हुएनसांग के अनुसार कपिलवस्तु के दक्षिण 10 मील की दूरी पर वह पवित्र स्थान वर्तमान था, जहाँ (पूर्व बुद्ध) क्रकुच्छन्द (पालि=क्रकुसंध) उत्पन्न हुए थे। यहाँ एक स्तूप विद्यमान था, जहाँ बुद्ध की अस्थियाँ गड़ी हुई थीं। उसी के समक्ष अशोक-निर्मित एक प्रस्तर-स्तम्भ विद्यमान था, जो 30 फीट ऊँचा था। इसके शीर्ष स्थान पर एक सिंह-प्रतिमा निर्मित थी। इस लाट पर बुद्ध के परिनिर्वाण की कथा उत्कीर्ण थी। इस स्थान से लगभग 30 ली (6 मील) उत्तर-पूर्व वह स्थान था, जहाँ कनकमुनि उत्पन्न हुई थे। वहाँ एक स्तूप विद्यमान था, जिसमें कनकमुनि बुद्ध की अस्थियाँ रखी हुई थीं। यहाँ पर भी एक प्रस्तर-स्तम्भ था, जो सिंह शीर्षक था। यह 20 फीट ऊँचा था। इसका निर्माण अशोक ने कराया था। इस पर बुद्ध के परिनिर्वाण का उल्लेख प्राप्य था। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित 30 ज्ञात स्तंभों में 5 अशोक स्तम्भ बिहार में, एक कोल्हुआ, एक वैशाली, दो रामपुरवा, पश्चिमी चंपारण, एक लौरिया नंदनगढ़ और एक अशोक स्तम्भ अरेराज पूर्वी चंपारण में स्थित है।
अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उसने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ। परंपरा के अनुसार उसने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उसके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी द्रष्टव्य हैं।
भारत में अशोक स्तम्भ
- अशोक स्तम्भ वैशाली
- अशोक स्तम्भ इलाहाबाद
- अशोक स्तम्भ सारनाथ
- अशोक स्तम्भ दिल्ली
- अशोक स्तम्भ चेन्नई
- अशोक स्तम्भ लुम्बिनी
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