वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
एक तनी हुई रस्सी पर चलते जाना नियति है जहाँ
रस्साकशी के खेल में
न जीत है न हार
एक नित्य प्रलय सरीखी
सोख लेती है उपस्थिति का मूल तत्व भी
अपादान उपादान सा कोई कारक नहीं
और उपस्थिति भी आभासित नहीं
जहाँ ' है ' और ' नहीं ' के मध्य
खिंची है एक अदृश्य रेखा
न उस पार जीवन
न इस पार मृत्यु
फिर भी संधि विच्छेद का होना
मानो विद्युत् का मेघों में विद्यमान होना
एक मध्याह्न कहूँ क्या फिर
या है ये भी ढाई अक्षर का तिलिस्म भर ?
जीवन या मृत्यु या दोनों ही
या फिर दोनों ही नहीं
क्या है नींद ?