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'''विश्वकर्मा जयन्ती''' सनातन परंपरा में पूरी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, [[लोहा|लोहे]], मशीनों तथा औज़ारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम आदि में [[विश्वकर्मा]] की [[पूजा]] होती है। इस अवसर पर मशीनों और औज़ारों की साफ-सफाई आदि की जाती है और उन पर [[रंग]] किया जाता है। विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर ज़्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। विश्वकर्मा [[हिन्दू]] मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं के शिल्पी के रूप में जाने जाते हैं।  
 
'''विश्वकर्मा जयन्ती''' सनातन परंपरा में पूरी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, [[लोहा|लोहे]], मशीनों तथा औज़ारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम आदि में [[विश्वकर्मा]] की [[पूजा]] होती है। इस अवसर पर मशीनों और औज़ारों की साफ-सफाई आदि की जाती है और उन पर [[रंग]] किया जाता है। विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर ज़्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। विश्वकर्मा [[हिन्दू]] मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं के शिल्पी के रूप में जाने जाते हैं।  
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भगवान विश्वकर्मा की जयंती [[वर्षा ऋतु]] के अंत और [[शरद ऋतु]] के शुरू में मनाए जाने की परंपरा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन [[सूर्य]] [[कन्या राशि]] में प्रवेश करते हैं। चूंकि सूर्य की गति [[अंग्रेज़ी]] तारीख से संबंधित है, इसलिए कन्या संक्रांति भी प्रतिवर्ष [[17 सितंबर]] को पड़ती है। जैसे [[मकर संक्रांति]] अमूमन [[14 जनवरी]] को ही पड़ती है। ठीक उसी प्रकार कन्या संक्रांति भी प्राय: 17 सितंबर को ही पड़ती है। इसलिए विश्वकर्मा जयंती भी 17 सितंबर को ही मनायी जाती है।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/09/17/vishwakarma-god-of-instruments-indian-festivals/ |title=यंत्रों के देव भगवान विश्वकर्मा |accessmonthday=13 जून |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language=हिंदी }}</ref>
 
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ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियाँ थीं, वे सभी विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित की गई थीं। यहाँ तक कि [[सतयुग]] का 'स्वर्ग लोक', [[त्रेता युग]] की '[[लंका]]', [[द्वापर युग]] की '[[द्वारिका]]' और [[कलियुग|कलयुग]] का '[[हस्तिनापुर]]' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित थे। कहा जाता है कि 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के निर्माता भी विश्वकर्मा ही थे। इसके अतिरिक्त जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान हैं, जो भी मंदिर और देवालय हैं, जिनका उल्लेख शास्त्रों और [[पुराण|पुराणों]] में है, उनके निर्माण का भी श्रेय विश्वकर्मा को ही जाता है। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
 
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियाँ थीं, वे सभी विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित की गई थीं। यहाँ तक कि [[सतयुग]] का 'स्वर्ग लोक', [[त्रेता युग]] की '[[लंका]]', [[द्वापर युग]] की '[[द्वारिका]]' और [[कलियुग|कलयुग]] का '[[हस्तिनापुर]]' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित थे। कहा जाता है कि 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के निर्माता भी विश्वकर्मा ही थे। इसके अतिरिक्त जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान हैं, जो भी मंदिर और देवालय हैं, जिनका उल्लेख शास्त्रों और [[पुराण|पुराणों]] में है, उनके निर्माण का भी श्रेय विश्वकर्मा को ही जाता है। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
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श्लोक का उच्चारण करने के बाद चारों दिशाओ में अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। जलपात्र में पुष्प छोड़ें। तत्पश्चात [[हृदय]] में भगवान विश्वकर्मा का [[ध्यान]] करें। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करना चाहिए। शुद्ध भूमि पर अष्टदल [[कमल]] बनाएँ। उस स्थान पर सप्त धान्य रखें। उस पर [[मिट्टी]] और [[तांबा|तांबे]] के पात्र से [[जल]] का छिड़काव करें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करें। [[चावल]] से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें और [[वरुण देवता]] का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करना चाहिए। इसके बाद भगवान से आग्रह करें- "हे विश्वकर्मा देवता, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी [[पूजा]] स्वीकार कीजिए।" इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और [[यंत्र|यंत्रों]] आदि की पूजा कर हवन और [[यज्ञ]] करें।
 
श्लोक का उच्चारण करने के बाद चारों दिशाओ में अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। जलपात्र में पुष्प छोड़ें। तत्पश्चात [[हृदय]] में भगवान विश्वकर्मा का [[ध्यान]] करें। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करना चाहिए। शुद्ध भूमि पर अष्टदल [[कमल]] बनाएँ। उस स्थान पर सप्त धान्य रखें। उस पर [[मिट्टी]] और [[तांबा|तांबे]] के पात्र से [[जल]] का छिड़काव करें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करें। [[चावल]] से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें और [[वरुण देवता]] का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करना चाहिए। इसके बाद भगवान से आग्रह करें- "हे विश्वकर्मा देवता, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी [[पूजा]] स्वीकार कीजिए।" इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और [[यंत्र|यंत्रों]] आदि की पूजा कर हवन और [[यज्ञ]] करें।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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10:50, 13 जून 2013 का अवतरण

विश्वकर्मा जयन्ती सनातन परंपरा में पूरी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे, मशीनों तथा औज़ारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम आदि में विश्वकर्मा की पूजा होती है। इस अवसर पर मशीनों और औज़ारों की साफ-सफाई आदि की जाती है और उन पर रंग किया जाता है। विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर ज़्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। विश्वकर्मा हिन्दू मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं के शिल्पी के रूप में जाने जाते हैं।

तिथि

भगवान विश्वकर्मा की जयंती वर्षा ऋतु के अंत और शरद ऋतु के शुरू में मनाए जाने की परंपरा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। चूंकि सूर्य की गति अंग्रेज़ी तारीख से संबंधित है, इसलिए कन्या संक्रांति भी प्रतिवर्ष 17 सितंबर को पड़ती है। जैसे मकर संक्रांति अमूमन 14 जनवरी को ही पड़ती है। ठीक उसी प्रकार कन्या संक्रांति भी प्राय: 17 सितंबर को ही पड़ती है। इसलिए विश्वकर्मा जयंती भी 17 सितंबर को ही मनायी जाती है।[1]

मान्यता

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियाँ थीं, वे सभी विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित की गई थीं। यहाँ तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर युग की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित थे। कहा जाता है कि 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के निर्माता भी विश्वकर्मा ही थे। इसके अतिरिक्त जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान हैं, जो भी मंदिर और देवालय हैं, जिनका उल्लेख शास्त्रों और पुराणों में है, उनके निर्माण का भी श्रेय विश्वकर्मा को ही जाता है। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

कथा

भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को सिद्ध करने वाली एक कथा भी है। कथा के अनुसार काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण तो था, परंतु स्थान-स्थान पर घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। उसके जीविकोपार्जन का साधन निश्चित नहीं था। पति के समान ही पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहाँ जाते थे, लेकिन यह इच्छा पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो। इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।

पूजा की विधि

देव शिल्पकार विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से किया जाता है। यज्ञकर्ता स्नान और नित्यक्रिया आदि से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजा स्थान पर बैठे। इसके उपरांत विष्णु भगवान का ध्यान करे। बाद में हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्न श्लोक का उच्चारण करे-

'ओम आधार शक्तपे नम:' और 'ओम कूमयि नम:', 'ओम अनन्तम नम:', 'पृथिव्यै नम:'

श्लोक का उच्चारण करने के बाद चारों दिशाओ में अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। जलपात्र में पुष्प छोड़ें। तत्पश्चात हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करना चाहिए। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएँ। उस स्थान पर सप्त धान्य रखें। उस पर मिट्टी और तांबे के पात्र से जल का छिड़काव करें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करें। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देवता का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करना चाहिए। इसके बाद भगवान से आग्रह करें- "हे विश्वकर्मा देवता, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।" इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन और यज्ञ करें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यंत्रों के देव भगवान विश्वकर्मा (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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