अमेठी रियासत
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
अमेठी रियासत का इतिहास एक हजार वर्ष से भी पुराना है। राजा सोढ़ देव ने तुर्कों के आक्रमण के दौरान 966 ई. में इस रियासत की स्थापना की थी। तब से अब तक अमेठी रियासत ने कई झंझावातों को झेला, लेकिन उसका मान-सम्मान और गरिमा बनी रही। रियासत के हर नरेश ने इसका ख्याल रखा।
- राजा सोढ़ देव ने 966 ई. से 1007 ई. तक अमेठी रियासत पर शासन किया। तुर्कों के बाद मुग़ल शासकों ने भी इस रियासत पर हमले किए। अंग्रेज़ों ने अमेठी रियासत के विलय का भी प्रयास किया, जिसमें वे असफल रहे।[1]
- जब 1842 ई. में राजा विशेषवर बख्श सिंह की मौत हो गई, तब उनकी मौत के बाद रानी पति के मृत शरीर को गोद में लेकर सती हो गईं। मान्यता के अनुसार आज भी क्षेत्र की महिलाएं प्रत्येक गुरुवार को सती महारानी मंदिर पर दुरदुरिया का आयोजन कर सुहागिन रहने का आशीर्वाद मांगती हैं।
- राजा विशेषवर बख्श सिंह के बाद राजा लाल माधव सिंह ने 1842 ई. में गद्दी संभाली। 1891 में उनकी मृत्यु के बाद राजा भगवान बख्श सिंह अमेठी के राजा बने।
- राजा भगवान बख्श सिंह के चार पुत्र थे- जंगबहादुर सिंह, रणवीर सिंह, रणंजय सिंह और शत्रुंजय सिंह। रणवीर सिंह की कम उम्र में मौत हो गई। जंग बहादुर सिंह और शत्रुंजय सिंह के औलाद नहीं थी। राजा रणंजय सिंह भी संतानहीन थे।
- सन 1962 में राजा रणंजय सिंह ने ब्लॉक भेटुआ के अमेयमाफी निवासी गयाबख्श सिंह के पुत्र संजय सिंह को अपना दत्तक पुत्र बनाया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एक हजार वर्ष से भी पुराना रियासत का इतिहास (हिन्दी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 29 अगस्त, 2018।
संबंधित लेख