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====नवाबों की परम्परा====
 
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[[मुहम्मदशाह]] के समय में [[दिल्ली]] का [[मुग़ल साम्राज्य]] छिन्न-भिन्न होने लगा था। 1720 ई. में [[अवध]] के [[सूबेदार]] [[सआदत ख़ाँ]] ने [[लखनऊ]] में स्वतन्त्र सल्तनत कायम कर ली और लखनऊ के [[शिया|शिया संप्रदाय]] के नवाबों की प्रख्यात परंपरा का आरंभ किया। उसके पश्चात् लखनऊ में [[सफ़दरजंग]], [[शुजाउद्दौला]], [[गाजीउद्दीन हैदर]], [[नसीरुद्दीन हैदर]], मुहम्मद अली शाह और अंत में लोकप्रिय नवाब [[वाजिद अली शाह]] ने क्रमशः शासन किया।
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==आसफ़ुद्दौला का योगदान==
 
==आसफ़ुद्दौला का योगदान==
[[आसफ़ुद्दौला|नवाब आसफ़ुद्दौला]] (1795-1797 ई.) के समय में राजधानी फैसलाबाद से लखनऊ लाई गई। आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में [[बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ|बड़ा इमामबाड़ा]], विशाल [[रूमी दरवाज़ा लखनऊ|रूमी दरवाज़ा]] और आसफ़ी मसजिद नामक इमारतें बनवाईं। इनमें से अधिकांश इमारतें [[अकाल]] पीड़ितों को मजदूरी देने के लिए बनवाई गई थीं। आसफ़ुद्दौला को लखनऊ निवासी "जिसे न दे मौला, उसे दे आसफ़ुद्दौला" कहकर याद करते हैं। आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य कई प्रसिद्ध भवन, बाज़ार तथा दरवाज़े बने थे, जिनमें प्रमुख हैं- 'दौलतखाना', 'रेंजीडैंसी', 'बिबियापुर कोठी', 'चैक बाज़ार' आदि।
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[[आसफ़ुद्दौला|नवाब आसफ़ुद्दौला]] (1795-1797 ई.) के समय में राजधानी फैसलाबाद से लखनऊ लाई गई। आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में [[बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ|बड़ा इमामबाड़ा]], विशाल [[रूमी दरवाज़ा लखनऊ|रूमी दरवाज़ा]] और आसफ़ी मसजिद नामक इमारतें बनवाईं। इनमें से अधिकांश इमारतें [[अकाल]] पीड़ितों को मज़दूरी देने के लिए बनवाई गई थीं। आसफ़ुद्दौला को लखनऊ निवासी "जिसे न दे मौला, उसे दे आसफ़ुद्दौला" कहकर याद करते हैं। आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य कई प्रसिद्ध भवन, बाज़ार तथा दरवाज़े बने थे, जिनमें प्रमुख हैं- 'दौलतखाना', 'रेंजीडैंसी', 'बिबियापुर कोठी', 'चैक बाज़ार' आदि।
 
====आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी====
 
====आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी====
 
*आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी सआदत अली ख़ाँ (1798-1814 ई.) के शासन काल में 'दिलकुशमहल', 'बेली गारद दरवाज़ा' और 'लाल बारादरी' का निर्माण हुआ।
 
*आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी सआदत अली ख़ाँ (1798-1814 ई.) के शासन काल में 'दिलकुशमहल', 'बेली गारद दरवाज़ा' और 'लाल बारादरी' का निर्माण हुआ।
*[[गाजीउद्दीन हैदर]] (1814-1827 ई.) ने '[[मोती महल लखनऊ|मोतीमहल]]', 'मुबारक मंजिल सआदतअली' और 'खुर्शीदज़ादी' के मक़बरे आदि बनवाए।
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*[[ग़ाज़ीउद्दीन हैदर]] (1814-1827 ई.) ने '[[मोती महल लखनऊ|मोतीमहल]]', 'मुबारक मंजिल सआदतअली' और 'खुर्शीदज़ादी' के मक़बरे आदि बनवाए।
 
*[[नसीरुद्दीन हैदर]] के जमाने में प्रसिद्ध '[[छतर मंजिल]]' और 'शाहनजफ़' आदि बने।
 
*[[नसीरुद्दीन हैदर]] के जमाने में प्रसिद्ध '[[छतर मंजिल]]' और 'शाहनजफ़' आदि बने।
 
*मुहम्मद अलीशाह (1837-1842 ई.) ने 'हुसैनाबाद का इमामबाड़ा', '[[जामा मस्जिद लखनऊ|बड़ी जामा मस्जिद]]' और 'हुसैनाबाद की बारादी' बनवायी।
 
*मुहम्मद अलीशाह (1837-1842 ई.) ने 'हुसैनाबाद का इमामबाड़ा', '[[जामा मस्जिद लखनऊ|बड़ी जामा मस्जिद]]' और 'हुसैनाबाद की बारादी' बनवायी।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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लखनऊ का इतिहास
लखनऊ द्वार
विवरण 'लखनऊ' भारत के सर्वाधिक प्राचीन नगरों में से एक है। गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ 'भारतीय इतिहास' में घटित कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।
राज्य उत्तर प्रदेश
प्राचीन नाम 'लक्ष्मणपुर' या 'लक्ष्मणवती'
स्थापना इसकी स्थापना श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने की थी, किन्तु इसके वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफ़उद्दौला ने 1775 ई. में की थी।
नवाब सआदत ख़ाँ, सफ़दर जंग, शुजाउद्दौला, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर, नसीरुद्दीन हैदर, वाजिद अली शाह
प्रसिद्ध इमारतें घंटाघर, जामा मस्जिद, बड़ा इमामबाड़ा, रूमी दरवाज़ा, रेसीडेंसी संग्रहालय, छतर मंज़िल
अन्य जानकारी मुग़ल बादशाह अकबर के समय में चौक में स्थित 'अकबरी दरवाज़े' का निर्माण हुआ था। जहाँगीर और शाहजहाँ के जमाने में भी इमारतें बनीं, किंतु लखनऊ की वास्तविक उन्नति तो नवाबी काल में हुई।

लखनऊ भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध शहरों में से एक है। देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की यह राजधानी है। किसी समय में यह 'नवाबों के शहर' के नाम से विख्यात था। आज लखनऊ को 'बाग़ों का शहर' कहा जाता है। यहाँ राजकीय संग्रहालय भी है, जिसकी स्थापना 1863 ई. में की गई थी। 500 वर्ष पुरानी मुस्लिम सन्त शाह मीना की क़ब्र भी यहीं पर है। गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ 'भारतीय इतिहास' में घटित कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।

स्थापना

स्थानीय जनश्रुति के अनुसार इस नगर का प्राचीन नाम 'लक्ष्मणपुर' या 'लक्ष्मणवती' था और इसकी स्थापना श्रीरामचंद्र जी के अनुज लक्ष्मण ने की थी। श्रीराम की राजधानी अयोध्या लखनऊ के निकट ही स्थित है। नगर के पुराने भाग में एक ऊंचा ढूह है, जिसे आज भी 'लक्ष्मणटीला' कहा जाता है।

औरंगज़ेब द्वारा विध्वंश

हाल में ही लक्ष्मणटीले की खुदाई से वैदिक कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। यही टीला जिस पर अब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के समय में बनी मसजिद है, यहां का प्राचीनतम स्थल है। इस स्थान पर लक्ष्मण जी का प्राचीन मंदिर था, जिसे इस धर्मान्ध बादशाह ने काशी, मथुरा आदि के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों के समान ही तुड़वा डाला था।

मुग़ल स्थापत्य

लखनऊ का प्राचीन इतिहास अप्राप्य है। इसकी विशेष उन्नति का इतिहास मध्य काल के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ जान पड़ता है, क्योंकि हिन्दू काल में, अयोध्या की विशेष महत्ता के कारण लखनऊ प्राय: अज्ञात ही रहा। सर्वप्रथम, मुग़ल बादशाह अकबर के समय में चौक में स्थित 'अकबरी दरवाज़े' का निर्माण हुआ था। जहाँगीर और शाहजहाँ के जमाने में भी इमारतें बनीं, किंतु लखनऊ की वास्तविक उन्नति तो नवाबी काल में हुई।

नवाबों की परम्परा

मुहम्मदशाह के समय में दिल्ली का मुग़ल साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा था। 1720 ई. में अवध के सूबेदार सआदत ख़ाँ ने लखनऊ में स्वतन्त्र सल्तनत कायम कर ली और लखनऊ के शिया संप्रदाय के नवाबों की प्रख्यात परंपरा का आरंभ किया। उसके पश्चात् लखनऊ में सफ़दरजंग, शुजाउद्दौला, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर, नसीरुद्दीन हैदर, मुहम्मद अली शाह और अंत में लोकप्रिय नवाब वाजिद अली शाह ने क्रमशः शासन किया।

आसफ़ुद्दौला का योगदान

नवाब आसफ़ुद्दौला (1795-1797 ई.) के समय में राजधानी फैसलाबाद से लखनऊ लाई गई। आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा, विशाल रूमी दरवाज़ा और आसफ़ी मसजिद नामक इमारतें बनवाईं। इनमें से अधिकांश इमारतें अकाल पीड़ितों को मज़दूरी देने के लिए बनवाई गई थीं। आसफ़ुद्दौला को लखनऊ निवासी "जिसे न दे मौला, उसे दे आसफ़ुद्दौला" कहकर याद करते हैं। आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य कई प्रसिद्ध भवन, बाज़ार तथा दरवाज़े बने थे, जिनमें प्रमुख हैं- 'दौलतखाना', 'रेंजीडैंसी', 'बिबियापुर कोठी', 'चैक बाज़ार' आदि।

आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी

  • आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी सआदत अली ख़ाँ (1798-1814 ई.) के शासन काल में 'दिलकुशमहल', 'बेली गारद दरवाज़ा' और 'लाल बारादरी' का निर्माण हुआ।
  • ग़ाज़ीउद्दीन हैदर (1814-1827 ई.) ने 'मोतीमहल', 'मुबारक मंजिल सआदतअली' और 'खुर्शीदज़ादी' के मक़बरे आदि बनवाए।
  • नसीरुद्दीन हैदर के जमाने में प्रसिद्ध 'छतर मंजिल' और 'शाहनजफ़' आदि बने।
  • मुहम्मद अलीशाह (1837-1842 ई.) ने 'हुसैनाबाद का इमामबाड़ा', 'बड़ी जामा मस्जिद' और 'हुसैनाबाद की बारादी' बनवायी।
  • वाजिद अली शाह (1822-1887 ई.) ने लखनऊ के विशाल एवं भव्य 'कैसर बाग़' का निर्माण करवाया। यह कलाप्रिय एवं विलासी नवाब यहाँ कई-कई दिन चलने वाले अपने संगीत, नाटकों का, जिनमें 'इंद्रसभा नाटक' प्रमुख था, अभिनय करवाया करता था।

अंग्रेज़ों का अधिकार

1856 ई. में अंग्रेज़ों ने वाजिद अली शाह को गद्दी से उतार कर अवध की रियासत की समाप्ति कर दी और उसे ब्रिटिश भारत में सम्मिलित कर लिया। 1857 ई. के भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में लखनऊ की जनता ने रेजीडेंसी तथा अन्य इमारतों पर अधिकार कर लिया था, किन्तु शीघ्र ही पुनः राज्य सत्ता अंग्रेज़ों के हाथ में चली गई और स्वतन्त्रता युद्ध के सैनिकों को कठोर दंड दिया गया।

यूनाइटेड प्रोविन्स या 'यूपी'

सन 1902 में 'नार्थ वेस्ट प्रोविन्स' का नाम बदल कर 'यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ़ आगरा एण्ड अवध' कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे 'यूनाइटेड प्रोविन्स' या 'यूपी' कहा गया। सन 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। 'अखिल भारतीय किसान सभा' का आयोजन 1934 ई. में लखनऊ में ही किया गया था। स्वतन्त्रता के बाद 12 जनवरी सन् 1950 में इसका नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस प्रकार यह अपने पूर्व लघुनाम 'यूपी' से जुड़ा रहा।

उच्च न्यायालय

प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक न्यायपीठ स्थापित की गयी।

गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने। अक्टूबर, 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनीं। लखनऊ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी दो बार, 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996 तक और फिर 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।


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