"नीराजन द्वादशी": अवतरणों में अंतर
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*राजा को अपने प्रासाद में राजकीय वस्तुओं के प्रतीकों की पूजा करनी चाहिए। | *राजा को अपने प्रासाद में राजकीय वस्तुओं के प्रतीकों की पूजा करनी चाहिए। | ||
*एक साध्वी नारी अथवा किसी सुन्दर वेश्या को राजा के सिर पर तीन बार दीप घुमाना चाहिए। | *एक साध्वी नारी अथवा किसी सुन्दर वेश्या को राजा के सिर पर तीन बार दीप घुमाना चाहिए। | ||
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*इसे सर्वप्रथम राजा अजपाल ने आरम्भ किया और इसे प्रतिवर्ष करना चाहिए।<ref>हेमोद्रि (व्रतखण्ड 1, 1190-1194, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref> | *इसे सर्वप्रथम राजा अजपाल ने आरम्भ किया और इसे प्रतिवर्ष करना चाहिए।<ref>हेमोद्रि (व्रतखण्ड 1, 1190-1194, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref> | ||
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09:45, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यह व्रत किया जाता है।
- जब भगवान विष्णु शयन से उठते हैं, उस रात्रि के आरम्भ में इसका सम्पादन होता है।
- विष्णु प्रतिमा एवं अन्य देवों, यथा—सूर्य, गौरी, शिव, अपने माता-पिता, गायों, अश्वों, गजों के समक्ष दीप की आरती करते हैं।
- राजा को अपने प्रासाद में राजकीय वस्तुओं के प्रतीकों की पूजा करनी चाहिए।
- एक साध्वी नारी अथवा किसी सुन्दर वेश्या को राजा के सिर पर तीन बार दीप घुमाना चाहिए।
- यह एक महती शान्ति है जो रोगों को भगाती है और अतुल सम्पत्ति लाती है।
- इसे सर्वप्रथम राजा अजपाल ने आरम्भ किया और इसे प्रतिवर्ष करना चाहिए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमोद्रि (व्रतखण्ड 1, 1190-1194, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।
अन्य संबंधित लिंक
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