बाद रवि ने देवेन्द्र गोयल की सारी फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं- 'नई राहें', 'नरसी भगत', 'चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ', 'एक फूल दो माली', 'दस लाख', इन सभी फिल्मों की सफलता के बाद रवि कुछ हद तक फिल्म संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। अपने वजूद को तलाशते रवि को फ़िल्म इंडस्ट्री में सही मुक़ाम पाने के लिए लगभग पांच वर्ष इंतज़ार करना पड़ा था। इस बीच उन्होंने 'अलबेली', 'प्रभु की माया', 'अयोध्यापति', 'देवर भाभी', 'एक साल', 'घर संसार', 'मेंहदी' जैसी कई दोयम दर्जे की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई।
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==सफलता==
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रवि की किस्मत का सितारा वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक [[गुरुदत्त]] की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगीत निर्देशन में रवि ने सफलता की बुलंदी को छुआ। उन्होंने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा फिल्में कीं। इनमें से ज्यादातर म्यूजिकल हिट रहीं। उनकी फिल्मों में ‘घर संसार’, ‘मेहंदी’, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां’, ‘नई राहें’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घूंघट’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘आज और कल’, ‘गुमराह’, ‘गृहस्थी’, ‘काजल’, ‘ख़ानदान’, ‘व़वक्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘सगाई’, ‘हमराज’, ‘आंखें’, ‘नील कमल’, ‘बड़ी दीदी’, ‘एक फूल दो माली’, ‘एक महल हो सपनों का’ के नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म ‘निकाह’ ([[1982]]) थी। इसके सभी गाने सुपर हिट थे। रवि ने [[हिन्दी]] फिल्मों के अलावा करीब 14 [[मलयालम भाषा|मलयालम]] फिल्मों में भी [[संगीत]] दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/news/MH-senior-musician-ravi-passed-away-mumbai-2954004.html |title= ‘लाई है हजारों रंग होली...’ के संगीतकार रवि नहीं रहे!|accessmonthday= 19 मई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com |language= हिंदी}}</ref>
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==पुरस्कर व सम्मान==
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संगीतकार रवि ने दो फिल्म फेयर पुरस्कारों (‘घराना’ व ‘ख़ानदान’ के लिए) के अलावा ढेर सारे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते। उनके दो अंतिम उल्लेखनीय सम्मान मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ और मालवा रंगमंच समिति द्वारा दिया जाने वाला ‘कवि प्रदीप शिखर सम्मान’ था। उन्हें [[भारत सरकार]] ने [[पद्मश्री]] से भी सम्मानित किया था।
  
  

10:54, 19 मई 2017 का अवतरण

रवि शंकर शर्मा (अंग्रेज़ी: Ravi Shankar Sharma, जन्म- 3 मार्च, 1926, दिल्ली; मृत्यु- 7 मार्च, 2012, मुम्बई) हिन्दी फ़िल्मों में प्रसिद्ध संगीतकार थे। बतौर संगीत निर्देशक उन्होंने 1955 में फिल्म ‘वचन’ से अपना सफर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 50 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया। रवि को उन लोगों में माना जाता है, जिन्होंने महेन्द्र कपूर और आशा भोंसले को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि हिन्दी फिल्मों के कुल 500 सुपर हिट गीतों को लिया जाए तो उनमें अकेले रवि के 100 से ज्यादा सुपर हिट गीत हैं और बाकी 400 सुपर हिट गीतों में 15 से ज्यादा संगीतकारों के नाम आते हैं। यह भी एक दिलचस्प बात है कि रवि की धुनों में रंगे गीत ब्याह-शादियों में गाए जाने वाले परंपरागत फिल्मी गीतों में सभी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़के दुल्हन ससुराल चली' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' जैसे फिल्मी गीत विवाह और बैंड बाजे वालों के भी प्रिय गीत हैं।

परिचय

भारतीय हिन्दी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त संगीतकार रवि का जन्म 3 मार्च सन 1926 को दिल्ली में हुआ था। उनका पूरा नाम रवि शंकर शर्मा था। रवि ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, हालांकि उनकी दिली तमन्ना पार्श्व गायक बनने की थी। इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने हारमोनियम बजाना और गाना सीखा। इसके बाद सन 1950 में वह मुंबई आ गए। संगीतकार हेमंत कुमार ने सबसे पहले उन्हें 1952 में फ़िल्म 'आनंद मठ' में ‘वंदे मातरम्’ गीत के लिए संगीत देने का मौका दिया।[1]

फ़िल्मी सफर

रवि जब दिल्ली में रहते थे, तब उनको फिल्म संगीत का बहुत शौक था। वह मोहम्मद रफ़ी के गानों के शौकीन थे। अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए वह इलेक्ट्रिशियन बन गए थे। सन 1950 में वह दिल्ली से मुम्बई रवाना हो गए। मुम्बई में न उनके पास रहने का घर था और न ही हाथ में कोई पैसा। अपनी ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर बीताते थे। एक दिन हेमंत कुमार ने उन्हें देखा तो वह उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ गीत में कोरस गवाया और फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी। हेमंत दा से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीत निर्देशक तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ दे दीं। उधर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ जैसी फिल्में दे दीं। बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिल्ली से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा हिन्दी फिल्मों का मशहूर संगीत निर्देशक रवि बन गया।[2]

फिल्म 'नागिन' में रवि ने हेमंत कुमार के सहायक रूप में बहुत मेहनत की थी अौर फिल्म में बीन की धुन बनाई। फिल्म में बीन की धुन उन्होने गीत "मेरा दिल ये पुकारे आजा" से लेकर बनाई थी। इसी बीच रवि की मुलाक़ात निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल से हुई जो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। देवेन्द्र गोयल ने रवि की प्रतिभा को पहचान उन्हें अपनी फ़िल्म में बतौर संगीतकार काम करने का मौक़ा दिया। अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" अौर "एक पैसा दे दे बाबू" की शब्द रचना की। इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया। वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों काफी सुपरहिट हुआ और आज भी बच्चों के बीच काफी शिद्धत के साथ सुना जाता है।[3]

इसके बाद रवि ने देवेन्द्र गोयल की सारी फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं- 'नई राहें', 'नरसी भगत', 'चिराग़ कहाँ रोशनी कहाँ', 'एक फूल दो माली', 'दस लाख', इन सभी फिल्मों की सफलता के बाद रवि कुछ हद तक फिल्म संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। अपने वजूद को तलाशते रवि को फ़िल्म इंडस्ट्री में सही मुक़ाम पाने के लिए लगभग पांच वर्ष इंतज़ार करना पड़ा था। इस बीच उन्होंने 'अलबेली', 'प्रभु की माया', 'अयोध्यापति', 'देवर भाभी', 'एक साल', 'घर संसार', 'मेंहदी' जैसी कई दोयम दर्जे की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई।

सफलता

रवि की किस्मत का सितारा वर्ष 1960 में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक गुरुदत्त की क्लासिक फ़िल्म 'चौदहवी का चांद' से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की कामयाबी ने रवि को बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगीत निर्देशन में रवि ने सफलता की बुलंदी को छुआ। उन्होंने अपने कॅरियर में 50 से ज्यादा फिल्में कीं। इनमें से ज्यादातर म्यूजिकल हिट रहीं। उनकी फिल्मों में ‘घर संसार’, ‘मेहंदी’, ‘चिराग़ कहां रोशनी कहां’, ‘नई राहें’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘घूंघट’, ‘घराना’, ‘चाइना टाउन’, ‘आज और कल’, ‘गुमराह’, ‘गृहस्थी’, ‘काजल’, ‘ख़ानदान’, ‘व़वक्त’, ‘दो बदन’, ‘फूल और पत्थर’, ‘सगाई’, ‘हमराज’, ‘आंखें’, ‘नील कमल’, ‘बड़ी दीदी’, ‘एक फूल दो माली’, ‘एक महल हो सपनों का’ के नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी अंतिम उल्लेखनीय फिल्म ‘निकाह’ (1982) थी। इसके सभी गाने सुपर हिट थे। रवि ने हिन्दी फिल्मों के अलावा करीब 14 मलयालम फिल्मों में भी संगीत दिया।[4]

पुरस्कर व सम्मान

संगीतकार रवि ने दो फिल्म फेयर पुरस्कारों (‘घराना’ व ‘ख़ानदान’ के लिए) के अलावा ढेर सारे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते। उनके दो अंतिम उल्लेखनीय सम्मान मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ और मालवा रंगमंच समिति द्वारा दिया जाने वाला ‘कवि प्रदीप शिखर सम्मान’ था। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संगीतकार रवि ने होली से पहले दुनिया को कहा अलविदा (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
  2. सुपर हिट धुनों के संगीतकार थे रवि (हिंदी) dainiktribuneonline.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
  3. संगीतकार रविशंकर शर्मा यानि रवि (हिंदी) sameer-goswami.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।
  4. ‘लाई है हजारों रंग होली...’ के संगीतकार रवि नहीं रहे! (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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