होलिका दहन

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पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुनपूर्णिमा) के दिन ही प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। इसके एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को 'एरंड' या गूलर वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात या सायंकाल इसे जलाया जाता है। परंपरा के अनुसार सभी लोग अलाव के चारों ओर एकत्रित होते हैं। इसी अलाव को होली कहा जाता है। होली की अग्नि में सूखी पत्तियाँ, टहनियाँ, व सूखी लकड़ियाँ डाली जाती हैं, तथा लोग इसी अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का आनन्द लेते हैं। बसंतागमन के लोकप्रिय गीत भक्त प्रहलाद की रक्षा की स्मृति में गाये जाते हैं तथा उसकी क्रूर बुआ होलिका की भी याद दिलाते हैं। कई समुदायों में होली में जौ की बालियाँ भूनकर खाने की परंपरा है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि आगामी फ़सल कैसी होगी, इसका अनुमान होली की शिखाएँ किस ओर उड़ रही हैं तथा भुने हुए जौ के दानों के रंग व स्वाद से लगाया जा सकता है। होली के अलाव की राख में कुछ औषधि गुण भी पाए जाते हैं, ऐसी लोगों की धारणा है। लोग होली के अलाव अंगारों को घर ले जाते हैं तथा उसी से घर में महिलाएँ होली पर बनाई हुई गोबर की घुरघुली जलाती हैं। कुछ क्षेत्रों में लोग होली की आग को सालभर सुरक्षित रखते हैं और इससे चूल्हे जलाते हैं।

होलिकोत्सव

फालैन गांव में तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव निकलता पण्डा

इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञपर्व भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इसदिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को होला कहते है। इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। होली का समय अपने आप में अनूठा ही है। फ़रवरी- मार्च में जब होली मनाई जाती है, तब सब ओर चिंतामुक्त वातावरण होता है- किसान फ़सल कटने के बाद आश्वस्त होता है। पशुचारा तो संगृहित किया जा चुका होता है। शीत ऋतु अपने समापन पर होती है। दिन न तो बहुत गर्म, न ही रातें बहुत ठंडी होती हैं। होली फाल्गुन मास में पूर्ण चंद्रमा के दिन मनाई जाती है। यद्यपि यह उत्तर भारत में एक सप्ताह व मणिपुर में छह दिन तक मनाई जाती है। होली वर्ष का अंतिम तथा जनसामान्य का सबसे बड़ा त्योहार है। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। विभिन्न देशों में इसके अलग-अलग नाम और रूप हैं। होलिका की अग्नि में पुराना वर्ष 'जो होली' के रूप में जल जाता है और नया वर्ष नयी आशाएँ, आकांक्षाएँ लेकर प्रकट होता है। मानव जीवन में नई ऊर्जा, नई स्फूर्ति का विकास होता है। यह हिन्दुओं का नववर्षोत्सव है।

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