नंदलाल बोस

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नंदलाल बोस
नंदलाल बोस
नंदलाल बोस
पूरा नाम नंदलाल बोस
जन्म 3 दिसम्बर, 1882
जन्म भूमि मुंगेर ज़िला, बिहार
मृत्यु 16 अप्रैल, 1966
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
अभिभावक पूर्णचंद्र बोस
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र चित्रकार
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी इनके प्रसिद्ध चित्रों में है--'डांडी मार्च', 'संथाली कन्या', 'सती का देह त्याग' इत्यादि है।

नंदलाल बोस या नंदलाल बसु (अंग्रेज़ी: Nandalal Bose, जन्म: 3 दिसम्बर, 1882; मृत्यु: 16 अप्रैल, 1966) भारत के एक प्रसिद्ध चित्रकार थे। नंदलाल बोस ने संविधान की मूल प्रति का डिजाइन बनाया था। इनके प्रसिद्ध चित्रों में है--'डांडी मार्च', 'संथाली कन्या', 'सती का देह त्याग' इत्यादि है। नंदलाल बोस ने चित्रकारों और कला अध्यापन के अतिरिक्त इन्होंने तीन पुस्तिकाएँ भी लिखीं-रूपावली, शिल्पकला और शिल्प चर्चा। ये अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रख्यात शिष्य थे।

जीवन परिचय

प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1882 ई. में मुंगेर ज़िला, बिहार में हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक विद्यालयों में भर्ती कराया गया, पर वे पढ़ाई में मन न लगने के कारण सदा असफल होते।

यमराज और नचिकेता
चित्रकार- नंदलाल बोस

उनकी रुचि आरंभ से ही चित्रकला की ओर थी। उन्हें यह प्रेरणा अपनी माँ क्षेत्रमणि देवी से मिट्टी के खिलौने आदि बनाते देखकर मिली। अंत में नंदलाल को कला विद्यालय में भर्ती कराया गया। इस प्रकार 5 वर्ष तक उन्होंने चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली। उन्होंने 1905 से 1910 के बीच कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे।

प्रथम गुरु कुम्भकार

बिहार में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 15 साल की आयु में नंदलाल उच्च शिक्षा के लिए बंगाल गए। उस समय बिहार, बंगाल से अलग नहीं था। कला के प्रति बालसुलभ मन का कौतुक उन्हें जन्मभूमि पर ही पैदा हुआ। यहाँ के कुम्भकार ही उनके पहले गुरु थे। बाद में वे बंगाल स्कूल के छात्र बने और फिर शांतिनिकेतन में कला भवन के अध्यक्ष। स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने खूब हिस्सा लिया। गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत प्रिय थे। यह बिहार की माटी से उनकी बाबस्तगी थी कि कला जगत् के आकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र जैसी ऊंचाई पाने के बाद, अपने व्यस्ततम जीवनचर्या के बावजूद वे बार-बार अपनी जन्मभूमि को देखने आते रहे। छात्रों के साथ राजगीर और भीमबाध की पहाड़ियों में हर साल वे दो-तीन बार एक्सकर्सन के लिए आया करते थे। राज्य सरकार के स्तर पर इनकी स्मृति को संरक्षित करने का कोई प्रयास आज तक नहीं हुआ।[1]

भारतीय संविधान की मूल प्रति का चित्रण

नंदलाल बोस को भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने का मौका मिला। नंदलाल बोस की मुलाकात पं. नेहरू से शांति निकेतन में हुई और वहीं नेहरू जी ने नंदलाल को इस बात का आमंत्रण दिया कि वे भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाएं। 221 पेज के इस दस्तावेज के हर पन्नों पर तो चित्र बनाना संभव नहीं था। लिहाजा, नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया। नंदलाल बोस के बनाए इन चित्रों का भारतीय संविधान या उसके निर्माण प्रक्रिया से कोई ताल्लुक नहीं है। वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से। अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं। भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है। इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है। वास्तव में भारतीय सभ्यता की पहचान में इस सील का बड़ा ही महत्व है। शायद यही कारण है कि हमारी सभ्यता की इस निशानी को शुरुआत में जगह दी गई है। अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती है। किसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है। मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है।[2]

चित्रकारी पर महात्मा गांधी का प्रभाव

नंदलाल बोस की दृष्टि उनको महात्मा गांधी के बहुत निकट लाई। कहा जाता है कि महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद नंदलाल बसु की कला में एक नया मोड़ आया। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत बसु 'असहयोग आंदोलन', 'नमक-कर विरोध आंदोलन' आदि में सक्रिय भूमिका में थे। आज़ादी की लड़ाई के दौरान पारंपारिक और राष्ट्रीय अवधारणाओं के मेल से जो आधुनिक अवधारणाएँ संकल्पित हुई थीं, उनका प्रभाव तत्कालीन कलाकारों की कला में आ रहा था। हाशिए पर रख छोड़ी गई स्त्रियों की क्षमता और शक्ति को गांधी जी ने पहचाना और आज़ादी की लड़ाई में उसका सदुपयोग किया। नंदलाल बोस के हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में बनाए एक विशेष पोस्टर श्रंखला में औरत की आध्यात्मिक शक्तियाँ चित्रित हुईं थीं। नंद लाल बोस की कला की सारी प्रेरणा भारतीय संवेदना की प्रतीक थी। 1936 में महात्मा गांधी अपने विचारों को फलितार्थ देखना चाहते थे। इसलिए अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में ग्रामीण कला और क्राफ्ट की एक कला प्रदर्शनी लगवाई गई थी। परिकल्पना गांधी की थी और नंदलाल बोस ने उसे साकार किया था। महात्मा गांधी ने उस अधिवेशन के पहले नंदलाल बोस को सेवाग्राम में बुलवाया और अपना दृष्टिकोण समझाया। हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में भी इसी प्रकार की प्रदर्शनी की रचना हुई थीं। दोनों ही जगहों पर गांधीवादी कला दृष्टि अभिव्यक्त हुई। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उन प्रदर्शनियों की कोई निशानी बची नहीं है।[3]

प्रसिद्ध चित्रकारी

शिवा ड्रिंकिंग दी वल्ड्र्स पॉयजन
भगवान शिव ज़हर पीते हुए
चित्रकार- नंदलाल बोस

यह पेंटिंग 1933 में बनाई गई थी। इसकी एक पेंटिंग नैशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट और दूसरी ओसियान आर्काइव ऐंड लाइब्रेरी कलेक्शन में संग्रह के रूप में रखी हुई है। इसमें कोई शक नहीं नंदलाल बोस देश के पहले और सच्चे नवयुग पेंटर थे। इसके बनाने का माध्यम लाइन वॉश और वॉटर कलर था। जो अब राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रह में सुरक्षित है। उनके नाम से आज भी अधिकांश लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। इन्होंने अपनी चित्रकारी के माध्यम से आधुनिक आंदोलनों के विभिन्न स्वरूपों, सीमाओं और शैलियों को उकेरा, जिसे शांतिनिकेतन में बड़े पैमाने पर रखा गया। निस्संदेह नंदलाल बोस की चित्रकारी में एक अजीब सा जादू था जो किसी को भी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उनकी चित्रकारी में ख़ूबसूरती की एक अमिट छाप दिखाई पड़ती थी। बोस की पेंटिंग तकनीक भी कमाल की थी जिसका कोई जवाब नहीं है। नंदलाल की पेंटिंग का एशिया में बहुत प्रभाव था। हालांकि उनकी चित्रकारी को पश्चिम में भी काफ़ी तवज्जो मिला है।[4]

प्रसिद्धि

नंदलाल का संपर्क रवीन्द्रनाथ ठाकुर, आनंद कुमार स्वामी, भगिनी निवेदिता आदि से हुआ। उनके चित्रों की प्रशंसा होने लगी और चित्रकार के रूप में उनकी ख्याति बढ़ती गई। पहले वे पौराणिक विषयों और नर-नारी के चित्र अधिक बनाते थे। अब रवि बाबू की कविताओं के आधार पर जीवन की समस्याओं से संबंधित चित्र बनाने लगे। अजंता के चित्रों की प्रतिकृति बनाना उनके जीवन की एक बड़ी सफलता थी। अब उनके चित्रों की प्रशंसा भारत ही नहीं विदेशों में भी होने लगी। राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का भी उनकी कला पर प्रभाव पड़ा। उन्होंने कांग्रेस अधिवेशनों के पैनल बनाए और महात्मा गांधी का लाइफ साइज रेखाचित्र बनाया, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ।

सम्मान

उन्हें विश्वभारती ने ‘देशोत्तम’ की अनेक विश्वविद्यालयों ने डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया। 1954 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किए गए।

निधन

नंदलाल बोस का 16 अप्रैल, 1966 में देहांत हो गया था।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दुनियां देखेगी बिहारी कलाकारों की कृति (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 3 दिसम्बर, 2012।
  2. नंदलाल बोस (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) ब्रांड बिहार डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 3 दिसम्बर, 2012।
  3. कला में आज़ादी के सपने (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 3 दिसम्बर, 2012।
  4. भारतीय कलाकृतियों का अविस्मरणीय संग्रह (हिंदी) (पी.एच.पी) बिज़नेस स्टैंडर्ड। अभिगमन तिथि: 3 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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