कूच बिहार
कूच बिहार भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त का एक नगर और ज़िला है। यह तोरसा नदी के किनारे स्थित है और तिस्ता तथा संकोश नदियाँ ब्रह्मपुत्र में मिलने से पहले इस ज़िले से होकर गुज़रती हैं। इसका नाम कोच नामक क़बाइलियों के आधार पर पड़ा है, जिन्हें बाद को, ख़ासकर उनके राजाओं को क्षत्रिय समझा जाने लगा। सन् 1586 से 1949 तक कूच बिहार एक छोटी रियासत के रूप में था।
इतिहास
कूच बिहार कामरूप (आसाम) के प्राचीन हिन्दू शासकों के राज्य का एक अंग था। भास्कर वर्मा (लगभग 600-650 ई.) के काल में यह राज्य करतोया तक फैला हुआ था। लेकिन सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में वह कामरूप से अलग हो गया और स्थानीय कोच लोगों के मुखिया विश्वसिंह के द्वारा स्थापित नये राज्य की राजधानी कूच बिहार बन गई।
इस वंश का सबसे बड़ा राजा विश्वसिंह का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी नरनारायण (1540-84 ई.) हुआ। इसने आसाम का काफ़ी बड़ा भू-भाग अपने अधीन कर लिया और आधुनिक रंगपुर ज़िले के दक्षिणी अंचल तक अपनी शक्ति का विस्तार किया। वह हिन्दुत्व कला और साहित्य का बहुत बड़ा पोषक था। उसने गौहाटी के निकट कामाख्या देवी के मन्दिर का फिर से निर्माण कराया। यह मन्दिर काला पहाड़ नामक मुस्लिम हमलावर द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था। वह आसाम के वैष्णव धर्म का महान् संस्थापक शंकरदेव का संरक्षक था। हमलावर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र और भतीजे में उत्तराधिकार का युद्ध छिड़ गया। उसके पुत्र ने अपने को बचाने के लिए मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। उसका राज्य काफ़ी अरसे तक मुग़लों के अधीन बना रहा, किन्तु 1772 ई. में उस पर भाटों ने हमला कर दिया। तत्कालीन राजा ने बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स से सहायता की मांग की। वारेन हेस्टिंग्स ने कम्पनी के सैनिकों की एक टुकड़ी मदद के लिए भेज दी, जिसने भाटों को खदेड़कर उन्हें संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। कम्पनी और कूच बिहार के राजा के बीच एक संधि हुई, जिसके अधीन राजा ने ईस्ट इंडिया कम्पनी का संरक्षण स्वीकार कर लिया और इसके बदले में वह कम्पनी को वार्षिक राजस्व देने के लिए राज़ी हो गया।[1]
भारत में विलय
कूचबिहार 1938 ई. तक बंगाल के गवर्नर के शासनांतर्गत रहा, किन्तु इसके बाद इसका नियंत्रण ईस्टर्न स्टेट्स एजेन्सी के सुपुर्द कर दिया गया। 1950 ई. में इसका विलय भारतीय गणतंत्र में हुआ और यह पश्चिमी बंगाल का एक ज़िला बन गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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