उपेन्द्रनाथ अश्क
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पूरा नाम | उपेन्द्रनाथ अश्क |
जन्म | 14 दिसम्बर, 1910 |
जन्म भूमि | जालंधर, पंजाब |
मृत्यु | 19 जनवरी, 1996 |
अभिभावक | पण्डित माधोराम |
पति/पत्नी | कौशल्या अश्क |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि, लेखक |
मुख्य रचनाएँ | उपन्यास- गिरती दीवारे, गर्मराख, सितारों के खेल; नाटक- लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी, जयपराजय; कहानी संग्रह- सत्तर श्रेष्ठ कहानियां, जुदाई की शाम के गीत, काले साहब, पिंजरा आदि। |
भाषा | हिंदी, उर्दू |
विद्यालय | डी. ए. वी. कॉलेज, जालंधर |
शिक्षा | बी.ए., एलएल. बी |
पुरस्कार-उपाधि | 1972 ई. में 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार', 1965 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार'। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ 'अश्क' ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
उपेन्द्रनाथ 'अश्क' (अंग्रेज़ी: Upendranath Ashk, जन्म- 14 दिसम्बर, 1910; मृत्यु- 19 जनवरी, 1996) उपन्यासकार, निबन्धकार, लेखक, कहानीकार हैं। अश्क जी ने आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान अथवा कोरी रोमानी रचनाएँ की।
जीवन परिचय
उपेन्द्रनाथ अश्क जी का जन्म पंजाब प्रान्त के जालंधर नगर में 14 दिसम्बर, 1910 को एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अश्क जी छ: भाइयों में दूसरे हैं। इनके पिता 'पण्डित माधोराम' स्टेशन मास्टर थे। जालंधर से मैट्रिक और फिर वहीं से डी. ए. वी. कॉलेज से इन्होंने 1931 में बी.ए. की परीक्षा पास की। बचपन से ही अश्क अध्यापक बनने, लेखक और सम्पादक बनने, वक्ता और वकील बनने, अभिनेता और डायरेक्टर बनने और थियेटर अथवा फ़िल्म में जाने के अनेक सपने देखा करते थे।
साहित्यिक परिचय
हिन्दी-उर्दू के प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य के विशिष्ट कथाकार उपेन्द्रनाथ अश्क की पहचान, बहुविधावादी रचनाकार होने के बावजूद, कथाकार के रूप में ही है। राष्ट्रीय आंदोलन के बेहद उथलपुथल से भरे दौर में उनका रचनात्मक विकास हुआ, जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं का उनके बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उनका गंभीर और व्यवस्थित लेखन प्रगतिशील आंदोलन के दौर में शुरू हुआ। उसकी आधारभूत मान्यताओं का समर्थन करने के बावजूद उन्होंने अपने को उस आंदोलन से बांधकर नहीं रखा। यद्यपि जीवन से उनके सघन जुड़ाव और परिवर्तनकामी मूल्य-चेतना के प्रति झुकाव, उस आंदोलन की ही देन थी। साहित्य में व्यक्तिवादी-कलावादी रुझानों से बचकर जीवन की समझ का शऊर और सलीका उन्होंने इसी आंदोलन से अर्जित किया था। भाषा एवं शैलीगत प्रयोग की विराट परिणति उनकी इसी सावधानी की परिणति थी। उनकी कहानियां मानवीय नियति के प्रश्नों, जीवनगत विडंबनाओं, मध्यवर्गीय मनुष्य के दैनंदिन जीवन की गुत्थियों के चित्रण के कारण; नागरिक जीवन के हर पहलू संबद्ध रहने के कारण सामान्य पाठकों को उनकी कहानियाँ अपनापे से भरी लगती हैं, उनमें राजनीतिक प्रखरता और उग्रता के अभाव से किसी रिक्तता बोध नहीं होता।[1]
कार्यक्षेत्र
बी.ए. पास करते ही उपेन्द्रनाथ अश्क जी अपने ही स्कूल में अध्यापक हो गये। पर 1933 में उसे छोड़ दिया और जीविकोपार्जन हेतु साप्ताहिक पत्र 'भूचाल' का सम्पादन किया और एक अन्य साप्ताहिक 'गुरु घण्टाल' के लिए प्रति सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर दी। 1934 में अचानक सब छोड़ लॉ कॉलेज में प्रवेश ले लिया और 1936 में लॉ पास किया। उसी वर्ष लम्बी बीमारी और प्रथम पत्नी के देहान्त के बाद इनके जीवन में एक अपूर्व मोड़ आया। 1936 के बाद अश्क के लेखक व्यक्तित्व का अति उर्वर युग प्रारम्भ हुआ। 1941 में अश्क जी ने दूसरा विवाह किया। उसी वर्ष 'ऑल इण्डिया रेडियो' में नौकरी की। 1945 के दिसम्बर में बम्बई के फ़िल्म जगत के निमंत्रण को स्वीकार कर वहाँ फ़िल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। 1947-1948 में अश्क जी निरन्तर अस्वस्थ रहे। पर यह उनके साहित्यिक सर्जन की उर्वरता का स्वर्ण-समय था। 1948 से 1953 तक अश्क जी दम्पत्ति (पत्नी कौशल्या अश्क) के जीवन में संघर्ष के वर्ष रहे। पर इन्हीं दिनों अश्क यक्ष्मा के चंगुल से बचकर इलाहाबाद आये, इन्होंने 'नीलाभ प्रकाशन गृह' की व्यवस्था की, जिससे उनके सम्पूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला। अश्क जी ने अपनी कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया है।
कृतियाँ
उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ 'अश्क' ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। अश्क ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में 'नव-रत्न' और 'औरत की फ़ितरत' उनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिन्दी संग्रह 'जुदाई की शाम का गीत' (1933) की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वंय लिखा है, 1936 के पहले की ये कृतियाँ उतनी अच्छी नहीं बनी। अनुभूति का स्पर्श उन्हें कम मिला था। 1936 के बाद अश्क जी की कृतियों में सुख-दु:खमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से अदभुत रंग भर गया। 'उर्दू काव्य की एक नई धारा' (आलोचक ग्रन्थ), 'जय पराजय' (ऐतिहासिक नाटक), 'पापी', 'वेश्या', 'अधिकार का रक्षक', 'लक्ष्मी का स्वागत', 'जोंक', 'पहेली' और 'आपस का समझौता' (एकांकी), 'स्वर्ग की झलक' (सामाजिक नाटक): कहानी संग्रह 'पिंजरा' की सभी कहानियाँ, 'छींटें' की कुछ कहानियाँ और 'प्रात प्रदीप' (कविता संग्रह) की सभी कविताएँ उनकी पत्नी की मृत्यु (1936) के दो ढाई साल के ही अल्प समय में लिखी गई।[2]
नाटक
नाटक के क्षेत्र में 1937 से लेकर उन्होंने जितनी कृतियाँ सम्पूर्ण नाटक और एकांकी के रूप में लिखी हैं, सब प्राय: अपने लेखनकाल के उपरान्त उसी वर्ष क्रम से प्रकाशित हुई हैं। अश्क जी के नाटक 'अलग अलग रास्ते' में विवाह, प्रेम, और सामाजिक प्रतिष्ठा की समस्या को प्रस्तुत किया गया हैं। वर्तमान समाज में व्यवस्था के चक्र में उलझी दो नारियों के अन्तर्मन में बसने वाली पीड़ा, घायल संस्कार और प्यासी खूंखार प्रवृत्तियों का प्रदर्शन हुआ है। इसमें समय, स्थान और कार्य - सम्पादन की एकता का कलात्मक ढ़ंग से निर्वाह किया हैं। उल्लेखनीय तथ्य यह हैं कि इस नाटक का आकलन रंगमंच के उपयुक्त बनाने के लिए रंग निर्देशों का सुंदर प्रयोग इसमें हुआ हैं। अलग अलग रास्ते नाटक का मंच बिना किसी अतिरंजना के साथ हुआ हैं जिसके फलस्वरूप नाटक के रस का साधारणीकरण दर्शक या पाठक को सहज ही अनुभूत होती हैं।
सन | कृति |
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कहानियाँ
अंकुर, नासुर, चट्टान, डाची, पिंजरा, गोखरू, बैगन का पौधा, मेमने, दालिये, काले साहब, बच्चे, उबाल, केप्टन रशीद आदि अश्क जी की प्रतिनिधि कहानियों के नमूने सहित कुल डेढ़-दो सौ कहानियों में अश्क जी का कहानीकार व्यक्तित्व सफलता से व्यक्त हुआ है।
काव्य ग्रन्थ
संस्मरण
- 'मण्टो मेरा दुश्मन' (1956)
- 'निबन्ध, लेख, पत्र, डायरी और विचार ग्रन्थ-'ज़्यादा अपनी कम परायी' (1959)
- 'रेखाएँ और चित्र' (1955)।
अनुवाद
- 'रंग साज' (1958)- रूस के प्रसिद्ध कहानीकार 'ऐंतन चेखव' के लघु उपन्यास का अनुवाद।
- 'ये आदमी ये चूहे' (1950)- स्टीन बैंक के प्रसिद्ध उपन्यास 'आव माइस एण्ड मैन' का अनुवाद।
- 'हिज एक्सेलेन्सी' (1959)- अमर कथाकार दॉस्त्यॉवस्की के लघु उपन्यास 'डर्टी स्टोरी' का हिन्दी अनुवाद।
सम्पादन
सन | कृति |
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1940 | सितारों के खेल |
1945 | बड़ी-बड़ी आँखें |
1947 | गिरती दीवार |
1952 | गर्म राख |
1957 | पत्थर अलपत्थर |
1963 | शहर में घूमता आईना |
1969 | एक नन्हीं किंदील |
समृद्धता का अनुमान
सृजन की इतनी क्षमता से सहज ही अश्क जी की लेखन शक्ति और भाव जगत् की समृद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है। उपन्यास, नाटक, कहानी और काव्य क्षेत्र में अश्क जी की उपलब्धि मुख्यत: नाटक, उपन्यास और कहानी में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। 'गिरती दीवार' और 'गर्म राख' हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में यथार्थवादी परम्परा के उपन्यास हैं। सम्पूर्ण नाटकों में 'छठा बेटा', 'अंजोदीदी' और 'क़ैद' अश्क जी की नाट्यकला के सफलतम उदाहरण हैं। 'छठा बेटा' के शिल्प में हास्य और व्यंग, 'अंजोदीदी' के स्थापत्य में व्यावहारिक रंगमंच के सफलतम तत्त्व और शिल्प का अनूठापन तथा 'क़ैद' में स्त्री का हृदयस्पर्शी चरित्र चित्रण तथा उसके रचना विधान में आधुनिक नाट्यतत्त्व की जैसी अभिव्यक्ति हुई है, उससे अश्क जी की नाट्य कला और रंगमंच के परिचय का संकेत मिलता है। एकांकी नाटकों में 'भँवर', 'चरवाहे', 'चिलमन', 'तौलिए' और 'सूखी डाली' अश्क जी की एकांकी कला के सुन्दरतम उदाहरण हैं। सभी एकांकी रंगमंच के स्वायत्त अधिकारी हैं। अश्क जी की कहानियाँ प्रेमचन्द के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद अथवा विकास क्रम से प्राप्त विशुद्ध यथार्थवादी परम्परा की हैं। कहानी कला और रचना शिल्प स्पष्ट कथा तत्त्व के सहित मूलत: चरित्र के केन्द्र बिन्दु से पूर्ण होता है। अश्क जी के समस्त चरित्र उपन्यास, नाटक अथवा कहानी किसी भी साहित्य प्रकार में सर्वथा यथार्थ हैं। उनसे सामाजिक और वैयक्तिक जीवन की समस्त समस्याओं-राग द्वेष का प्रतिनिधित्व होता है।
यादगार घटनाएँ
- हिन्दी साहित्य के यादगार बातों में उपेन्द्रनाथ अश्क से जुड़ा हुआ परचूनवाला उल्लेख भी मशहूर है। इलाहाबाद में अश्कजी ने परचून की दुकान खोली। मीडिया ने इसे उनके किसी किस्म के असंतोष या मोहभंग से जोड़ते हुए खबर प्रचारित की। गौरतलब है कि तब का मीडिया राजनीतिक दांव पेंच के साथ साथ साहित्य की अखाड़ेबाजी को भी खबरों में खूब तरजीह देता था। खैर, परचून तक तो बात ठीक थी मगर धन्य है अनुवाद आधारित पत्रकारिता जिसने इसमें सिर्फ चूना देखा और बात चूने की दुकान तक गई। कुछ लोगों को यह चूना सचमुच लाइम नज़र आया और कुछ को नींबू। उर्वराबुद्धि वालों ने इसमें पानी और जोड़ दिया और प्रचारित हो गया कि अश्क जी इलाहाबाद में नींबू पानी बेच रहे हैं। मामला साहित्यकार की दुर्दशा से जुड़ गया। अश्क जी को खुद सारी बातें साफ़ करनी पड़ी।[3]
- इलाहाबाद की घटना है। एक छात्रा ने उपेन्द्रनाथ अश्क से ऑटोग्राफ बही पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। अश्क जी अपनी पुस्तकों की बिक्री में खुद रुचि लेते थे। ऑटोग्राफ बुक में लिखा- 'पुस्तकें ख़रीद कर पढ़ों-अश्क'। इसके बाद छात्र ने धर्मवीर भारती को ऑटोग्राफ देने के लिए कहा तो उन्होंने लिखा-
पुस्तक ख़रीदने का पता- नीलाभ प्रकाशन, खुसरो बाग, इलाहाबाद
यह पता अश्क जी के प्रकाशन संस्थान का था।[4]
सम्मान और पुरस्कार
उपेन्द्रनाथ अश्क जी को सन् 1972 ई. में 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उपेन्द्रनाथ अश्क को 1965 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
निधन
उपेन्द्रनाथ अश्क जी का 19 जनवरी, सन् 1996 ई. में निधन हो गया था।
सहायक ग्रन्थ
- ज़्यादा अपनी कम परायी: उपेन्द्र नाथ 'अश्क':
- नाटककार 'अश्क': नीलाभ प्रकाशन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 103 |
- ↑ उपेन्द्रनाथ अश्क की श्रेष्ठ कहानियां (हिंदी) (पी.एच.पी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।
- ↑ श्री उपेन्द्रनाथ अश्क के अलग अलग रास्ते (हिंदी) (पी.एच.पी)। । अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।
- ↑ परचून की पैदाइश से उपेन्द्रनाथ अश्क तक (हिंदी) (पी.एच.पी) शब्दों का सफर। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।
- ↑ उपेन्द्रनाथ अश्क का प्रकाशन व्यवसाय !! (हिंदी) (पी.एच.पी) नवजन्या। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
- उपेन्द्रनाथ अश्क: अकेले का सफर
- मति का धीर -उपेंद्रनाथ अश्क
- उपेन्द्रनाथ `अश्क' की कृतियाँ
- किताब से खुशी हासिल करना (उपेन्द्र नाथ अश्क)
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