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==परिचय==
 
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====सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय====
 
====सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय====
दानमल माथुर को राजस्थान के एक प्रसिद्ध और अत्यधिक सम्मानित प्रकाशक के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने एक शिक्षाविद् के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके [[पिता]] मुंशी कमल माथुर, पहले मेयो कॉलेज में कोटा हाउस के हाउस मास्टर थे। वह भी एक सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। दानमल माथुर ने भी अपने पिता के ऐसे ही गुणों को आत्मसात किया।
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दानमल माथुर को राजस्थान के एक प्रसिद्ध और अत्यधिक सम्मानित प्रकाशक के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने एक शिक्षाविद् के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके [[पिता]] मुंशी कमल माथुर पहले मेयो कॉलेज में कोटा हाउस के हाउस मास्टर थे। वह भी एक सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। दानमल माथुर ने भी अपने पिता के ऐसे ही गुणों को आत्मसात किया।
 
==कॅरियर==
 
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गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर से स्नातक की डिग्री के साथ दानमल माथुर ने भौतिकी में प्रदर्शनकारी के रूप में काम किया। बाद में उन्होंने सरदार हाई स्कूल, [[भरतपुर]] में तीन साल तक अध्यापन किया। इसी बीच मेयो कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य वीएएस शॉ ने उनकी योग्यता को पहचानते हुए दानमल माथुर को विश्व विख्यात मेयो कॉलेज में [[भूगोल]] पढ़ाने के लिए नियुक्त किया। वहां वे भूगोल विभाग के प्रमुख बने। वहां से [[1969]] में हुई सेवानिवृत्ति से पहले हाउस मास्टर, फिर वाइस प्रिंसिपल तथा कार्यकारी प्रिंसिपल भी बने। दानमल [[भीलवाड़ा]] में विद्या निकेतन स्कूल और अजमेर में मयूर स्कूल के संस्थापक प्रधानाचार्य भी रहे।
 
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11:17, 6 मार्च 2024 के समय का अवतरण

दानमल माथुर
दानमल माथुर पर डाक टिकट
पूरा नाम दानमल माथुर
जन्म 14 मार्च, 1904
जन्म भूमि अजमेर, राजस्थान
अभिभावक पिता- मुंशी कमल माथुर
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शिक्षा
पुरस्कार-उपाधि भारत सरकार ने इनके सम्मान में 7 नवम्बर, 2009 को डाक टिकट जारी किया।
प्रसिद्धि शिक्षाविद्
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दानमल माथुर मदन मोहन मालवीय द्वारा राजस्थान में शुरू किए गए 'स्काउटिंग आंदोलन' के अग्रणी थे। उनकी इन सेवाओं के सम्मान में उन्हें 'सिल्वर स्टार' और बाद में 'सिल्वर एलीफेंट' जैसे भारत में स्काउटिंग के सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

दानमल माथुर (अंग्रेज़ी: Danmal Mathur, जन्म- 14 मार्च, 1904) को राजस्थान के एक प्रसिद्ध और अत्यधिक सम्मानित प्रकाशक के रूप में याद किया जाता है। वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और बेहद मेहनती थे। शिक्षा में उनके योगदान के लिए राजस्थान राज्य सरकार ने वर्ष 1970 में उन्हें 'राज्य शिक्षक पुरस्कार' से सम्मानित किया था। इसी क्रम में मेवाड़ फाउंडेशन ने उन्हें सन 1981 में 'महाराणा मेवाड़ पुरस्कार' से नवाजा। कई शैक्षणिक संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नमेंट में दानमल माथुर की नियुक्ति एक शिक्षाविद् के रूप में उनके उच्च सम्मान का प्रमाण है।

परिचय

राजस्थान के अजमेर में 14 मार्च, 1904 को पैदा हुए दानमल माथुर विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इसलिए भारत सरकार की ओर से उनके सम्मान में 7 नवम्बर, 2009 को डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट का मूल्य 500 पैसे था।[1]

सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय

दानमल माथुर को राजस्थान के एक प्रसिद्ध और अत्यधिक सम्मानित प्रकाशक के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने एक शिक्षाविद् के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके पिता मुंशी कमल माथुर पहले मेयो कॉलेज में कोटा हाउस के हाउस मास्टर थे। वह भी एक सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। दानमल माथुर ने भी अपने पिता के ऐसे ही गुणों को आत्मसात किया।

कॅरियर

गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर से स्नातक की डिग्री के साथ दानमल माथुर ने भौतिकी में प्रदर्शनकारी के रूप में काम किया। बाद में उन्होंने सरदार हाई स्कूल, भरतपुर में तीन साल तक अध्यापन किया। इसी बीच मेयो कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य वीएएस शॉ ने उनकी योग्यता को पहचानते हुए दानमल माथुर को विश्व विख्यात मेयो कॉलेज में भूगोल पढ़ाने के लिए नियुक्त किया। वहां वे भूगोल विभाग के प्रमुख बने। वहां से 1969 में हुई सेवानिवृत्ति से पहले हाउस मास्टर, फिर वाइस प्रिंसिपल तथा कार्यकारी प्रिंसिपल भी बने। दानमल भीलवाड़ा में विद्या निकेतन स्कूल और अजमेर में मयूर स्कूल के संस्थापक प्रधानाचार्य भी रहे।

सम्मान

शिक्षा में दानमल माथुर के योगदान के लिए राजस्थान राज्य सरकार ने वर्ष 1970 में उन्हें राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया। इसी क्रम में मेवाड़ फाउंडेशन ने उन्हें 1981 में महाराणा मेवाड़ पुरस्कार से नवाजा। कई शैक्षणिक संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नमेंट में दानमल माथुर की नियुक्ति एक शिक्षाविद् के रूप में उनके उच्च सम्मान का प्रमाण है।[1]

दानमल माथुर मदन मोहन मालवीय द्वारा राजस्थान में शुरू किए गए 'स्काउटिंग आंदोलन' के अग्रणी थे। उनकी इन सेवाओं के सम्मान में उन्हें 'सिल्वर स्टार' और बाद में 'सिल्वर एलीफेंट' जैसे भारत में स्काउटिंग के सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

यादें

मेयो कॉलेज के लिए शिक्षाविद् के अलावा दानमल माथुर का विशेष योगदान वहां उनके द्वारा स्थापित संग्रहालय है, जिसे अब 'द दानमल माथुर संग्रहालय' कहा जाता है। विदेशी आगंतुकों ने इस संग्रहालय को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्कूल संग्रहालयों में शामिल किया है। भारत का ओपन एयर मैप मेयो कॉलेज में उनका एक और अनूठा योगदान है।

खेलों में प्रतिभा

दानमल माथुर ने कॉलेज के दौरान खेलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। तीन प्रमुख खेलों क्रिकेट, फ़ुटबॉल और हॉकी में कप्तानी करने का दुर्लभ गौरव हासिल किया। सरकार ने उनकी इन खेल उपलब्धियों के लिए उन्हें 'कॉल्विन गोल्ड मेडल' से सम्मानित किया। वह उस राजपूताना क्रिकेट टीम के सदस्य रहे, जो 30 के दशक में भारत और ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर एमसीसी के खिलाफ खेली थी। दानमल माथुर अजमेर में विभिन्न बोर्डों, समितियों और संघों में थे।

सन 1952 में संयुक्त राज्य अमेरिका में फुल ब्राइट विद्वान के रूप में उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म पर व्याख्यात्मक व्याख्यान दिए। उनके विचारों से वहां के लोग काफी प्रभावित हुए और उन्हें प्रशंसा मिली।[1]

बच्चों में भरते थे आत्मविश्वास

शिक्षाविद् के रूप में दानमल माथुर बच्चों से बेहद प्यार करते थे। साथ ही उनके आत्मविश्वास को बढ़ाकर उनकी प्रतिभा को निखारने का प्रयास करते थे। उन्होंने उनके आत्मविश्वास को प्रेरित किया। मेयो कॉलेज, अजमेर का इतिहास, भारत में स्काउट आंदोलन और राजस्थान में शिक्षा का क्षेत्र दानमल माथुर के उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 बहुमुखी प्रतिभा के धनी दानमल माथुर (हिंदी) kayasthatimes.com। अभिगमन तिथि: 06 मार्चaccessyear=2024, {{{accessyear}}}।

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