सतीश गुजराल

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सतीश गुजराल
सतीश गुजराल
सतीश गुजराल
पूरा नाम सतीश गुजराल
जन्म 25 दिसम्बर, 1925
जन्म भूमि झेलम, भारत (अब पाकिस्तान)
पति/पत्नी किरण गुजराल
संतान मोहित गुजराल (पुत्र), अल्पना गुजराल एवं रसील गुजराल (पुत्री)
विद्यालय मेयो स्कूल आफ आर्ट (लाहौर), जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट बाम्बे, पलासियो नेशनेल डि बेलास आर्ट, मेक्सिको एवं इंपीरियल सर्विस कालेज विंडसर, यू.के.
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरस्कार (दो बार चित्रकला के लिये और एक बार मूर्तिकला के लिये)
प्रसिद्धि चित्रकार, मूर्तिकार, ग्राफ़िक डिज़ायनर, लेखक और वास्तुकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सतीश गुजराल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई हैं।
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सतीश गुजराल (अंग्रेज़ी: Satish Gujral, जन्म: 25 दिसम्बर, 1925) भारत के प्रसिद्ध चित्रकार, मूर्तिकार, ग्राफ़िक डिज़ायनर, लेखक और वास्तुकार हैं। सतीश गुजराल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई हैं। बचपन में इनका स्वास्थ्य काफ़ी अच्छा था। आठ साल की उम्र में पैर फिसलने के कारण इनकी टांगे टूट गई और सिर में काफ़ी चोट आने के कारण इन्हें कम सुनाई पड़ने लगा। परिणाम स्वरूप लोग सतीश गुजराल को लंगड़ा, बहरा और गूंगा समझने लगे। सतीश चाहकर भी आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। ख़ाली समय बिताने के लिए चित्र बनाने लगे। इनकी भावना प्रधान चित्र देखते ही बनती थी। इनके अक्षर एवं रेखाचित्र दोनों ही ख़ूबसूरत थी।[1]

जीवन परिचय

25 दिसंबर 1925 में झेलम नगर विभाजन पूर्व में जन्मे चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुकार और ग्राफिक डिज़ायनर के रूप में प्रख्यात सतीश गुजराल ने अपनी आत्मकथा लिख कर लेखक के रूप में नयी पहचान बनायी। मेयो स्कूल आफ आर्ट, लाहौर में पाँच वर्षों तक उन्होंने अन्य विषयों के साथ साथ मृत्तिका शिल्प और ग्राफिक डिज़ायनिंग का विशेष अध्ययन किया। जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट बाम्बे, पलासियो नेशनेल डि बेलास आर्ट, मेक्सिको तथा इंपीरियल सर्विस कालेज विंडसर, यू.के. में कला की विधिवत शिक्षा प्राप्त करने वाले सतीश गुजराल ने अपनी रचना यात्रा में कभी भी सीमाएँ नहीं खींचीं और माध्यमों के क्षेत्र में व्यापक प्रयोग किये। रंग और कूची के साथ साथ सिरामिक, काष्ठ, धातु और पाषाण, उन्होंने हर जगह अपनी कलात्मक रचनाशीलता का परिचय दिया।[2]

कलाकृति विशेषता

सतीश गुजराल के चित्रों में आकृतियाँ प्रधान हैं। जब वे विशेष रूप से निर्मित खुरदुरी सतह पर एक्रेलिक से चित्रांकन करते हैं, तब ये आकृतियाँ एक दूसरे में विलीन होती हैं और विभिन्न ज्यामितीय आकारों में स्थित हो जाती हैं। रंगों का परस्पर सौजन्य और फिल्टर से झरते हुए विभिन्न बिम्बों का आकर्षण उनके चित्रों की मोहकता तो बढ़ाता ही है, बिना हस्ताक्षर के अपने चितेरे की पहचान भी स्पष्ट करता है। बाइबिल के एक प्रसंग पर आधारित चित्र में उनकी इस कला शैली को देखा जा सकता है। अपने वैविध्यपूर्ण रचना जीवन में उन्होंने अमूर्त चित्रण भी किये हैं और चटकीले रंगों के सुंदर संयोजन बनाए हैं। पशु और पक्षियों को उनकी कला में सहज स्थान मिला है। इतिहास, लोककथा, पुराण, प्राचीन भारतीय संस्कृति और विविध धर्मों के प्रसंगों को उन्होंने अपने चित्रों में सँजोया है। आज उनकी कलाकृतियाँ हिरशर्न कलेक्शेन वाशिंगटन डी. सी., हार्टफोर्ड म्यूज़ियम यू. एस. ए. तथा द म्यूज़ियम ऑफ़ मार्डन आर्ट न्यू यार्क जैसे अनेक विश्व विख्यात संग्रहालयों में प्रदर्शित की गयी हैं।[2]

सम्मान और पुरस्कार

सतीश गुजराल ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय अनेक पुरस्कार प्राप्त किये जिनमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त पद्म विभूषण, मेक्सिको का 'लियो नार्डो द विंसी' और बेल्जियम के राजा का 'आर्डर ऑफ़ क्राउन' पुरस्कार शामिल हैं। 1989 में इन्हें 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्किटेक्चर' तथा 'दिल्ली कला परिषद' द्वारा सम्मानित किया गया। उन्होंने अनेक होटलों, आवासीय भवनों, विश्वविद्यालयों, उद्योग स्थलों और धार्मिक इमारतों की मोहक वास्तु परियोजनाएँ तैयार की हैं। नयी दिल्ली में बेल्जियम दूतावास के भवन की परियोजना के लिये वास्तुरचना के क्षेत्र में उन्हें अंतर्राट्रीय ख्याति मिली है। इस इमारत को 'इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्ट्स' द्वारा बीसवीं सदी की 1000 सर्वश्रेष्ठ इमारतों की सूची में स्थान दिया गया है। वे तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं- दो बार चित्रकला के लिये और एक बार मूर्तिकला के लिये। दिल्लीपंजाब की राज्य सरकारों ने भी उन्हें पुरस्कृत किया है। उनके ऊपर अनेक वृत्त चित्रों का निर्माण किया गया है तथा संपूर्ण जीवन पर एक फीचर फ़िल्म बनाई गयी है।[2]

सतीश गुजराल का घर

सतीश गुजराल का घर गुलाब, गुलदाउदी और चमेली के फूलों से महकता है जबकि भीतर की दीवारों पर पेंटिंग्ज़ बातें करती हैं। दक्षिण दिल्ली का दिल लाजपत नगर में देश के बंटवारे के बाद इधर सरहद पार पंजाब से शरणार्थी आकर बसे थे। वर्तमान में ये पॉश क्षेत्र माना जाता है। यहीं पर प्रख्यात चित्रकार सतीश गुजराल का आशियाना ही है। यहां एक छत के नीचे तीन सफल लोग रहते हैं। घर के बाहर खड़े होने पर गुलों की महक आपको तरोताजा कर देती है। क़रीब 800 गज की विशाल कोठी के अगले भाग में गुलाब, गुलदाउदी और चमेली के फूलों की महक से सारा वातावरण सुगंधमय रहता है। ईंटों के रंग की इस कोठी में सतीश गुजराल क़रीब 50 वर्षों से रह रहे हैं। यहां उनकी पत्नी किरण, पुत्र मोहित गुजराल, बहू फ़िरोज़ और उनके दोनों बच्चे भी रहते हैं। मोहित अपने परिवार के साथ बीच-बीच में अपने फार्म हाउस जाते रहते हैं, पर उनका असली घर तो यही है। चूंकि 16-फिरोज गांधी रोड सतीश गुजराल का घर है तो जाहिर है यहां कलाकारों और चित्रकारों की आवाजाही तो स्वाभाविक रूप से होती है। एक दौर में एम.एफ. हुसैन भी इधर आते थे। गुजराल का घर एक कलात्मक अहसास को जन्म देता है। शानदार चित्रों से सजा है उनका घर। कुछ चित्र हुसैन साहब के भी लगे हैं। मोहित देश के चोटी के वास्तुकार माने जाते हैं। इसके बावजूद घर का स्वरूप पिछले 50 वर्षों से बदला नहीं है। यह एक ऐसा आशियाना है, जहां एक नहीं बल्कि एक से ज्यादा सेलेब्रिटीज रहते हैं। एक प्रख्यात चित्रकार है, दूसरा चोटी का वास्तुकार है और तीसरा मशहूर मॉडल। आमतौर पर एक ही छत के नीचे इतने सारे सेलेब्रिटीज नहीं मिलते, पर सतीश गुजराल के घर में हस्तियां बहुतायत में हैं। बहू फ़िरोज़ मशहूर मॉडल हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल अपने अनुज के घर नियमित रूप से आते थे। दीवाली, लोहड़ी, होली पर परिवार इकट्ठा होता था। लोहड़ी पर पंजाबी लोकगीत भी गाते थे। दोनों भाइयों के रिश्ते राम-लक्ष्मण की तरह रहे। अब दोनों भाइयों के परिवार यहां लगातार मिलते-जुलते रहते हैं। घर के ड्राइंग रूम में सतीश गुजराल की कुछ बेहतरीन पेंटिंग्स और परिवार की नई-पुरानी तस्वीरें टंगी हुई हैं। सतीश गुजराल के घर में बड़ी-सी लाइब्रेरी भी है। यहां भी कला के विभिन्न रंगों की ही किताबें करीने से सजी हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बच्चों ने जानी महान् चित्रकार सतीश गुजराल की व्यथा (हिन्दी) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2014।
  2. 2.0 2.1 2.2 सतीश गुजराल (हिन्दी) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2014।
  3. सेलिब्रिटी होम/ सतीश गुजराल (हिन्दी) दैनिक ट्रिब्यून। अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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