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'''हिंदी प्रदीप''' एक मासिक पत्र था, जो [[1 सितम्बर]], [[1877]] को निकाला गया। यह पत्र बालकृष्ण भट्ट द्वारा निकाला गया था।
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'''हिंदी प्रदीप''' एक मासिक पत्र था, जो [[7 सितम्बर]], [[1877]] को प्रथम बार प्रकाशित हुआ। यह पत्र बालकृष्ण भट्ट द्वारा निकाला गया था और  इसके सम्पादक बालकृष्ण भट्ट थे  और पृष्ठ संख्या 16 थी। इसमें लेखों के अतिरिक्त नाटक भी प्रकाशित होते थे।
 
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*[[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] के अनुसार "'हिंदी प्रदीप' गद्य साहित्य का ढर्रा निकालने के लिए ही" निकाला गया था।  
*कई घोर संकट के बावजूद भी हिंदी प्रदीप 35 वर्षों तक निरंतर निकलता रहा।
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*कई घोर संकट के बावजूद भी 'हिंदी प्रदीप' 35 [[वर्ष|वर्षों]] तक निरंतर निकलता रहा।
 
*इस मासिक पत्र का उद्घाटन [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] जी के हाथों हुआ था।  
 
*इस मासिक पत्र का उद्घाटन [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] जी के हाथों हुआ था।  
*हिंदी प्रदीप का शुरू होना पत्रकारिता की दृष्टि से [[हिंदी साहित्य]] के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी।  
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*हिंदी प्रदीप का शुरू होना [[पत्रकारिता]] की दृष्टि से [[हिंदी साहित्य]] के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी।  
 
*इस पत्र ने हिंदी [[पत्रकारिता]] को एक नई दिशा प्रदान की। इसका स्वर राष्ट्रीयता, निर्भीकता तथा तेजस्विता का था, अतः [[अंग्रेज़]] सरकार इस पर कड़ी निगरानी रखती थी।
 
*इस पत्र ने हिंदी [[पत्रकारिता]] को एक नई दिशा प्रदान की। इसका स्वर राष्ट्रीयता, निर्भीकता तथा तेजस्विता का था, अतः [[अंग्रेज़]] सरकार इस पर कड़ी निगरानी रखती थी।
 
*पत्र में हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर कई प्रकार की सामग्री रहती थी।
 
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*'[[कविवचन सुधा]]' के बाद 'हिंदी प्रदीप' ही वह पत्र रह गया था, जो अपने पाठकों में राष्ट्रीय चेतना जागृत कर सका। सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं पर स्वतंत्र विचार प्रकाशन के कारण यह पत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया और 'कविवचन सुधा' के बाद इसे ही सबसे अधिक ख्याति मिली।<ref>{{cite book | last =हिंदी साहित्य कोश- धीरेंद्र वर्मा | first =भाग-2  | title = हिंदी साहित्य का इतिहास | edition = | publisher =ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी | pages =678  | chapter =}}</ref>
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13:06, 6 सितम्बर 2013 का अवतरण

हिंदी प्रदीप एक मासिक पत्र था, जो 7 सितम्बर, 1877 को प्रथम बार प्रकाशित हुआ। यह पत्र बालकृष्ण भट्ट द्वारा निकाला गया था और इसके सम्पादक बालकृष्ण भट्ट थे और पृष्ठ संख्या 16 थी। इसमें लेखों के अतिरिक्त नाटक भी प्रकाशित होते थे।

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार "'हिंदी प्रदीप' गद्य साहित्य का ढर्रा निकालने के लिए ही" निकाला गया था।
  • कई घोर संकट के बावजूद भी 'हिंदी प्रदीप' 35 वर्षों तक निरंतर निकलता रहा।
  • इस मासिक पत्र का उद्घाटन भारतेंदु जी के हाथों हुआ था।
  • हिंदी प्रदीप का शुरू होना पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी साहित्य के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी।
  • इस पत्र ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई दिशा प्रदान की। इसका स्वर राष्ट्रीयता, निर्भीकता तथा तेजस्विता का था, अतः अंग्रेज़ सरकार इस पर कड़ी निगरानी रखती थी।
  • पत्र में हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर कई प्रकार की सामग्री रहती थी।
  • 'कविवचन सुधा' के बाद 'हिंदी प्रदीप' ही वह पत्र रह गया था, जो अपने पाठकों में राष्ट्रीय चेतना जागृत कर सका। सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं पर स्वतंत्र विचार प्रकाशन के कारण यह पत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया और 'कविवचन सुधा' के बाद इसे ही सबसे अधिक ख्याति मिली।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी साहित्य कोश- धीरेंद्र वर्मा, भाग-2 हिंदी साहित्य का इतिहास (हिंदी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, 678।

बाहरी कड़ियाँ

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