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[[काम्यवन]] में यहीं कृष्ण की माता श्री [[यशोदा]] जी का पित्रालय था । श्री [[कृष्ण]] बचपन में अपनी माता जी के साथ यहाँ कभी–कभी आकर निवास करते थे । कभी–कभी [[नन्द]]–[[गोकुल]] अपने गऊओं के साथ पड़ाव में यहीं ठहरता था। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ यहाँ गोचारण भी करते थे ।<ref>देख यशोदाकुण्ड परम निर्मल । एथा गोचारणे कृष्ण हईया विहृल॥ (भक्तिरत्नाकर)</ref>।ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है । यह स्थान अत्यन्त मनोहर है ।
 
[[काम्यवन]] में यहीं कृष्ण की माता श्री [[यशोदा]] जी का पित्रालय था । श्री [[कृष्ण]] बचपन में अपनी माता जी के साथ यहाँ कभी–कभी आकर निवास करते थे । कभी–कभी [[नन्द]]–[[गोकुल]] अपने गऊओं के साथ पड़ाव में यहीं ठहरता था। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ यहाँ गोचारण भी करते थे ।<ref>देख यशोदाकुण्ड परम निर्मल । एथा गोचारणे कृष्ण हईया विहृल॥ (भक्तिरत्नाकर)</ref>।ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है । यह स्थान अत्यन्त मनोहर है ।
  
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काम्यवन में यहीं कृष्ण की माता श्री यशोदा जी का पित्रालय था । श्री कृष्ण बचपन में अपनी माता जी के साथ यहाँ कभी–कभी आकर निवास करते थे । कभी–कभी नन्द–गोकुल अपने गऊओं के साथ पड़ाव में यहीं ठहरता था। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ यहाँ गोचारण भी करते थे ।[1]।ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है । यह स्थान अत्यन्त मनोहर है ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देख यशोदाकुण्ड परम निर्मल । एथा गोचारणे कृष्ण हईया विहृल॥ (भक्तिरत्नाकर)

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