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13:01, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सदाव्रत 'अन्नदानमाहात्म्य' कहा गया है।
  • हेमाद्रि[1] में भविष्योत्तरपुराण का उद्धरण आया है कि कृष्ण ने युधिष्ठर से दूसरों को अन्न (भोजन) देने की महत्ता बतायी है और कहा है कि राम एवं लक्ष्मण को ब्रह्मभोज न देने के कारण बनवास भोगना पड़ा। राजा श्वेत को स्वर्ग में भी भूख की पीड़ा सहनी पड़ी, क्योंकि उसने भूखे ब्राह्मणों को भोजन नहीं दिया था।
  • इस व्रत का अर्थ है सदा भोजन (व्रत) देना।
  • आजकल इसे 'सदावर्त', 'सदाबर्त' कहते हैं।
  • हेमाद्रि[2] में एक श्लोक है 'भोजन प्राणियों का जीवन है, यही उनकी शक्ति है, शौर्य है और सुख है, अत: अन्नदाता प्रत्येक वस्तु का दाता कहा जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि व्रत खण्ड 2, 469-475
  2. हेमाद्रि व्रत खंड 2, 471

संबंधित लेख

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