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*इसमें [[झांसी]] की [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] तथा टेहरी [[ओरछा]] वाली रानी लिड़ई सरकार के दीवान नत्थे ख़ाँ के साथ हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है।  
 
*इसमें [[झांसी]] की [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] तथा टेहरी [[ओरछा]] वाली रानी लिड़ई सरकार के दीवान नत्थे ख़ाँ के साथ हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है।  
 
*झांसी की रानी तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए [[झांसी]], [[कालपी]], कौंच तथा [[ग्वालियर]] के युद्धों का भी वर्णन संक्षिप्त रुप में इसमें पाया जाता है।  
 
*झांसी की रानी तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए [[झांसी]], [[कालपी]], कौंच तथा [[ग्वालियर]] के युद्धों का भी वर्णन संक्षिप्त रुप में इसमें पाया जाता है।  
*इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात सन् 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात् की रचना है।  
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*इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात् सन् 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात् की रचना है।  
 
*इसे श्री 'हरिमोहन लाल श्रीवास्तव' दतिया ने 'वीरांगना लक्ष्मीबाई रासो' और कहानी नाम से सम्पादित कर सहयोगी प्रकाशन मन्दिर लि., दतिया से प्रकाशित कराया है।<ref>{{cite web |url=http://knowhindi.blogspot.com/2011/02/blog-post_4165.html |title=रासो काव्य : वीरगाथायें|accessmonthday=15 मई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
*इसे श्री 'हरिमोहन लाल श्रीवास्तव' दतिया ने 'वीरांगना लक्ष्मीबाई रासो' और कहानी नाम से सम्पादित कर सहयोगी प्रकाशन मन्दिर लि., दतिया से प्रकाशित कराया है।<ref>{{cite web |url=http://knowhindi.blogspot.com/2011/02/blog-post_4165.html |title=रासो काव्य : वीरगाथायें|accessmonthday=15 मई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  

07:52, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

  • झाँसी की रायसी नामक इस रासो काव्य के रचनाकार प्रधान कल्याणसिंह कुड़रा है।
  • इसकी छन्द संख्या लगभग 200 है।
  • उपलब्ध पुस्तक में छन्द गणना के लिए छन्दों पर क्रमांक नहीं डाले गये हैं।
  • इसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा टेहरी ओरछा वाली रानी लिड़ई सरकार के दीवान नत्थे ख़ाँ के साथ हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है।
  • झांसी की रानी तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए झांसी, कालपी, कौंच तथा ग्वालियर के युद्धों का भी वर्णन संक्षिप्त रुप में इसमें पाया जाता है।
  • इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात् सन् 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात् की रचना है।
  • इसे श्री 'हरिमोहन लाल श्रीवास्तव' दतिया ने 'वीरांगना लक्ष्मीबाई रासो' और कहानी नाम से सम्पादित कर सहयोगी प्रकाशन मन्दिर लि., दतिया से प्रकाशित कराया है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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