"फाल्गुन कृत्य" के अवतरणों में अंतर
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− | *फाल्गुन [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[अष्टमी]] को [[लक्ष्मी]] एवं [[सीता]] की पूजा गन्ध आदि से की जाती है।<ref> | + | *फाल्गुन [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[अष्टमी]] को [[लक्ष्मी]] एवं [[सीता]] की पूजा गन्ध आदि से की जाती है।<ref>कृत्यकल्पतरु, व्रत0 441-443</ref>; <ref>कृत्यरत्नाकर 527, ब्रह्मपुराण से उद्धरण</ref> |
− | *फाल्गुन [[पूर्णिमा]] पर यदि [[फाल्गुनी नक्षत्र]] हो तो एक पलंग, बिछावन के साथ में दिया जाता है, इससे सुन्दर स्त्री एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।<ref> | + | *फाल्गुन [[पूर्णिमा]] पर यदि [[पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र|फाल्गुनी नक्षत्र]] हो तो एक पलंग, बिछावन के साथ में दिया जाता है, इससे सुन्दर स्त्री एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।<ref>[[विष्णु धर्मसूत्र]] 90</ref> |
− | *[[अर्यमा]] एवं [[अदिति]] से [[कश्यप]], [[अत्रि]] एवं [[अनुसूया]] से [[चंद्र देवता|चन्द्र]] फाल्गुन पूर्णिमा को उत्पन्न हुए थे, अतः [[सूर्य देव|सूर्य]] एवं चन्द्र की पूजा चन्द्रोदय के समय होती है और गान, नृत्य एवं संगीत का दौर चलता है।<ref>कृत्यरत्नाकर (530 | + | *[[अर्यमा]] एवं [[अदिति]] से [[कश्यप]], [[अत्रि]] एवं [[अनुसूया]] से [[चंद्र देवता|चन्द्र]] फाल्गुन पूर्णिमा को उत्पन्न हुए थे, अतः [[सूर्य देव|सूर्य]] एवं चन्द्र की पूजा चन्द्रोदय के समय होती है और गान, नृत्य एवं संगीत का दौर चलता है।<ref>कृत्यरत्नाकर (530</ref>; <ref>कृत्यकल्पतरु (नैयतकालिक काण्ड, 443</ref> |
*इस पूर्णिमा पर 'उत्तिर' नामक एक मन्दिर उत्सव मनाया जाता है। | *इस पूर्णिमा पर 'उत्तिर' नामक एक मन्दिर उत्सव मनाया जाता है। | ||
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12:48, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह द्रष्टव्य है कि सामान्यतः सभी बृहत वार्षिक उत्सव दक्षिण भारत में छोटे या बड़े मन्दिर में फाल्गुन मास में मनाये जाते हैं।[1]; [2]; [3]; [4]; [5]
- फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को लक्ष्मी एवं सीता की पूजा गन्ध आदि से की जाती है।[6]; [7]
- फाल्गुन पूर्णिमा पर यदि फाल्गुनी नक्षत्र हो तो एक पलंग, बिछावन के साथ में दिया जाता है, इससे सुन्दर स्त्री एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।[8]
- अर्यमा एवं अदिति से कश्यप, अत्रि एवं अनुसूया से चन्द्र फाल्गुन पूर्णिमा को उत्पन्न हुए थे, अतः सूर्य एवं चन्द्र की पूजा चन्द्रोदय के समय होती है और गान, नृत्य एवं संगीत का दौर चलता है।[9]; [10]
- इस पूर्णिमा पर 'उत्तिर' नामक एक मन्दिर उत्सव मनाया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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