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*[[1948]] में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को [[भारत सरकार]] की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष (प्रिवी पर्स) दिया गया।
 
*[[1948]] में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को [[भारत सरकार]] की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष (प्रिवी पर्स) दिया गया।
 
==उत्तर प्रदेश में विलीन रियासतें==
 
==उत्तर प्रदेश में विलीन रियासतें==
[[उत्तर प्रदेश]] के छह जिलों [[झांसी]], [[महोबा]], [[जालौन]], [[चित्रकूट]], [[वाराणसी]] और [[हमीरपुर]] की रियासतों का प्रदेश में विलय हुआ है। प्रदेश सरकार इन तत्कालीन रियासतों के मंदिरों के पुजारियों को अनुदान देती है। यह राशि 16504 रुपये प्रतिवर्ष होती है। उत्तर प्रदेश में धर्मार्थ संस्थाओं को अनुदान देने के लिए कोई धनराशि की व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन विलीनीकृत रियासतों के पुजारियों के लिए सामान्य प्रशासन के बजट के जरिए अनुदान की व्यवस्था की जाती है। धर्मार्थ संस्था के लिए शासन की ओर से पीसीएस संवर्ग का एक अधिकारी मुख्य कार्यपालक अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। तहसीलदार स्तर का एक अधिकारी अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी होता है। वित्त एवं लेखा सेवा का एक अधिकारी सहायक लेखधिकारी के पद पर मंदिर में कार्यरत होता है। निम्न जिलों में मंदिर के पुजारियों को अनुदान मिलता है<ref>{{cite web |url=http://hindi.newstrack.com/uttar-pradesh/lucknow/government-grants-salary-maintenance-temple-priest-merge-estates/ |title=कभी यूपी में विलीन हुई थीं रियासतें, सरकार देती है इनके पुजारियों को अनुदान |accessmonthday=31 अगस्त|accessyear= 2018|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.newstrack.com |language= हिन्दी}}</ref>-
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#हमीरपुर - 810 रुपये
 
#हमीरपुर - 810 रुपये
 
#झांसी - 3545 रुपये
 
#झांसी - 3545 रुपये

07:00, 31 अगस्त 2018 का अवतरण

रियासत ब्रिटिशकालीन भारत में हिन्दू राजा-महाराजाओं व मुस्लिम शासकों के स्वामित्व में स्वतन्त्र इकाइयों को कहा जाता था। भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व यहाँ 565 रियासतें थीं।

  • ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में 'रियासत', 'रजवाड़े' या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे; परन्तु उन भारतीय शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था।
  • 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं।
  • 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरीसिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया।
  • पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया, जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया।
  • 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष (प्रिवी पर्स) दिया गया।

उत्तर प्रदेश में विलीन रियासतें

उत्तर प्रदेश के छह जिलों झांसी, महोबा, जालौन, चित्रकूट, वाराणसी और हमीरपुर की रियासतों का प्रदेश में विलय हुआ है। प्रदेश सरकार इन तत्कालीन रियासतों के मंदिरों के पुजारियों को अनुदान देती है। यह राशि 16504 रुपये प्रतिवर्ष होती है। उत्तर प्रदेश में धर्मार्थ संस्थाओं को अनुदान देने के लिए कोई धनराशि की व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन विलीनीकृत रियासतों के पुजारियों के लिए सामान्य प्रशासन के बजट के जरिए अनुदान की व्यवस्था की जाती है। धर्मार्थ संस्था के लिए शासन की ओर से पीसीएस संवर्ग का एक अधिकारी मुख्य कार्यपालक अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। तहसीलदार स्तर का एक अधिकारी अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी होता है। वित्त एवं लेखा सेवा का एक अधिकारी सहायक लेखधिकारी के पद पर मंदिर में कार्यरत होता है। निम्न जिलों में मंदिर के पुजारियों को अनुदान मिलता है[1]-

  1. हमीरपुर - 810 रुपये
  2. झांसी - 3545 रुपये
  3. चित्रकूट - 3650 रुपये
  4. जालौन - 828 रुपये
  5. वाराणसी - 360 रुपये
  6. महोबा - 120 रुपये

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों को भी प्रदेश सरकार की तरफ से वेतन मिलता है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली वार्षिक आय के सापेक्ष वहां के कर्मचारियों, पुजारियों के वेतन, रखरखाव और अन्य खर्चे शासन द्वारा दिए जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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