- अनंत व्रत अनंत देवता का व्रत है यह पुत्रदायक व्रत है। यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को करना चाहिए।
अतंतव्रतमेतद्धि सर्वपापहरं शुभम्।
सर्वकामप्रदं नृणां स्त्रीणाञ्चैव युधिष्ठिर॥
तथा शुक्लचतुर्दश्यां मासि भाद्रपदे भवेत्।
तस्यानुष्ठानमात्रेण सर्वपापं प्रणश्यति॥
- अनंतव्रत सब पापों का विनाश करने वाला तथा शुभकारी है। हे युधिष्ठिर! अनंतव्रत सभी पुरुषों तथा स्त्रियों को सब कामों की सिद्धि देता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को करने मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
- एक अन्य मतानुसार अनंत व्रत मार्गशीर्ष मास में तब प्रारम्भ किया जाता है, जिस दिन मृगशिरा नक्षत्र हो।
- अनंत व्रत का अनुष्ठान एक वर्ष तक का होता है।
- अनंत व्रत का पूजन प्रत्येक मास में भिन्न भिन्न नक्षत्रों के अनुसार होता है। यथा, पौष में पुष्य नक्षत्र में तथा माघ में मघा नक्षत्र में अनंत व्रत करना चाहिए इसी तरह अन्य मासों में भी अनंत व्रत करना चाहिए।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखें. हेमाद्रि व्रतखण्ड, 2,पृष्ठ 667-671; विष्णुधर्मोत्तर पुराण 173,1-30।
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