ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ

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ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ
ऊँट
ऊँट
जगत जंतु (Animalia)
संघ कौरडेटा (Chordata)
वर्ग स्तनधारी (Mammalia)
गण आर्टियोडैकटिला (Artiodactyla)
कुल कैमलिडाए (Camelidae)
जाति कैमेलस (Camelus)
प्रजाति बॅक्ट्रिऍनस (bactrianus)
द्विपद नाम कॅमलस बॅक्ट्रिऍनस (Camelus bactrianus)
संबंधित लेख गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, सिंह, बाघ
अन्य जानकारी अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज़ भी कहते हैं।
मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ
  • मारवा में ऊँट की सवारी करने की भी समाज में परम्पराएँ स्थापित हैं। जैसे अपनी पत्नी को हमेशा ऊँट पर पीछे बिठाया जाता है, बहन-बेटी को सवार हमेशा आगे बैठाता है तथा उसकी मोहरी जनाना सवारी के हाथ में होती है।
  • ऊँटों का और रबारियों का साथ चोली-दामन जैसा है। पुराने जमाने में रबारी सबसे ज्यादा विश्वासी और सन्देशवाहक माने जाते थे और वे रातों-रात सौ-सौ कोस जाने का जिगर रखते थे। इन्होंने हमेशा राजपूतों की सेवा तन-मन से की है।
  • पाँच सौ ऊँटों का मालिक पचसदी कहलाता है। नस पर घनी जटा वाला ऊँट पर्टेल कहलाता है। जिस ऊँट के कानों के पास घुंघराले बाल होते हैं, वह बगरू कहलाता है। छोटी पसली वाला ऊँट पासुमंग कहलाता है। चढ़ाई करने के लिए निश्चित ऊँट चढमों ऊँट कहलाता है तथा पहले से धारा गया ऊँट विशेष प्रयोजन के लिए चढीरौ कहलाता है। छह दाँत वाला ऊँट छठारी हाण कहलाता है। किसी दर्द के कारण ऊँट आवाज करता है तो उसे ऊँट का आडणा कहते हैं। ऊँट को किसी कारणवश सजा धजा कर त्याग दिया जाए तो वह पाख्रणी कहलाता है।
  • ऊँट को बिठाने के लिए सवार झैझै शब्द बोलता है। ऊँट के बैठने को मारवाड़ी में झैकणा कहते हैं। ऊँट जिस स्थान पर बैठता है और उससे जमीन पर जो निशान बनता है उसे झौक कहते हैं। ऊँट की चोरी को फोग कहते हैं तथा उसकी तलाश में जाने को नायठ जाना कहते हैं। ऊँट की काटी हुई जट को ओठीजट कहा जाता है तथा सांठ के दूध को ओठा कहा जाता है। ऊँट के सवार को सुत्तर सवार या सारवाण कहा जाता है।
  • ऊँट पर लादी जाने वाली घास की गांठ को टाली कहते हैं। सवारी के लिए ऊँट की पीठ पर पिलाण बांधा जाता है। ऊँट के द्वारा मजदूरी करके गु बसर करने वाला कतारिया कहलाता है। ऊँट को सजाने के लिए कौङ्यों का गोरबंध पहनाया जाता है।

ऊँट न लीजै दुबला, बदल न लीजै माता।
ऊँचो खेत नीं चाहिजै, नीचो न कीजै नाता।।

  • ऊँट के मुख्य रंग मारवा में जो कहे व सुने जाते हैं, उनमें मुख्य तेला, भंवर, लाल (रातौ) और भूरौ से लो (मटमैला रंग) आदि हैं।
  • बोदलो, गाजी, बबाल व छापरी नामक ऊँटों की मुख्य किस्में हैं।
  • ऊँट मुख्य रूप से ग्वार की फलगटी (मोगरी) तथा घास जो जैसलमेर में ही मिलता है, खाता है। वह कंटीले पे को बड़े स्वाद से खाता है। इसके अलावा ऊँट नीम, जाल, बेरी, खाखला, कंटीली झाड़्याँ इत्यादि भी बड़े चाव से खाता है तथा उसे सात दिन में एक बार भी पानी मिल जाए तो काफी है।
  • मारवाड़ी भाषा में ऊँटों की मुख्य बीमारियों की विगत मिलती है जिसमें मुख्य रूप से हाड़ी, हूबी, हुसइको, हिचकी, गांठड़ो, खोथ, खंग, कूकड़ो, कागवाव, कपालोड़ी, सिमक, ओड़ी, अचर, पोटी, लीलड़, रसरोग, ढूढी, ढूंसियों, कमरी राफो आदि बीमारियाँ प्रमुख हैं।
  • ऊँट का मारवा समाज पर बड़ा एहसान है। दूर-दराज ठाणियों में रहने वाले परिवारों की धन संपत्ति, समाज में इज्जत और आर्थिक क्षमता आदि सब कुछ इस जानवर के बलबूते पर है। साहित्य में ऊँटों के संदर्भ भरे पड़े हैं, जिनका अध्ययन और अनुशीलन ऊँट के संबंध में हमें अनेक प्रकार की विचारोत्तेजक जानकारियाँ उपलब्ध करा सकता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ (हिंदी) igcna.nic.in। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2017।

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