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केश, दाढ़ी-मूंछ और नखों को कतर कर देह को सजाना '''क्षौरकर्म''' के अंतर्गत आता है। व्रत के लिए इसका विधान है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश |लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=253|url=|ISBN=}}</ref><br />
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केश, दाढ़ी-मूंछ और नखों को कतर कर देह को सजाना '''क्षौरकर्म''' के अंतर्गत आता है। [[व्रत]] के लिए इसका विधान है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश |लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=253|url=|ISBN=}}</ref><br />
 
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*[[ब्रह्मवैवर्त पुराण]] के अनुसार व्रत, उपासना, [[श्राद्ध]] आदि में जो क्षौरकर्म नहीं करता, वह अपवित्र बना रहता है।
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*[[ब्रह्मवैवर्त पुराण]] के अनुसार व्रत, [[उपासना]], [[श्राद्ध]] आदि में जो क्षौरकर्म नहीं करता, वह अपवित्र बना रहता है।
*प्राचीन मान्यता के अनुसार [[रविवार]] को क्षौरकर्म दुःख और [[सोमवार]] को सुख, [[मंगलवार]] को मृत्यु और [[बुधवार]] को धन उत्पन्न करता है। [[गुरुवार]] को क्षौरकर्म से मान का हनन होता है और [[शुक्रवार]] को शुक्र का क्षय होता है। [[शनिवार]] को क्षौर से सभी दोष होते हैं।
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*प्राचीन मान्यता के अनुसार [[रविवार]] को क्षौरकर्म दुःख और [[सोमवार]] को सुख, [[मंगलवार]] को [[मृत्यु]] और [[बुधवार]] को धन उत्पन्न करता है। [[गुरुवार]] को क्षौरकर्म से मान का हनन होता है और [[शुक्रवार]] को शुक्र का क्षय होता है। [[शनिवार]] को क्षौर से सभी दोष होते हैं।
*भोजन के उपरांत क्षौर का निषेध है, पर व्रत और तीर्थ में यह निषेध नहीं माना जाता।  
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*भोजन के उपरांत क्षौर का निषेध है, पर व्रत और [[तीर्थ]] में यह निषेध नहीं माना जाता।  
  
 
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केश, दाढ़ी-मूंछ और नखों को कतर कर देह को सजाना क्षौरकर्म के अंतर्गत आता है। व्रत के लिए इसका विधान है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 253 |

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