विश्वंभर 'मानव'
विश्वंभर 'मानव'
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पूरा नाम | विश्वंभर 'मानव' |
जन्म | 1912 ई. |
जन्म भूमि | डिबाई ग्राम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'खड़ी बोली के गौरव ग्रंथ', 'लहर और चट्टान', 'प्रेमचन्द', 'प्रेमिकाएँ', 'पतझर', 'कामायनी की टीका', 'नयी कविता: नये कवि', 'पीले गुलाब की आत्मा' आदि।
'आधुनिक आलोचना का विकास' |
भाषा | हिन्दी |
प्रसिद्धि | नाटककार, आलोचक, उपन्यासकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विश्वंभर मानव आलोचना को आपना धर्म मानते थे। उन्होंने "आलोचकों का घोषण पत्र" भी प्रकाशित किया था, जो उनकी निष्ठा का प्रमाण है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
विश्वंभर 'मानव' (जन्म- 1912 ई., बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार, उपन्यासकार, कवि एवं आलोचक थे। इन्होंने मुख्यत: आलोचनात्मक, किन्तु साथ ही साहित्य की अन्य विधाओं में भी मौलिक कृतियाँ लिखी हैं। हिन्दी के लेखकों और विचारकों में इनका एक निश्चित स्थान है। विश्वंभर मानव की लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
परिचय
विश्वंभर मानव का जन्म 1912 ई. में उत्तर प्रदेश के ज़िला बुलन्दशहर में डिबाई नामक ग्राम में हुआ था। अपने व्यावसायिक जीवन के अंतर्गत ये पहले अध्यापक रहे और फिर आकाशवाणी से सम्बद्ध रहे। बाद में इन्होंने केवल लेखन का कार्य ही किया। ये स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता के साथ नयी कृतियों के सृजन में व्यस्त रहे।
प्रभाववादी आलोचक
विश्वंभर मानव का मुख्य स्थान आलोचक का है, विशेषकर छायावाद, रहस्यवाद और गीत-साहित्य पर आपने अपने बहुमूल्य विचार दिये हैं। साहित्य के क्षेत्र में आप भाव पक्ष के समर्थक रहे और प्रेषणीयता के लिए साहित्य की दुरूहता को श्रेयस्कर नहीं मानते। 'मानव' जी की आलोचना शैली विशेषकर 'नयी कविता' और 'खड़ी बोली' के गौरव 'ग्रंथ' में, हम प्रभाववादी ही कह सकते हैं। किंतु यह सब होते हुए भी 'मानव' जी की प्रभाववादी शैली में निर्भीकता और विचार विश्लेषण महत्त्वपूर्ण है। प्रभाववादी आलोचक होने के नाते ही हमें मानव जी की आलोचना में कविता के माध्यम से व्यक्तित्व और व्यक्तित्व के माध्यम से साहित्य को समझने की प्रक्रिया मिलती है। वे आलोचना को आपना धर्म मानते हैं। उन्होंने "आलोचकों का घोषण पत्र" भी प्रकाशित किया था, जो उनकी निष्ठा का प्रमाण है।
नाटककार
एक नाटककार के रूप में विश्वंभर मानव का नाट्य संग्रह 'लहर और चट्टान' रेडियो नाटकों का संग्रह है। नाटकों में कुछ प्रेम और वियोग जैसी स्थितियों के साथ-साथ काल-चक्र और कुछ जीवन की विवशताओं और अनिश्चित सम्भावनाओं के आधार पर रचे गये हैं। नाटकों में 'मानव' जी को वह सफलता नहीं मिल पाई, जो आलोचना में मिली थी।
उपन्यासकार
उपन्यासकार के रूप में 'मानव' जी अधिकतर परिकल्पनावादी रहे। विशेषत: उनके उपन्यास 'प्रेमिकाएँ' में हमें यह स्पष्ट लगता है कि लेखक सामाजिक तथा तात्त्विक यथार्थ की अपेक्षा परिकल्पना को अधिक सबल माध्यम मानता है। यह दोष प्राय: प्रत्येक भावुकतावादी लेखक में आ जाता है।
कवि
कवि के रूप में विश्वंभर मानव की कविताएँ उत्तर छायावादी प्रवृत्तियों की पोषक रही हैं। उन्होंने प्राय: गीत लिखे हैं। सम्पूर्ण व्यक्तित्व में जैसे कवि की आत्मा सो रही है। अद्वितीय अनुभव की स्थिति और व्यंजना भावुकता की तरलता में कलात्मक तटस्थता को नष्ट कर देती है, इसीलिए कविता हल्की पड़ जाती है।
रचनाएँ
विश्वंभर मानव की सबसे अधिक उपयोगी पुस्तकें 'कामायनी एक टीका', 'प्रेमचन्द' एवं 'हिन्दी आलोचना का विकास' (1972 ई.) हैं। उनके प्रकाशित ग्रंथों में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण हैं-
- 'खड़ी बोली के गौरव ग्रंथ' (1943)
- 'महादेवी की रहस्य साधना' (1944)
- 'अवसाद' (काव्य-संकलन, 1944)
- 'सुमित्रानन्दन पंत' (आलोचना, 1951)
- 'लहर और चट्टान' (नाट्य-संग्रह, 1952)
- 'नयी कविता' (1957)
- 'प्रेमचन्द' (आलोचना 1961)
- 'प्रेमिकाएँ' (1960)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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