तथ्य और सत्य
'तथ्य' और 'सत्य' दोनों का अर्थ समान समझ लिया जाता है, पर ऐसा है नहीं। 'तथा' से निकला है 'तथ्य'। 'तथा' का अर्थ है 'वैसा ही'। इसका अर्थ 'और' भी होता है। 'तथ्य' को विशेषण रूप में देखें तो इसका अर्थ निकलता है- यथार्थ, वास्तविकता। संज्ञापरक अर्थ में यह है- यथार्थता, वास्तविकता। 'प्रमाण' की बात आए तो भी 'तथ्य' सामने आ जाता है। अब लीजिए 'सत्य' को। इसमें 'तथ्य' तो होता ही है, पर यह इस तक ही सीमित नहीं है। यह प्रमाण से आगे 'प्रमाणित सिद्धांत' है। विशेषण के तौर पर यह 'तथ्य' कि जैसे 'यथार्थ', वास्तविक' तो है पर संज्ञापरक रूप में 'यथार्थ तत्व' है 'सच्चाई' है। 'सत्' से असली नाता है 'सत्य' का। यानी 'सत्य' समझने के लिए 'सार' निकालना पड़ता है, या कहें 'तथ्यों का निष्कर्ष' है 'सत्य'। 'तथ्य' वास्तविक बात, वास्तविक आँकड़े आदि हैं, तो तथ्य-तथ्य से होकर ही हम सत्य का साक्षात्कार करते हैं।
इन्हें भी देखें: समरूपी भिन्नार्थक शब्द एवं अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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