कुशग्रहणी अमावस्या

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कुशग्रहणी अमावस्या भाद्रपद मास की अमावस्या को कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इसे 'कुशोत्पाटिनी अमावस्या' भी कहा गया है। इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों तथा श्राद्ध आदि कार्यों के लिए 'कुश' [1] एकत्रित किया जाता है। हिन्दुओं के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है-

पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।[2]

  • प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय करना चाहिए। शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है। इनमें से जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए-

कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

  • जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वह देव तथा पितर दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।
  • कुश निकालने के लिए इस भाद्रपद अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर निम्न मंत्र पढ़ें और हुँ फट् कहकह दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ना चाहिए-

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है।
  2. शब्दकल्पद्रुम

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