असित कुमार हाल्दार
असित कुमार हाल्दार
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पूरा नाम | असित कुमार हाल्दार |
जन्म | 10 सितम्बर, 1890 |
मृत्यु | 13 फ़रवरी, 1964 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चित्रकला |
प्रसिद्धि | चित्रकार, कवि, साहित्यकार, शिल्पकार, कला समालोचक, चिन्तक |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | अवनीन्द्रनाथ, नन्दलाल बोस |
अन्य जानकारी | असित कुमार ने ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित 30 चित्र बनाये, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रकाशित किया था। एक अच्छे कला शिक्षक के रूप में भी उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। |
असित कुमार हाल्दार (अंग्रेज़ी: Asit Kumar Haldar, जन्म- 10 सितम्बर, 1890; मृत्यु- 13 फ़रवरी, 1964) कल्पनाशील, भाव-प्रवण आधुनिक चित्रकार होने के साथ-साथ एक अच्छे साहित्यकार, शिल्पकार, कला समालोचक, चिन्तक, कवि, विचारक तथा मित्र दृष्टिकोण वाले दक्ष कला शिक्षक एवं संयोजक थे।
जन्म तथा शिक्षा
असित कुमार हाल्दार का जन्म जोड़ासांको स्थित टैगोर भवन के विचित्र कलामय वातावरण में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। अल्पावस्था में ही ग्रामीणों के पट चित्रण देखकर इनका बाल औत्यसुक्य जगा। बाद में अपने दादा राखालदास से, जो उस समय लंदन विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक थे, अपनी कलाभिरुचियों को विकसित करने में विशेष प्रेरणा एवं प्रोत्साहन मिला। 15 वर्ष की आयु में असित कुमार हाल्दार को कोलकाता के गवर्नमेन्ट स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला दिलवा दिया गया, जहाँ आपको कलागुरु अवनीन्द्रनाथ के यहाँ नन्दलाल बोस, सुरेन्द्रनाथ गांगुली तथा शारदा चरण उकील जैसे प्रतिभावान शिक्षार्थियों का साथ मिला, जिन्होंने चित्रकला को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया था। इसी समय ई.वी. हैवल और डॉ. आनन्द कुमारस्वामी जैसे कलामनीषियों के सान्निध्य में रहकर आपने कला के पुनरुत्थान की गतिविधियों पर दृष्टिपात किया और उनके नक्शे-कदम का अनुसरण कर, परवर्ती जीवन में सृजन-प्रक्रिया की मूल अन्त: प्रेरणा बन कर उजागर हुए।[1]
भित्ति चित्रों की प्रतिकृतियाँ
सन 1910 में आंग्ल महिला लेडी हरिघम के आमंत्रण पर नंदलाल बसु के साथ असित कुमार हाल्दार भी अजन्ता की प्रतिकृतियाँ तैयार करने के लिये भेजे गये। तत्पश्चात् सन 1914 में भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग द्वारा समरेन्द्रनाथ गुप्त के साथ आपको मध्य प्रदेश स्थित रामगढ़ पहाड़ी स्टेट में जोगीमारा गुफाओं की प्रतिलिपियाँ चित्रित करने का आदेश हुआ। पुन: 1917 में ग्वालियर स्टेट ने बाघ गुफाओं की जांच परख लिये असित कुमार हाल्दार को आमंत्रित किया और सन 1921 में नन्दलाल बसु और सुरेन्द्र कार के साथ बाघ गुफाओं के चित्रों को प्रतिलिपियाँ तैयार की। आज आपके द्वारा चित्रांकित अजन्ता की प्रतिलिपियाँ साउथ सिंगटन म्यूजियम, लंदन के भारतीय विभाग में, जोगीमारा की प्रतिलिपियाँ भारत सरकार के विभाग में और बाघ गुफाओं के चित्रों को प्रतिलिपियाँ, ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखी हैं।
इस प्रकार प्रारम्भ में असित कुमार हाल्दार ने भिति-चित्रकार के रूप में ख्याति अर्जित की। सम्राट जॉर्ज पंचम के आगमन पर कोलकाता में उनके स्वागत में लगाये शामियाने को नन्दलाल बसु और वैकटप्पा के साथ इन्होंने बड़े-बड़े चित्र (भित्ति चित्रण शैली एवं उसी तकनीक को लेकर निर्मित किये) लगाये थे, जिनमें अजन्ता की कला का प्रभाव द्रष्टव्य था। कृष्ण की रासलीला और गोप-गोपियों की मुग्धता, भक्ति, विहल भाव से सर्जित की गई है। अशोक पुत्र कुणाल, राम और गृह, चन्द्रमा और कमल आदि चित्रों में बड़ी कोमल व्यंजना है।
लेखन कार्य
असित कुमार हाल्दार के द्वारा लिखित पुस्तक 'इण्डियन कल्चर एट ए ग्लास' नामक पुस्तक पूर्णत: भारतीय ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। मेघदूत की रचना और उसकी ऋतु-संहार का उन्होंने बंगला में अनुवाद किया और संस्कृत में अनेक लेख लिखे।[1]
कला यात्रा
असित कुमार ने ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित 30 चित्र बनाये, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रकाशित किया था। ख्यालिसा सांग्स’ के चित्रों में कीमती उपहार, जिसमें भिखारी स्त्री, वृद्ध को अपना कपड़ा दे देती है और स्वयं शर्म से साड़ी के पीछे छुप जाती है। यह चित्र अनजाना है। इनके चित्रों की चित्रकला में एक नया मोड़ है, जिसमें हृदय की भावनाओं की रंगों में अभिव्यक्ति होती है। असित कुमार ने लकड़ी पर भी कार्य किया। इस शैली का नाम लेसिट रखा गया।
ललित कला कन्टम्परेरी में छपे 14-15 चित्र लेसिट शैली में हैं। इसके अतिरिक्त अकबर एक निर्माणकार, झरने की आत्मा, जंगल की आत्मा पूजा कलात्मक में अपनी आलेखन माला है। असित कुमार हाल्दार केवल एक चित्रकार ही नहीं, बल्कि एक कवि भी हैं। उनकी चित्रकला की शैली गीतात्मक है, क्योंकि उसमें काव्य एवं कला का समन्वय पाया जाता है। गीतांजलि, रुबाइयात ऑफ उमर खय्याम में आपने कविता के साथ-साथ रेखाचित्र भी बनाये। इस प्रकार उनको कला रमणीयता एवं गीतात्मकता का पर दृष्टिगोचर होता है।
कला शिक्षक
असित कुमार हाल्दार चित्रकार के रूप में तो विख्यात हुए ही, एक अच्छे कला शिक्षक के रूप में भी उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। कला शिक्षण में गहरी रुचि के कारण ही सन 1923 में विलायत से लौट कर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स, जयपुर तथा लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट्स में अनेक वर्षों तक अध्यापन किया। लखनऊ में प्राचार्य पद पर रहकर उक्त कला विद्यालय के विकास में भी पर्याप्त योगदान दिया। इसी प्रकार शांति निकेतन प्रवास के दौरान भी वहाँ के कला भवन के विकास में गहन रुचि दिखाई।[1]
शिल्पकार
असित कुमार हाल्दार ने चित्रण के साथ-साथ प्रस्तर, काँस्य एवं काष्ठ की प्रतिमाएँ भी निर्मित की। रवीन्द्रनाथ की विश्वख्याति से प्रभावित होकर हाल्दार ने उनकी प्रतिमा बनाई, जिसे देखकर कवि गुरु ने कहा, 'यह आपकी आत्मा का स्वतंत्र विकास है कि अपनी चेतना से आपने मिट्टी में प्राण फूंक दिये हैं। अपनी शृद्धावाला से मूर्ति में ज्वलंत प्रकाश भर दिया है। आपका स्वप्न एक ऐसी कलाकृति के रूप में मूर्तिमान हुआ है, जिसमें रूप तो मेरा है, आनन्द आपका।' वर्तमान में इलाहाबाद संग्रहालय में भी आपकी एक प्रतिमा प्रदर्शित है।
असित कुमार हाल्दार की कितनी ही उत्कृष्ट कलाकृतियाँ आज व्यक्तिगत और सार्वजनिक संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इलाहाबाद म्युनिसिपल म्यूजियम के 'हाल्दार भवन' में उनके प्रतिनिधि चित्र तो संगृहीत हैं ही, इसके अलावा बोस्टन म्यूजियम, विक्टोरिया एण्ड एलबर्ट म्यूजियम, लंदन, इण्डियन म्यूजियम, कोलकाता, श्री चित्रालयम, त्रिवेन्द्रम और रामास्वामी मुदालियर संग्रहालय में भी इनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ देखी जा सकती हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 असित कुमार हाल्दार (हिंदी) fineartist.in। अभिगमन तिथि: 09 अक्टूबर, 2021।
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