अहंकार, दर्प, अभिमान, दंभ एवं गर्व

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अहंकार, दर्प, अभिमान, दंभ एवं गर्व इन सभी शब्दों में आत्मश्लाघा का तत्व विद्यमान है, परंतु इन्हें एक नहीं समझना चाहिए। अर्थो पर ध्यान देंगे तो सब में अलग-अलग कुछ विशिष्टताएँ दिखाई देंगी।

अहंकार

ये पैदा होता है, जब व्यक्ति अपने गुणों को वास्तविकता से कुछ ज्यादा ही समझने लगता है।

दर्प

जिसमें दर्प होता है, तो इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति घमंड में ऐसा चूर है कि नियमादि की चिंता ही नही करता।

अभिमान

अभिमानी व्यक्ति सम्मान में अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा समझता है।

दंभ

अयोग्य व्यक्ति अभिमान करे तो समझिए कि वह दम्भी है।

गर्व

गर्व की बात तब आती है जबकि व्यक्ति धन, बल, कुल, विद्या, आदि पर अभिमान करे। गर्व से थोड़ा आगे बढ़े तो गौरव भी होता है। अपनी महत्ता का उचित ज्ञान हो तो गौरव का भाव पैदा होता है। 'गौरव' पूरी तरह सकारात्मक शब्द है। हमें अपनी सभ्यता, संस्कृति, समाज के उच्च मूल्यों की परम्परा को लेकर गौरव का भाव रखना ही चाहिए।


इन्हें भी देखें: समरूपी भिन्नार्थक शब्द एवं अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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