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'''नासिक''' शहर दक्षिण-पश्चिमी [[भारत]] के पश्चिमोत्तर [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[गोदावरी नदी]] के किनारे बसा हुआ है और [[मुंबई]] से 180 किमी पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहां हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और [[महाकाव्य]] [[रामायण]] के नायक [[राम]] द्वारा अपनी पत्नि [[सीता]] और भाई [[लक्ष्मण]] के साथ यहां कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।
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'''नासिक''' शहर दक्षिण-पश्चिमी [[भारत]] के पश्चिमोत्तर [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[गोदावरी नदी]] के किनारे बसा हुआ है। यह [[मुंबई]] से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहाँ हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और [[महाकाव्य]] [[रामायण]] के नायक भगवान [[श्रीराम]] द्वारा अपनी पत्नि [[सीता]] और भाई [[लक्ष्मण]] के साथ यहाँ कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।
 
==नामकरण==
 
==नामकरण==
कहा जाता है कि रामायण में वर्णित [[पंचवटी]] जहाँ श्री राम, लक्ष्मण और सीता वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। [[किंवदंती]] है कि इसी स्थान पर [[रावण]] की भगिनी [[शूर्पणखा]] को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था जिसके कारण इस स्थान को नासिक कहा जाता है।
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कहा जाता है कि रामायण में वर्णित [[पंचवटी]], जहाँ श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। [[किंवदंती]] है कि इसी स्थान पर [[लंका]] के राजा [[रावण]] की भगिनी (बहन) [[शूर्पणखा]] को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'नासिक' कहा जाता है। नासिक [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की आस्था प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा मिश्रण है।
 
 
 
==इतिहास और दर्शनीय स्थल==
 
==इतिहास और दर्शनीय स्थल==
नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक [[बौद्ध]] गुफाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त [[जैन|जैनों]] के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभुस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है।  
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नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक [[बौद्ध]] गुफ़ाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त [[जैन|जैनों]] के आठवें [[तीर्थंकर]] [[चन्द्रप्रभ|चंद्र प्रभस्वामी]] और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है।
 
[[चित्र:Nasik-Maharashtra.jpg|thumb|300px|[[गोदावरी नदी]], नासिक, [[महाराष्ट्र]]- 1848]]
 
[[चित्र:Nasik-Maharashtra.jpg|thumb|300px|[[गोदावरी नदी]], नासिक, [[महाराष्ट्र]]- 1848]]
1680 ई. में लिखित तारीखे-[[औरंगज़ेब]] के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर [[औरंगज़ेब]] की धर्माधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, [[राम|राम जी]], कपालेश्वर और [[महालक्ष्मी]] के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट जो असरा फाटक के पास था। अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।  
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1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर [[औरंगज़ेब]] की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और [[महालक्ष्मी]] के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट, जो असरा फाटक के पास था, अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है। नासिक के प्रायः सभी मंदिर [[मुस्लिम]] शासन काल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं और स्वयं [[पेशवा|पेशवाओं]] तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में 18 लाख रुपये की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में [[पुर्तग़ाल]] से बनकर आया था।
 
 
नासिक के प्रायः सभी मंदिर मुस्लिम शासनकाल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं औरस्वयं [[पेशवा|पेशवाओं]] तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में, 18 लाख की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में [[पुर्तग़ाल]] से बनकर आया था।  
 
 
====कालाराम मंदिर====
 
====कालाराम मंदिर====
 
कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह [[वर्ष|वर्षों]] में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की हैं।  
 
कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह [[वर्ष|वर्षों]] में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की हैं।  
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====नारायण का मंदिर====
 
====नारायण का मंदिर====
 
सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम [[सत युग|सतयुग]] में [[पद्यनगर]], [[त्रेता युग|त्रेता]] में [[त्रिकंटक]], [[द्वापर युग|द्वापर]] में [[जनस्थान]] और [[कलि युग|कलियुग]] में नासिक है।  
 
सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम [[सत युग|सतयुग]] में [[पद्यनगर]], [[त्रेता युग|त्रेता]] में [[त्रिकंटक]], [[द्वापर युग|द्वापर]] में [[जनस्थान]] और [[कलि युग|कलियुग]] में नासिक है।  
====शिव पूजा का केंद्र====
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==शिव पूजा का केंद्र==
 
:'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'।  
 
:'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'।  
 
नासिक को [[शिव]] पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण [[काशी]] भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] [[गंगा नदी|गंगा]] के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से [[पूना]] के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-
 
नासिक को [[शिव]] पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण [[काशी]] भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] [[गंगा नदी|गंगा]] के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से [[पूना]] के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-
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[[मराठी भाषा|मराठी]] की प्रचलित कहावत की 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।  
 
[[मराठी भाषा|मराठी]] की प्रचलित कहावत की 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।  
 
====महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख====
 
====महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख====
नासिक के निकट एक गुफा में क्षहरात नरेश [[नहपान]] के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी [[भारत]] के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह [[अभिलेख]] [[शक संवत]] संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु<ref>सेनार्ट पृ. 363</ref> में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।<ref>कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े</ref>
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नासिक के निकट एक गुफ़ा में क्षहरात नरेश [[नहपान]] के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी [[भारत]] के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह [[अभिलेख]] [[शक संवत]] संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु<ref>सेनार्ट पृ. 363</ref> में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।<ref>कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े</ref>
 
==यातायात और परिवहन==
 
==यातायात और परिवहन==
 
नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम मे, [[मुम्बई]] से 150 किलोमीटर और [[पूना]] से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर [[गोदावरी नदी]] के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।  
 
नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम मे, [[मुम्बई]] से 150 किलोमीटर और [[पूना]] से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर [[गोदावरी नदी]] के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।  
 
==उद्योग और व्यापार==
 
==उद्योग और व्यापार==
 
इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले [[रबड़]] उत्पाद, [[कृषि]] उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।
 
इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले [[रबड़]] उत्पाद, [[कृषि]] उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।
 
 
==कृषि और खनिज==
 
==कृषि और खनिज==
 
[[चित्र:Surya-Narayan-Mandir-Nasik.jpg|thumb|250px|सूर्य नारायण मंदिर, नासिक]]
 
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==पर्यटन==
 
==पर्यटन==
 
शहर का मुख्य हिस्सा नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर [[त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग|त्रयंबकेश्वर]] गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
 
शहर का मुख्य हिस्सा नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर [[त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग|त्रयंबकेश्वर]] गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
====गुफा====
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====सीता गुफ़ा====
नासिक के पास सीता गुफा नामक एक नीची गुफा है, जिसके अंदर दो गुफाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर [[गौतम]] ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।  
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नासिक के पास सीता गुफ़ा नामक एक नीची गुफ़ा है, जिसके अंदर दो गुफ़ाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर [[गौतम]] ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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* [http://nashik.nic.in/ अधिकारिक वेबसाइट]
 
* [http://nashik.nic.in/ अधिकारिक वेबसाइट]
 
 
==संबंधित लेख==
 
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06:03, 19 सितम्बर 2013 का अवतरण

नासिक का मानचित्र
Nashik Map

नासिक शहर दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमोत्तर महाराष्ट्र राज्य में गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह मुंबई से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहाँ हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और महाकाव्य रामायण के नायक भगवान श्रीराम द्वारा अपनी पत्नि सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहाँ कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।

नामकरण

कहा जाता है कि रामायण में वर्णित पंचवटी, जहाँ श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। किंवदंती है कि इसी स्थान पर लंका के राजा रावण की भगिनी (बहन) शूर्पणखा को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'नासिक' कहा जाता है। नासिक हिन्दुओं की आस्था प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा मिश्रण है।

इतिहास और दर्शनीय स्थल

नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक बौद्ध गुफ़ाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त जैनों के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है।

1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर औरंगज़ेब की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और महालक्ष्मी के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट, जो असरा फाटक के पास था, अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है। नासिक के प्रायः सभी मंदिर मुस्लिम शासन काल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं और स्वयं पेशवाओं तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में 18 लाख रुपये की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में पुर्तग़ाल से बनकर आया था।

कालाराम मंदिर

कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह वर्षों में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की हैं।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक

नारायण का मंदिर

सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम सतयुग में पद्यनगर, त्रेता में त्रिकंटक, द्वापर में जनस्थान और कलियुग में नासिक है।

शिव पूजा का केंद्र

'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'।

नासिक को शिव पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण काशी भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में गोदावरी गंगा के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से पूना के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-

  1. जूनीगढ़ी
  2. नवी गढ़ी
  3. कोंकणीटेक
  4. जोगीवाड़ा टेक
  5. म्हास टेक
  6. महालक्ष्मी टेक
  7. सुनार टेक
  8. गणपति टेक
  9. चित्रघंट टेक

मराठी की प्रचलित कहावत की 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।

महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख

नासिक के निकट एक गुफ़ा में क्षहरात नरेश नहपान के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी भारत के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह अभिलेख शक संवत संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु[1] में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।[2]

यातायात और परिवहन

नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम मे, मुम्बई से 150 किलोमीटर और पूना से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर गोदावरी नदी के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।

उद्योग और व्यापार

इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले रबड़ उत्पाद, कृषि उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।

कृषि और खनिज

सूर्य नारायण मंदिर, नासिक

नासिक जिस क्षेत्र में अवस्थित है, उसे गोदावरी और गिरना नदियां अपवाहित करती हैं। जो खुली उपजाऊ घाटियों से गुज़रती है। गेंहूँ, ज्वार-बाजरा, मूँगफली यहां की प्रमुख फ़सलें हैं। गन्ना अग्रणी फ़सल है। नासिक क्षेत्र अंगूरों के लिए विख्यात है।

शिक्षण संस्थान

नासिक एक शैक्षणिक केंद्र भी है, जहां पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं।

पर्यटन

शहर का मुख्य हिस्सा नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर त्रयंबकेश्वर गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

सीता गुफ़ा

नासिक के पास सीता गुफ़ा नामक एक नीची गुफ़ा है, जिसके अंदर दो गुफ़ाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सेनार्ट पृ. 363
  2. कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े

बाहरी कड़ियाँ

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