आंग्ल-मणिपुर युद्ध

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आंग्ल-मणिपुर युद्ध (अंग्रेज़ी: Anglo-Manipur War) ब्रिटिश साम्राज्य और मणिपुर साम्राज्य के बीच एक सशस्त्र संघर्ष था। यह युद्ध 31 मार्च और 27 अप्रैल, 1891 के बीच लड़ा गया था, जिसमें अंग्रेज़ों की जीत हुई।

पृष्ठभूमि

प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध में, अंग्रेज़ों ने राजकुमार गम्भीर सिंह को मणिपुर के अपने राज्य को वापस हासिल करने में मदद की, जिसे बर्मा के कब्जे में ले लिया गया था। इसके बाद मणिपुर एक ब्रिटेन का संरक्षित राज्य बन गया। 1835 से अंग्रेज़ों ने मणिपुर में एक राजनीतिक एजेंट तैनात कर दिया। 1890 में यहाँ महाराजा सूरचंद्र सिंह का राज था। उनके भाई कुलचंद्र सिंह युवराज थे जबकि एक अन्य भाई टिकेन्द्रजीत सिंह सेनापति थे। फ्रैंक ग्रिमवुड ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट थे। कहा जाता है कि टिकेंद्रजीत उन तीन भाइयों में सबसे सक्षम थे, जो पॉलिटिकल एजेंट के साथ भी मित्रता रखते थे।

ब्रिटिश सैनिकों ने 24 मार्च, 1891 की शाम को पैलेस कंपाउंड, विशेष रूप से टिकेन्द्रजीत के निवास पर हमला किया। इस हमले में सांस्कृतिक कार्यक्रम देख रहे महिलाओं और बच्चों सहित अनेक निर्दोष नागरिक मारे गये। हालांकि, मणिपुरी सेना अपने आक्रामक प्रतिरोध में सफल रही और अंग्रेज़ों को पीछे हटना पड़ा। पांच अंग्रेज़ अधिकारियों- क्विंटन, ग्रिमवुड, लेफ्टिनेंट कर्नल सिम्पसन, कोसिन और बुलेर को भागकर तहखाने में शरण लेनी पड़ी। जिन मणिपुरवासियों के निर्दोष बच्चों, पत्नियों और रिश्तेदारों को अंग्रेज़ों द्वारा मार दिया गया था, उनके मन में बदले की भावना इतनी प्रबल हो गई कि उन्होंने इन पांचों अंग्रेज़ों को मार डाला। इसके परिणामस्वरूप 1891 में आंग्ल-मणिपुर युद्ध हुआ।

इस भयानक युद्ध में अंग्रेज़ों ने मणिपुर को तहस-नहस कर दिया। 27 अप्रैल, 1891 को कंगला पैलेस को अंग्रेज़ों ने अपने कब्जे में ले लिया और मेजर मैक्सवेल मुख्य राजनीतिक एजेंट बन गया। ब्रिटिश सरकार ने जांच-पड़ताल और सजा-निर्धारण के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन मिशेल के अधीन एक विशेष आयोग का गठन किया। इस जांच में वीर टिकेन्द्रजीत को दोषी ठहराया गया और अंग्रेजी अदालत द्वारा उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।

देशभक्त दिवस

वर्ष 1891 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हुए आंग्ल-मणिपुर युद्ध में बलिदान देने वाले राज्य के वीर नायकों को श्रद्धांजलि देने के लिए मणिपुर में प्रत्येक वर्ष 13 अगस्त के दिन ‘देशभक्त दिवस’ मनाया जाता है। इस अवसर पर मणिपुर सरकार की ओर से कई पुलिस अधिकारियों को बहादुरी के लिए मुख्यमंत्री पुलिस मेडल से सम्मानित किए जाने की भी घोषणा की गयी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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