महात्मा गाँधी और विश्व

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महात्मा गाँधी और विश्व
पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी
अन्य नाम बापू, महात्मा जी
जन्म 2 अक्तूबर, 1869
जन्म भूमि पोरबंदर, गुजरात
मृत्यु 30 जनवरी, 1948
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
मृत्यु कारण हत्या
अभिभावक करमचंद गाँधी, पुतलीबाई
पति/पत्नी कस्तूरबा गाँधी
संतान हरिलाल, मनिलाल, रामदास, देवदास
स्मारक राजघाट (दिल्ली), बिरला हाउस (दिल्ली) आदि।
पार्टी काँग्रेस
शिक्षा बैरिस्टर
विद्यालय बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
संबंधित लेख गाँधी युग, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन, दांडी मार्च, व्यक्तिगत सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ख़िलाफ़त आन्दोलन

महात्मा गाँधी सम्पूर्ण विश्व पटल पर सिर्फ़ एक नाम ही नहीं, अपितु शांति और अहिंसा का एक प्रमुख प्रतीक हैं। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि- 'हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी, कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान पृथ्वी पर कभी आया था।' संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा की।

लोकप्रिय राजनेता

महात्मा गाँधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं और व्यक्तित्व में से हैं। यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किये हैं। देश विदेश के टिकटों में देखें, तो गाँधी जी का पूरा जीवन चरित्र पाया जा सकता है।

डाक टिकटों में महात्मा गाँधी

सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा-सा काग़ज़ का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्त्व और कीमत दोनों ही इससे काफ़ी ज़्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। ऐसे में डाक-टिकटों पर स्थान पाना गौरव की बात है।


भारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे प्रथम व्यक्तित्व थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ। बहुत कम लोगों को पता होगा, कि भारत को ग़ुलामी के शिकंजे में कसने वाले ब्रिटेन ने जब पहली दफा किसी महापुरुष पर डाक टिकट निकाला, तो वह महात्मा गाँधी ही थे। इससे पहले ब्रिटेन में डाक टिकट पर केवल राजा या रानी के ही चित्र छापे जाते थे। यह टिकट रस्तोगी के संग्रह में शामिल है। डाक टिकट पर पहले गाँधी जी के लिए बापू शब्द का प्रयोग हुआ था, मगर बाद की टिकटों पर महात्मा गाँधी लिखा जाने लगा।

शांति के राजदूत

कई देशों ने महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी, 125वीं जयंती व भारत की 50वीं स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर कई प्रकार के अलग-अलग मूल्यों के डाक टिकट व डाक सामग्रियाँ समय–समय पर जारी की हैं। शांति के मसीहासहस्त्राब्दि के नायक के रूप में भी अनेक देशों ने, गांधी जी के चित्रों को आधार बनाकर डाक टिकट व अन्य डाक सामग्रियाँ जारी की हैं। कई देशों ने महात्मा गांधी पर डाक टिकट ही नहीं, बल्कि मिनीएचर और सोविनियर शीट्स जारी की। उन्हें इस बात की हैरानी है कि, दुनिया के अधिकांश देशों ने बापू पर टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया, लेकिन पाकिस्तान ने नहीं। शांति के इस दूत की उपेक्षा की शायद वजह यह है कि, पाकिस्तान में कभी भी शांति बहाल नहीं हुई। भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं।


इन्हें भी देखें: महात्मा गाँधी के अनमोल वचन, डाक टिकटों में महात्मा गाँधी एवं महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय



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