एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

रहिमन बहु भेषज करत -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

‘रहिमन’ बहु भेषज करत , व्याधि न छाँड़त साथ ।
खग, मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥

अर्थ

कितने ही इलाज किये, कितनी ही दवाइयाँ लीं, फिर भी रोग ने पिंड नहीं छोड़ा। पक्षी और हिरण आदि पशु जंगल में सदा नीरोग रहते हैं भगवान् के भरोसे, क्योंकि वह अनाथों का नाथ है।


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख