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विनोद दुआ का जन्म 11 मार्च सन 1954 को [[नई दिल्ली]] में हुआ था। उनका बचपन [[दिल्ली]] के शरणार्थी शिविरों में बीता। उनका [[परिवार]] [[1947]] में [[भारत]] की आजादी के बाद डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो गया था। उन्होंने हंसराज कॉलेज से [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में स्‍नातक की उपाधि प्राप्त की और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से [[साहित्य]] में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद इलेक्‍ट्रॉनिक पत्रकारिता में अपना कॅरियर शुरू किया।
 
विनोद दुआ का जन्म 11 मार्च सन 1954 को [[नई दिल्ली]] में हुआ था। उनका बचपन [[दिल्ली]] के शरणार्थी शिविरों में बीता। उनका [[परिवार]] [[1947]] में [[भारत]] की आजादी के बाद डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो गया था। उन्होंने हंसराज कॉलेज से [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में स्‍नातक की उपाधि प्राप्त की और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से [[साहित्य]] में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद इलेक्‍ट्रॉनिक पत्रकारिता में अपना कॅरियर शुरू किया।
  
विनोद दुआ ने एनडीटीवी पर 'ख़बरदार इंडिया' कार्यक्रम किया। 'विनोद दुआ लाइव' जैसे अहम कार्यक्रम भी किया। एनडीटीवी पर 'ज़ायका इंडिया का' चर्चित कार्यक्रम रहा। उन्होंने [[दूरदर्शन]] पर 'जनवाणी' से पहचान बनाई। दूरदर्शन पर चुनाव विश्लेषण के लिए भी वह जाने गए। विनोद दुआ की दो बेटियां मल्लिका दुआ और बकुल दुआ हैं। मल्लिका एक हास्य अभिनेत्री जबकि बाकुल साइकोलॉजिस्ट हैं। एनटीडीवी से विनोद दुआ का पुराना वास्ता रहा है। उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले एनडीटीवी के डॉ. प्रणय रॉय हमेशा कहते रहे हैं- "विनोद न केवल महानतम पत्रकारों में से एक थे, बल्कि वह अपने युग के पत्रकारों में सर्वश्रेष्ठ थे"।<ref name="pp">{{cite web |url=https://ndtv.in/india-news/vinod-dua-no-more-veteran-journalist-died-after-prolonged-illness-2637163 |title=जाने माने पत्रकार विनोद दुआ का लंबी बीमारी के बाद निधन|accessmonthday=05 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=/ndtv.in |language=हिंदी}}</ref>
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विनोद दुआ ने एनडीटीवी पर 'ख़बरदार इंडिया' कार्यक्रम किया। 'विनोद दुआ लाइव' जैसे अहम कार्यक्रम भी किया। एनडीटीवी पर 'ज़ायका इंडिया का' चर्चित कार्यक्रम रहा। उन्होंने [[दूरदर्शन]] पर 'जनवाणी' से पहचान बनाई। दूरदर्शन पर चुनाव विश्लेषण के लिए भी वह जाने गए। विनोद दुआ की दो बेटियां मल्लिका दुआ और बकुल दुआ हैं। मल्लिका एक हास्य अभिनेत्री जबकि बाकुल साइकोलॉजिस्ट हैं। एनटीडीवी से विनोद दुआ का पुराना वास्ता रहा है। उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले एनडीटीवी के डॉ. प्रणय रॉय हमेशा कहते रहे हैं- "विनोद न केवल महानतम पत्रकारों में से एक थे, बल्कि वह अपने युग के पत्रकारों में सर्वश्रेष्ठ थे"।<ref name="RR">{{cite web |url=https://ndtv.in/india-news/vinod-dua-no-more-veteran-journalist-died-after-prolonged-illness-2637163 |title=जाने माने पत्रकार विनोद दुआ का लंबी बीमारी के बाद निधन|accessmonthday=05 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=/ndtv.in |language=हिंदी}}</ref>
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==आलोचना करने का साहस==
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सरकार नियंत्रित दूरदर्शन में कोई ऐंकर किसी शक्तिशाली मंत्री को ये कहे कि उनके कामकाज के आधार पर वे दस में से केवल तीन अंक देते हैं तो ये उसके लिए बहुत ही शर्मनाक बात थी। मगर विनोद दुआ में ऐसा करने का साहस था और वे इसे बारंबार कर रहे थे। इसीलिए मंत्रियों ने [[प्रधानमंत्री]] से इसकी शिकायत करके कार्यक्रम को बंद करने के लिए दबाव भी बनाया था, मगर वे कामयाब नहीं हुए। विनोद दुआ ने अपना ये अंदाज़ कभी नहीं छोड़ा। आज के दौर में जब अधिकांश पत्रकार और ऐंकर सत्ता की चाटुकारिता करने में गौरवान्वित होते नज़र आते हैं, विनोद दुआ नाम का ये शख्स सत्ता से टकराने में भी कभी नहीं घबराया।
  
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उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि सत्ता उनके साथ क्या करेगी। सत्तारूढ़ दल ने उनको राजद्रोह के मामले में फँसाने की कोशिश की, मगर उन्होंने ल़ड़ाई लड़ी और [[उच्चतम न्यायालय]] से जीत भी हासिल की। उनका मुकदमा मीडिया के लिए भी एक राहत साबित हुआ। [[हिंदी]] और [[अंग्रेज़ी]] दोनों भाषाओं पर दुआ साहब की पकड़ अद्भुत थी। प्रणय रॉय के साथ चुनाव कार्यक्रमों में उनकी ये प्रतिभा पूरे देश ने देखी और उसे सराहा। त्वरित अनुवाद की क्षमता ने उनकी ऐंकरिंग को एक पायदान और ऊपर पहुँचा दिया था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.bbc.com/hindi/india-59531989.amp |title=आने वाली नस्लें याद रखेंगी, एक ऐंकर ऐसा भी था|accessmonthday=04 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी}}</ref>
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==ऐंकरिंग के महारथी==
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अपवाद को छोड़ दें तो वे [[हिंदी]] के कार्यक्रम करते रहे और अपनी पहचान को हिंदी के ऐंकर के रूप में कायम रखा। उनमें इस बात को लेकर कमतरी का एहसास बिल्कुल भी नहीं था कि वे हिंदी में काम कर रहे हैं। इस तरह उन्हें हिंदी को लोकप्रियता और प्रतिष्ठा दिलाने वाले शख्स को तौर पर भी याद रखा जाएगा। हालाँकि वे ख़ुद को ब्रॉडकास्टर यानी प्रसारक बताते थे और कहते थे कि पत्रकार नहीं हैं। मगर इसमें आंशिक सच्चाई ही थी। दूरदर्शन के शुरुआती दौर में ख़बरें पढ़ने वाले अधिकांश ऐंकरों का पत्रकारिता से कोई वास्ता नहीं होता था।
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विनोद दुआ टेलीप्राम्पटर (टीपी) पर लिखा ही पढ़ना जानते थे। इसके उलट विनोद दुआ को टीपी की ज़रूरत ही नहीं होती थी। वे मिनटों में अपने दिमाग़ में तय कर लेते थे कि क्या बोलना है कैसे बोलना है। इसीलिए वे लाइव प्रसारण के उस्ताद थे। ये सही है कि वे घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए शुरुआती दौर के अलावा (न्यूज़ लाइन) कभी फील्ड में नहीं उतरे (खाने-पीने के कार्यक्रम ज़ायका इंडिया को छोड़कर) और न ही पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट या लेख आदि लिखते थे, मगर वे देश-दुनिया की हलचलों के प्रति बहुत सजग रहते थे। ये उनकी पत्रकारीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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==गाने, खाने, पढ़ने के शौकीन==
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विनोद दुआ लगातार पढ़ते रहने वाले संप्रेषक थे। [[हिंदी]]-[[उर्दू]] के [[साहित्य]] उन्होंने काफी पढ़ रखा था, मगर नए के प्रति उनकी जिज्ञासा बनी रहती थी। साहित्य इतर विषयों पर भी उनका अध्ययन चलता रहता था। क़िताबें उनकी अभिन्न मित्र थीं। दुआ साहब ज़िंदादिल जोश-ओ-खरोश से भरे आदमी थे। ओढ़ी हुई गंभीरता को वे अपने पास फटकने भी नहीं देते थे। वे हँसने और किसी स्थिति पर व्यंग्य करने को तैयार बैठे रहते थे। किसी के कहे या किए में नए मायने ढूँढ़ना उनकी सहज वृत्ति थी। इसीलिए उनकी महफिल में उदासी के लिए कोई जगह नहीं होती थी।<ref name="pp"/>
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उनके पास ढेर सारे प्रसंग और लतीफ़े होते थे और चुटकियाँ लेने में उन जैसा उस्ताद मैंने कोई दूसरा नहीं देखा। उनकी कॉमेडियन बेटी मल्लिका में ये गुण उन्हीं से आया होगा। उनके जैसी हाज़िरजवाबी भी दुर्लभ थी। [[संगीत]] उनकी पहली पसंद था, ख़ास तौर पर सूफ़ी संगीत। अकसर बाबा बुले शाह और बाबा फ़रीद का ज़िक्र करते। उनकी कार में इसी तरह का संगीत बजता था। अकसर उनके घर पर शाम को महफिलें होती थीं और उनमें गाना-बजाना भी। वे ख़ुद भी गाते थे और उनकी पत्नी डॉ. चिन्ना (पद्मावती) भी।
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==मृत्यु==
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विनोद दुआ का निधन [[4 दिसम्बर]], [[2021]] को [[नई दिल्ली]] में हुआ। कोरोना की दूसरी लहर में विनोद दुआ और उनकी पत्नी संक्रमित हो गए थे। दोनों की तबीयत काफी बिगड़ गई थी। इसके बाद दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विनोद दुआ [[7 जून]], 2021 को घर लौट आए थे हालांकि, उनकी पत्नी का [[12 जून]] को निधन हो गया था।
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==एक युग का अंत==
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जाने-माने टीवी ऐंकर विनोद दुआ का जाना टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत है। यहाँ 'एक युग का अंत' घिसा-पिटा मुहावरा या अतिश्योक्ति नहीं है, वह सच्चाई है। ख़ास तौर पर [[हिंदी]] टीवी पत्रकारिता के लिए। उन्हीं की वज़ह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार जगमगाई थी। उस समय जब टीवी की दुनिया दूरदर्शन तक सिमटी थी और टीवी पत्रकारिता नाम के लिए भी नहीं थी, विनोद दुआ [[धूमकेतु]] की तरह उभरे थे। इसके बाद वे लगभग साढ़े तीन दशकों तक किसी लाइट टॉवर की तरह मीडिया जगत के बीच जगमगाते रहे।<ref name="pp"/>
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[[दूरदर्शन]] पर उनकी शुरुआत ग़ैर समाचार कार्यक्रमों की ऐंकरिंग से हुई थी, मगर बाद में वे समाचार आधारित कार्यक्रमों की दुनिया में दाखिल हुए और छा गए। चुनाव परिणामों के जीवंत विश्लेषण ने उनकी शोहरत को आसमान तक पहुँचा दिया था। प्रणय रॉय के साथ उनकी जोड़ी ने पूरे [[भारत]] को सम्मोहित कर लिया था। दरअसल, विनोद दुआ का अपना विशिष्ट अंदाज़ था। इसमें उनका बेलागपन और दुस्साहस शामिल था। जनवाणी कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस तरह से सवाल पूछते या टिप्पणियाँ करते थे, उसकी कल्पना करना उस ज़माने में एक असंभव सी बात थी।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

05:45, 5 दिसम्बर 2021 का अवतरण

विनोद दुआ (अंग्रेज़ी: Vinod Dua, जन्म- 11 मार्च, 1954; मृत्यु- 4 दिसम्बर, 2021) प्रसिद्ध भारतीय समाचार वक्ता, हिंदी टेलीविजन पत्रकार एवं कार्यक्रम निर्देशक थे। वे दूरदर्शन और नई दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड के समाचार चैनल (एन.डी.टी.वी इंडिया) के प्रमुख प्रस्तुतकर्ता तथा वाचक थे। हजारों घंटों प्रसारण का अनुभव रखने वाले विनोद दुआ एक एंकर, राजनीतिक टिप्पणीकार, चुनाव विश्लेषक, निर्माता और निर्देशक थे। उन्हें 2008 में भारत सरकार द्वारा पत्रकारिता के लिए 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

विनोद दुआ का जन्म 11 मार्च सन 1954 को नई दिल्ली में हुआ था। उनका बचपन दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में बीता। उनका परिवार 1947 में भारत की आजादी के बाद डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो गया था। उन्होंने हंसराज कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में स्‍नातक की उपाधि प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय से साहित्य में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद इलेक्‍ट्रॉनिक पत्रकारिता में अपना कॅरियर शुरू किया।

विनोद दुआ ने एनडीटीवी पर 'ख़बरदार इंडिया' कार्यक्रम किया। 'विनोद दुआ लाइव' जैसे अहम कार्यक्रम भी किया। एनडीटीवी पर 'ज़ायका इंडिया का' चर्चित कार्यक्रम रहा। उन्होंने दूरदर्शन पर 'जनवाणी' से पहचान बनाई। दूरदर्शन पर चुनाव विश्लेषण के लिए भी वह जाने गए। विनोद दुआ की दो बेटियां मल्लिका दुआ और बकुल दुआ हैं। मल्लिका एक हास्य अभिनेत्री जबकि बाकुल साइकोलॉजिस्ट हैं। एनटीडीवी से विनोद दुआ का पुराना वास्ता रहा है। उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले एनडीटीवी के डॉ. प्रणय रॉय हमेशा कहते रहे हैं- "विनोद न केवल महानतम पत्रकारों में से एक थे, बल्कि वह अपने युग के पत्रकारों में सर्वश्रेष्ठ थे"।[1]

आलोचना करने का साहस

सरकार नियंत्रित दूरदर्शन में कोई ऐंकर किसी शक्तिशाली मंत्री को ये कहे कि उनके कामकाज के आधार पर वे दस में से केवल तीन अंक देते हैं तो ये उसके लिए बहुत ही शर्मनाक बात थी। मगर विनोद दुआ में ऐसा करने का साहस था और वे इसे बारंबार कर रहे थे। इसीलिए मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से इसकी शिकायत करके कार्यक्रम को बंद करने के लिए दबाव भी बनाया था, मगर वे कामयाब नहीं हुए। विनोद दुआ ने अपना ये अंदाज़ कभी नहीं छोड़ा। आज के दौर में जब अधिकांश पत्रकार और ऐंकर सत्ता की चाटुकारिता करने में गौरवान्वित होते नज़र आते हैं, विनोद दुआ नाम का ये शख्स सत्ता से टकराने में भी कभी नहीं घबराया।

उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि सत्ता उनके साथ क्या करेगी। सत्तारूढ़ दल ने उनको राजद्रोह के मामले में फँसाने की कोशिश की, मगर उन्होंने ल़ड़ाई लड़ी और उच्चतम न्यायालय से जीत भी हासिल की। उनका मुकदमा मीडिया के लिए भी एक राहत साबित हुआ। हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर दुआ साहब की पकड़ अद्भुत थी। प्रणय रॉय के साथ चुनाव कार्यक्रमों में उनकी ये प्रतिभा पूरे देश ने देखी और उसे सराहा। त्वरित अनुवाद की क्षमता ने उनकी ऐंकरिंग को एक पायदान और ऊपर पहुँचा दिया था।[2]

ऐंकरिंग के महारथी

अपवाद को छोड़ दें तो वे हिंदी के कार्यक्रम करते रहे और अपनी पहचान को हिंदी के ऐंकर के रूप में कायम रखा। उनमें इस बात को लेकर कमतरी का एहसास बिल्कुल भी नहीं था कि वे हिंदी में काम कर रहे हैं। इस तरह उन्हें हिंदी को लोकप्रियता और प्रतिष्ठा दिलाने वाले शख्स को तौर पर भी याद रखा जाएगा। हालाँकि वे ख़ुद को ब्रॉडकास्टर यानी प्रसारक बताते थे और कहते थे कि पत्रकार नहीं हैं। मगर इसमें आंशिक सच्चाई ही थी। दूरदर्शन के शुरुआती दौर में ख़बरें पढ़ने वाले अधिकांश ऐंकरों का पत्रकारिता से कोई वास्ता नहीं होता था।

विनोद दुआ टेलीप्राम्पटर (टीपी) पर लिखा ही पढ़ना जानते थे। इसके उलट विनोद दुआ को टीपी की ज़रूरत ही नहीं होती थी। वे मिनटों में अपने दिमाग़ में तय कर लेते थे कि क्या बोलना है कैसे बोलना है। इसीलिए वे लाइव प्रसारण के उस्ताद थे। ये सही है कि वे घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए शुरुआती दौर के अलावा (न्यूज़ लाइन) कभी फील्ड में नहीं उतरे (खाने-पीने के कार्यक्रम ज़ायका इंडिया को छोड़कर) और न ही पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट या लेख आदि लिखते थे, मगर वे देश-दुनिया की हलचलों के प्रति बहुत सजग रहते थे। ये उनकी पत्रकारीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

गाने, खाने, पढ़ने के शौकीन

विनोद दुआ लगातार पढ़ते रहने वाले संप्रेषक थे। हिंदी-उर्दू के साहित्य उन्होंने काफी पढ़ रखा था, मगर नए के प्रति उनकी जिज्ञासा बनी रहती थी। साहित्य इतर विषयों पर भी उनका अध्ययन चलता रहता था। क़िताबें उनकी अभिन्न मित्र थीं। दुआ साहब ज़िंदादिल जोश-ओ-खरोश से भरे आदमी थे। ओढ़ी हुई गंभीरता को वे अपने पास फटकने भी नहीं देते थे। वे हँसने और किसी स्थिति पर व्यंग्य करने को तैयार बैठे रहते थे। किसी के कहे या किए में नए मायने ढूँढ़ना उनकी सहज वृत्ति थी। इसीलिए उनकी महफिल में उदासी के लिए कोई जगह नहीं होती थी।[2]

उनके पास ढेर सारे प्रसंग और लतीफ़े होते थे और चुटकियाँ लेने में उन जैसा उस्ताद मैंने कोई दूसरा नहीं देखा। उनकी कॉमेडियन बेटी मल्लिका में ये गुण उन्हीं से आया होगा। उनके जैसी हाज़िरजवाबी भी दुर्लभ थी। संगीत उनकी पहली पसंद था, ख़ास तौर पर सूफ़ी संगीत। अकसर बाबा बुले शाह और बाबा फ़रीद का ज़िक्र करते। उनकी कार में इसी तरह का संगीत बजता था। अकसर उनके घर पर शाम को महफिलें होती थीं और उनमें गाना-बजाना भी। वे ख़ुद भी गाते थे और उनकी पत्नी डॉ. चिन्ना (पद्मावती) भी।

मृत्यु

विनोद दुआ का निधन 4 दिसम्बर, 2021 को नई दिल्ली में हुआ। कोरोना की दूसरी लहर में विनोद दुआ और उनकी पत्नी संक्रमित हो गए थे। दोनों की तबीयत काफी बिगड़ गई थी। इसके बाद दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विनोद दुआ 7 जून, 2021 को घर लौट आए थे हालांकि, उनकी पत्नी का 12 जून को निधन हो गया था।

एक युग का अंत

जाने-माने टीवी ऐंकर विनोद दुआ का जाना टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत है। यहाँ 'एक युग का अंत' घिसा-पिटा मुहावरा या अतिश्योक्ति नहीं है, वह सच्चाई है। ख़ास तौर पर हिंदी टीवी पत्रकारिता के लिए। उन्हीं की वज़ह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार जगमगाई थी। उस समय जब टीवी की दुनिया दूरदर्शन तक सिमटी थी और टीवी पत्रकारिता नाम के लिए भी नहीं थी, विनोद दुआ धूमकेतु की तरह उभरे थे। इसके बाद वे लगभग साढ़े तीन दशकों तक किसी लाइट टॉवर की तरह मीडिया जगत के बीच जगमगाते रहे।[2]

दूरदर्शन पर उनकी शुरुआत ग़ैर समाचार कार्यक्रमों की ऐंकरिंग से हुई थी, मगर बाद में वे समाचार आधारित कार्यक्रमों की दुनिया में दाखिल हुए और छा गए। चुनाव परिणामों के जीवंत विश्लेषण ने उनकी शोहरत को आसमान तक पहुँचा दिया था। प्रणय रॉय के साथ उनकी जोड़ी ने पूरे भारत को सम्मोहित कर लिया था। दरअसल, विनोद दुआ का अपना विशिष्ट अंदाज़ था। इसमें उनका बेलागपन और दुस्साहस शामिल था। जनवाणी कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस तरह से सवाल पूछते या टिप्पणियाँ करते थे, उसकी कल्पना करना उस ज़माने में एक असंभव सी बात थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जाने माने पत्रकार विनोद दुआ का लंबी बीमारी के बाद निधन (हिंदी) /ndtv.in। अभिगमन तिथि: 05 दिसम्बर, 2021।
  2. 2.0 2.1 2.2 आने वाली नस्लें याद रखेंगी, एक ऐंकर ऐसा भी था (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 04 दिसम्बर, 2021।

बाहरी कड़ियाँ

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