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ऐ री सखी मोरे पिया घर आए
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ऐ री सखी मोरे पिया घर आए,
भाग लगे इस आँगन को
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भाग लगे इस आँगन को।
 
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
 
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
 
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
 
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
 
देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
 
देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
 
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
 
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहि, आग लगे उस सावन को।
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जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ
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अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।
 
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।  
 
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।  
 
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05:14, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए -अमीर ख़ुसरो
अमीर ख़ुसरो
कवि अमीर ख़ुसरो
जन्म 1253 ई.
जन्म स्थान एटा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1325 ई.
मुख्य रचनाएँ मसनवी किरानुससादैन, मल्लोल अनवर, शिरीन ख़ुसरो, मजनू लैला, आईने-ए-सिकन्दरी, हश्त विहिश
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए,
भाग लगे इस आँगन को।
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।












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