"प्रकृति के प्रति -दिनेश सिंह" के अवतरणों में अंतर
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<poem>प्रकृति अविरल तेरा ये बिम्ब | <poem>प्रकृति अविरल तेरा ये बिम्ब | ||
चूमते अंबर को गिरी श्रंग | चूमते अंबर को गिरी श्रंग | ||
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नाप कर मौन तिमिर उँचास | नाप कर मौन तिमिर उँचास | ||
कर रहा है तम का परिहास</poem> | कर रहा है तम का परिहास</poem> | ||
− | + | ==भाग-2== | |
+ | <poem> | ||
+ | शरद हँसनी लौट रही है | ||
+ | पंख समेटे अपने लोक | ||
+ | ग्रीष्म इंदिरा,प्रखर ऊषा से | ||
+ | लगा धधकने भू का लोक | ||
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+ | लगी पिघलने गिरी खण्डों से | ||
+ | महास्वेत शोभन हिम खण्ड | ||
+ | अचल श्रंग से क्रीड़ा करता | ||
+ | प्रणय गान गाता आखण्ड | ||
+ | |||
+ | चला मिलन को प्रेमाकुल | ||
+ | सरिता से सुख लिए अपार | ||
+ | पुलकित निर्मल जल धारा | ||
+ | अलि प्राणो में भरे नव संचार | ||
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+ | चली,सरि प्राणो में भरे मोद | ||
+ | सागर से मिलन करे शृंगार | ||
+ | दो प्राण एक हो बने युगल | ||
+ | कौतूहल उर उदधि अपार | ||
− | + | मौन प्रकृति विभूति मनोहर | |
− | + | जड़ चेतन जिसके समुदाय | |
− | + | गृह,नक्षत्र और सिंधु, जलद | |
+ | सुखी चेतना जिसका अप्राय | ||
− | + | खड़ा सिंधु तट अलोक निरखता | |
− | + | सागर की लहरें व्यकुलाती | |
− | + | लहरों के उर असीम प्रेम | |
− | + | हर दो पल में मिलने आती | |
− | + | सागर के उर की व्याकुलता | |
+ | कवि साछात है देख रहा | ||
+ | विस्थापित होकर तटनी से | ||
+ | सागर का धीरज छूट रहा | ||
− | + | सागर तट का मृदु चुम्बन कर | |
+ | प्रातःकाल निकल जाता | ||
+ | दिनकर की अंतिम विभा पूर्व | ||
+ | होकर अधीर चला आता | ||
+ | रजनी के धवल चाँदनी में | ||
+ | जब सोता है जग का प्रदीप्त | ||
+ | तटनी को भरकर बाँहो में | ||
+ | सागर गाता है प्रणय गीत | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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11:44, 5 मई 2015 का अवतरण
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भाग-1प्रकृति अविरल तेरा ये बिम्ब भाग-2शरद हँसनी लौट रही है |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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